सनातन धर्म में मंदिरों में जाने और वहां पूजा करने के कुछ नियम निर्धारित किये गए है। इसी में एक नियम है कि शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा आधी ही की जाती है लेकिन बहुत लोगों के मन में यह शंका होती है कि आखिरकार शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही क्यों?
पुराणों में सभी देवताओं की परिक्रमा करने की अलह-अलग संख्या निर्धारित की गयी हैं लेकिन किसी की भी आधी परिक्रमा करने को नही कहा गया हैं केवल शिवलिंग को छोड़कर। इसके पीछे धार्मिक व वैज्ञानिक दोनों कारण हैं।
शिवलिंग की परिक्रमा के बारे में जानने से पहले हमारा यह जानना आवश्यक हैं कि आखिरकार शिवलिंग होता क्या है!! दरअसल शिवलिंग का ऊपरी भाग पुरुषत्व या शिव का प्रतिनिधित्व करता है और नीचे वाला भाग स्त्रीत्व या शक्ति का।
मुख्यतया शिवलिंग में ऊर्जा का अथाह भंडार होता है जिस कारण इसके आसपास अत्यधिक ऊर्जा का संचार होता रहता हैं जो कि गर्म होती है। इसलिए शिवलिंग के ऊपर हमेशा एक मटकी रखी जाती हैं जिसमे से बूँद-बूँद रूप में जल शिवलिंग पर गिरता रहता है और उसे ठंडा रखता है। शिवलिंग में अथाह ऊर्जा का स्रोत होने के कारण इसे घर पर रखने से भी मना किया जाता है।
सोमसूत्र या जलधारी क्या है
हम शिवलिंग पर जो भी चढ़ाते हैं जैसे कि दूध, दही, जल, शहद इत्यादि, वह सब एक नली की सहायता से वहां से बाहर निकलता रहता हैं। यह सब जिस नली से बाहर निकलता हैं उसे ही सोमसूत्र, जलधारी, जलहरी या निर्मली के नाम से जाना जाता है।
हमें शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने को ही कहा जाता हैं। इसके पीछे का सबसे मुख्य कारण जलधारी ही हैं क्योंकि इसे लांघना शास्त्रों में घोर अपराध माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इसे लांघने से भगवान शिव रुष्ट हो जाते हैं और इस कारण मनुष्य को शारीरिक व मानसिक रूप से दुःख भोगने पड़ते हैं।
यह तो आम लोगों को डराने के उद्देश्य से कहा जाता हैं लेकिन इसके पीछे धर्म का एक छुपा हुआ ज्ञान है। यह तो आपने जान लिया कि शिवलिंग में अथाह ऊर्जा का भंडार होता हैं। इसलिए जब हम उस पर जल इत्यादि चढ़ाते हैं तो ऊर्जा का कुछ भाग उसमे मिलकर जलधारी के माध्यम से प्रवाहित होता रहता हैं। इस मिश्रण में शिव व शक्ति दोनों की ऊर्जा मिली हुई होती हैं जो अत्यधिक गर्म होती है।
यदि हम शिवलिंग की परिक्रमा करते समय इस जलधारी को लांघते हैं तो लांघते समय यह ऊर्जा हमारे दोनों पैरों के बीच में से शरीर में प्रवेश कर जाती हैं। इससे हमे वीर्य व रज संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही हमे देवदत्त तथा धनंजय वायु के प्रभाव में रुकावटों का भी सामना करना पड़ सकता हैं।
कुल मिलाकर शिवलिंग के सोमसूत्र को लांघने से मनुष्य को कई शारीरिक व मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं। इन्हीं कारणों से शास्त्रों में शिवलिंग की जलधारी को लांघना वर्जित माना गया हैं।
अर्ध परिक्रमा करने का वैज्ञानिक कारण
वैसे तो हिंदू धर्म में हर एक चीज़ को वैज्ञानिक आधार पर ही निर्धारित किया गया हैं फिर चाहे वह सूर्य को जल चढ़ाना हो या नमस्कार करना। शिवलिंग के निर्माण के पीछे भी एक गहरा रहस्य हैं। दरअसल शिवलिंग हमारे संपूर्ण ब्रह्मांड के आकार या फैलाव तथा परमाणु ऊर्जा का संकेतक हैं।
भगवान शिव की नगरी काशी के भूजल में भी परमाणु ऊर्जा की तरंगे पायी गयी हैं। इसके साथ ही जहाँ-जहाँ शिवलिंग की स्थापना की गयी हैं वहां-वहां रेडियो एक्टिव तरंगे बहुतायत में है। शिवलिंग का आकार और परमाणु केन्द्रों के आकार में भी बहुत समानताएं पायी जाती है। इन्हीं सब कारणों के कारण शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा करने को ही उचित माना गया हैं अन्यथा हमे इसके कई दुष्परिणाम भोगने पड़ सकते हैं।
परिक्रमा कैसे करें
शिवलिंग की परिक्रमा को अर्ध चंद्राकर परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है जिसको करने के कुछ नियम होते हैं। आइए शिवलिंग परिक्रमा करने की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानते हैं।
शिवलिंग की परिक्रमा को हमेशा अपने बायीं ओर से प्रारंभ करना चाहिए अर्थात आपका दाहिना हाथ शिवलिंग की ओर होना चाहिए। बायीं ओर से परिक्रमा शुरू करने के बाद, जलाधारी तक जाए लेकिन इसे पार ना करे। अब झुककर जलाधारी को प्रणाम करे और उसमे से बह रहे जल को छूकर सिर पर लगाए।इसके बाद वही से वापस मुड़ जाएँ और वापस शिवलिंग के सामने आकर अपनी परिक्रमा पूरी करे।
कितनी परिक्रमा
क्या हम शिवलिंग की आधी-आधी करके एक से ज्यादा परिक्रमा भी लगा सकते हैं? तो इसका उत्तर है- नहीं। शास्त्रों में शिवलिंग की परिक्रमा करने की कुल संख्या ही आधी बताई गयी हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि आपको बस केवल एक बार ही शिवलिंग की आधी परिक्रमा करनी हैं, उससे ज्यादा नहीं।
शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा कब लगायें
वैसे तो शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा करने की मनाही हैं लेकिन शास्त्रों में शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा करने के भी नियम हैं। इसके अनुसार यदि जलधारी भूमिगत हो या उसे किसी चीज़ से ढका गया हो तो ऐसे में उसे लांघा जा सकