शुक्रवार दो सितंबर के दिन भारत अपने सबसे बड़े जंगी जहाज़ विक्रांत को नौसेना के बेड़े में शामिल हो गया. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहें. संस्कृत में विक्रांत का मतलब होता है ‘बहादुर’. इस प्रक्रिया को कमीशनिंग कहते हैं, इस के बाद इस जहाज़ के नाम के आगे आईएनएस जुड़ जाएगा.
अंदर से कैसा है विक्रांत?
13 साल में बनकर तैयार हुए इस जंगी जहाज के अंदर 2300 कंपार्टमेंट हैं और आप घुसते ही भूल जाएंगे कि ये एक जहाज़ है. इस 262 मीटर लंबे और 60 मीटर ऊंचे जहाज़ पर समुद्र की तेज़ लहरों का कोई ख़ास असर महसूस नहीं होता.
जहाज़ को चौड़े रास्ते और सीड़ियां जोड़ते हैं इसलिए एक जगह से दूसरी जगह जाना मुश्किल नहीं है. एयरकंडीशनर बाहर की उमस और गर्मी को अंदर नहीं आने देते.
विक्रांत नाम से आप वाकिफ़ भी होंगे. भारत के पहले एयरक्राफ़्ट कैरियर का भी यही नाम था. उसे ब्रिटेन की रॉयल नेवी से ख़रीदा गया था और 1961 में कमीशन किया गया था. 1997 में आइएनएस विक्रांत को डिकमीशन कर दिया गया. इसने कई मिलिट्री ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
नए विक्रांत की बात करें तो इसमें 1700 लोग काम करेंगे. हालांकि अभी इसमें 2000 और लोग भी काम कर रहे हैं- वो टेक्नीशियन जो केबल वगैरह ठीक कर रहे हैं, पॉलिश कर रहे हैं या इंटीरियर का काम कर रहे हैं.
इसके बाद जिस कम्पार्टमेंट में हम गए उसे टीसीआर या थ्रॉटल कंट्रोल रूम कहते हैं.
वरिष्ठ इंजीनियरिंग अफ़सर लेफ़्टिनेंट कमांडर साई कृष्णन कहते हैं, “हम इस जहाज़ के दिल में हैं. यहां से गैस टरबाइन इंजन का संचालन होता है, और इसी की मदद से ये जो एक तरह का शहर है, तैरता है.”
इसके चार इंजन 88 मेगावॉट की पावर देते हैं. यहां काम कर रहे लोगों ने बताया कि इनकी ऊर्जा एक शहर के लिए काफ़ी होती है.
इसके बाद वो जगह आती है जिसे नेवी ‘गैले’ कहती है. यहां एक कॉफ़ी मशीन है, साफ़ सुथरे कुर्सी टेबल हैं और कई कंटेनर हैं. ये एक कैंटीन या पैंट्री है. विक्रांत में ऐसी कुल तीन जगह हैं. एक अफ़सर के मुताबिक “अगर आप तीनों गैले को मिला लें तो कुल 600 लोग एक साथ खाना खा सकते हैं.”
यहां से आगे बढ़ने पर बाईं ओर रहने के लिए क्वार्टर बने हुए हैं. अभी यहां गद्दे एक साथ प्लास्टिक में पैक करके रखे हुए हैं. जब लोग इस पर रहना शुरू करेंगे तो बंक बेड में इनका इस्तेमाल शुरू होगा.
इसके साथ की विक्रांत पर एक बड़ी मेडिकल फैसेलिटी है. यहां एक 16 बेड का अस्पताल भी है, दो ऑपरेशन थिएटर हैं, लैब है. आईसीयू है और सीटी स्कैन है. यहां पांच अफ़सर डॉक्टर और 15 पैरामेडिक हैं. ये नेवी की सबसे बड़ी मेडिकल फ़ैसिलिटी है.
इसके बाद वो जगहें भी हैं जो आपको जहाज़ पर होने का अहसास करातीं हैं लेकिन एक आम जहाज़ नहीं, एक ऐसा जहाज़ जहां 30 फ़ाइटर प्लेन और हेलिकॉप्टर रखे जा सकते हैं. यानी हम हैंगर में हैं.
क्षमता की बात करें तो ये समझना ज़रूरी है कि दूसरे ऐसे एयरक्राफ़्ट भी हैं जिनमें इससे ज़्यादा एयरक्राफ़्ट रखे जा सकते हैं, जैसे कि आइएनएस विक्रमादित्य. यूके की रॉयल नेवी की क्वीन एलीज़ाबेथ में 40 और अमेरिकी नेवी की निमित्ज़ क्लास कैरियर में 60 से ज़्य़ादा एयरक्राफ़्ट आ सकते हैं.
दो रूसी ‘मिग-29 के’ फ़ाइटर प्लेन और कामोव -31 अर्ली वॉर्निंग हेलीकॉप्टर इस जंगी जहाज़ के पीछे के हिस्से में रखे गए हैं.
लेफ़्टिनेंट कमांडर विजय शियोरान कहते हैं, “इसे एक पार्किग की जगह की तरह समझें और एक टीम है जो मेंटेनेंस और रिपेयर का काम देखती है. यहां से एक स्पेशल लिफ़्ट एयरक्राफ़्ट को फ़्लाइट डेक पर ले जाती है, जो इसके ठीक ऊपर है.”
इसके बाद है डेक, यानी वो जगह जहां से एयरक्राफ़्ट टेक ऑफ़ और लैंड करते हैं. अलग अलग समय पर विक्रांत को अलग अलग चीज़ों के लिए टेस्ट किया गया है लेकिन लगातार फ्लाइंग ऑपरेशन के लिए इसका परीक्षण अभी बाकी है. ये टेस्ट नौसेना साल के अंत तक कर सकती है
लेफ़्टिनेंट कमांडर सिद्धार्थ सोनी फ़्लाइट डेक अफ़सर हैं और एक हेलीकॉप्टर पायलेट भी. वो कहते हैं, “हमारा फ़्लाइट डेक क़रीब 12500 स्कॉयर मीटर का है यानी की क़रीब ढाई हॉकी फ़ील्ड जितना और यहां से हम एक बार में 12 फ़ाइटर प्लेन और छह हेलीकॉप्टर को ऑपरेट कर सकते हैं. ये हमारे पहले के एयरक्राफ़्ट कैरियर से बहुत बड़ा है. अगर आपके पास ज़्यादा जगह है तो जाहिर तौर पर आप ज़्यादा एयरक्राफ़्ट रख सकते हैं.”
विक्रांत की ख़ास बात ये है कि ये रूसी अमेरिकी और भारतीय एयरक्राफ़्ट को एक ही हैंगर में रख सकता है.
अपनी रक्षा कैसे करते है ये कैरियर?
कैप्टन रजत कुमार बताते हैं, “ये कैरियर कभी अकेला नहीं चलता है, इसके साथ दूसरे जहाज़ भी होते हैं और यही इनको पूरी ताकत देता है, इसमें युद्धपोत शामिल हैं, एंटी सबमरीन वॉर फ़ेयर की काबिलियत और एंटी एयर की काबिलियत है. विक्रांत खुद भी कई तरह के रक्षात्मक सुविधाओं से लैस है. ये एयरक्राफ़्ट और जहाज़ों के बीच समन्वय की बात है.
लेफ़्टिनेंट कमांडर चैतन्य मल्होत्रा कहते हैं, “उदाहरण के तौर पर हवा की गति के बारे में जानना लैंडिंग और टेक ऑफ़ के लिए बहुत ज़रूरी है. यहां टीम की भूमिका बहुत अहम है. लगातार मौसम को अलग अलग पैमानों पर परखा जाता है और फिर मौसम का पूर्वानुमान जारी किया जाता है.”
ज़रूरतें अभी ख़त्म नहीं हुई हैं
दूसरे एयरक्राफ़्ट से अलग इस वॉरशिप की ख़ासियत है कि वो एक पूरे एयरफील्ड को मिशन की ज़रूरत के मुताबिक एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकता है. विक्रांत के आने से भारत के पास अब दो कैरियर हो जाएंगे लेकिन नेवी का मानना है कि उन्हें कम-से-कम एक और की ज़रूरत है. पहले के नौसेना प्रमुख इस बारे में खुलकर अपनी राय रख चुके हैं.
केंद्र की मोदी सरकार का डिफेंस उत्पादन में आत्मनिर्भर होने पर लगातार ज़ोर देती रही है लेकिन एक तीसरे कैरियर के लिए ज़रूरी फंड अभी उपलब्ध नहीं करवा पाई है.
वाइस एडमिरल एके चावला (रिटायर्ड) कुछ समय पहले तक विक्रांत से जुड़े थे. वो कहते हैं कि मुद्दा अभी फ़ैसला लेने या छोड़ देने के बीच चुनने का है.
वाइस एडमिरल एके चावला (रिटायर्ड) कहते हैं- “80 के दशक में, आर्थिक उदारीकरण के बाद चीन को समझ में आ गया था कि बिना नौसेना की ताकत बढ़ाए वो एक वैश्विक शक्ति की तरह नहीं उभर पाएगा. आज देखिए, वो दुनिया की सबसे सशक्त नौसेना है और वो बहुत तेज़ी से नए एयरक्राफ़्ट बना रहे हैं. आप रातों-रात कैरियर नहीं बना सकते. इसमें समय लगता है इसलिए ज़रूरी है कि हम विक्रांत जैसे और जहाज़ लेकर आएं जो हमारे बेड़े की रक्षा कर सके, दूर तक जा सके और दुश्मन के जहाज़ों को बर्बाद कर सके.”
चीन ने 2012 से 2022 के बीच दो एयरक्राफ़्ट कमीशन किए हैं और तीसरे और अब तक से सबसे बड़े पर काम शुरू किया है. चीन ने अपनी नौसेना की क्षमता में इज़ाफ़ा किया और बेड़े में भी बढ़ोत्तरी की. चीन ने अमेरिकी नौसेना को भी पीछे छोड़ दिया है.
और आख़िर में…
जहाज़ के बाहर नेवल बैंड रिहर्सल कर रहा है. इसके साथ ही बड़े क्रेन जब भारी चीज़ें उठाते हुए तेज़ साइरन बजते हैं. सरकारी जहाज़ बनाने वाली कंपनी कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) ने राहत की सांस ली है.
सबसे पहले सरकार ने इस जहाज़ के लिए जनवरी 2003 में मंज़ूरी दी थी. साल 2007 में पहला कॉन्ट्रैक्ट साइन होने का बाद काम शुरू हुआ. लेकिन जहाज़ बनने के दूसरे चरण में देरी हुई, ख़ासतौर पर तब जब इसमें हथियार और प्रोपल्शन सिस्टम और रूस से आए एविएशन कॉम्प्लेक्स लगाने थे.
सीएसएल के चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर मधु नायर के मुताबिक इस जहाज़ को बनने में 13 साल लगे वो इस समय को कम करना चाहते हैं. उनका कहना है, “13 साल लगना सबसे अच्छा समय तो नहीं है, हम बेहतर कर सकते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि हम ये पहली बार कर रहे थे और हम दुखी नहीं हैं.”
मैंने चीन के तेज़ी से बढ़ते कदम की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने कहा, “चीन से तुलना करते समय हमें पूरे इकोसिस्टम के बारे में भी सोचना चाहिए. वो ब्रिटेन और अमेरिका की तुलना में भी तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं.”
विक्रांत के बन जाने से इस शिपयार्ड का खुद पर भरोसा बढ़ा है. अब वो अधिक क्षमता हासिल करने के लिए निवेश कर रहे हैं.
वो कहते हैं, “हम एक नए डॉक में निवेश कर रह हैं जो कि भारत के अगले जेनरेशन के एयरक्राफ़्ट कैरियर बना सके, ये 2024 में बनकर तैयार हो जाएगा. हमें उम्मीद है कि नए कैरियर को बनाने के लिए मंज़ूरी जल्द ही मिल जाएगी. अगर ऐसा होता है तो हम जल्द डिलीवरी के लिए तैयार रहेंगे.
विक्रांत को बनाने में 20,000 करोड़ रुपये का खर्च आया है.
इस जंगी जहाज़ के 76 प्रतिशत चीज़ें भारत में बनी हैं. इन्हें क़रीब 500 भारतीय कंपनियों ने बनाया है. नेवी और सीएसएल दोनों ही इसे भारतीय डिफेंस सेक्टर में निवेश की तरह देख रहे हैं. सरकार के मुताबिक पिछले 13 सालों में जहाज़ बनाने के क्षेत्र में क़रीब 15000 नौकरियां आई हैं.
डेटा को अलग भी रखें तो जैसा कि सीएसएल की जनरल मैनेजर डिज़ाइन अंजना केआर कहती हैं, ये एक भावनात्मक सफ़र की शुरुआत है.
अंजना केआर कहती हैं, “मैं 2009 में इसकी डिज़ाइनिंग से जुड़ी थी, मैटेरियल डिपार्टमेंट में. मैं शिप के लिए ज़रूरी कई सामानों की ख़रीददारी में शामिल थी और मैं डिज़ाइन डिपार्टमेंट में वापस आ गई हूं. ये बहुत चुनौतीपूर्ण था. कभी कभी लगता था कि अब आगे का रास्ता बंद है, लेकिन हमने एक साथ मिलकर और नेवी के साथ मिलकर काम किया और सभी मुश्किलों का सामना किया.”
चाहे विक्रांत को पहली बार साल 2013 में पानी में डालना हो या समुद्र में पिछले साल हुए ट्रायल, अंजना ने सबकुछ बहुत नज़दीक से देखा है. बिल्कुल माता-पिता की तरह.
अपने चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ अंजना कहती हैं, “ये मेरी बेटी की तरह है, ये कई सालों से यहां है, हमने इसे बड़ा किया है. पहले लाइन के डिज़ाइन से अब ये पूरी तरह से जहाज़ बन चुकी है. अब ये दुनिया देखने जा रही है. ये किसी बेटी की शादी करने जैसा है और इसे किसी और के हाथ में देने जैसा, मेरा अनुभव कुछ ऐसा ही है. और अब उन्हें (नौसेना) को इसका अच्छे से ख्याल रखना है.”
-एजेंसी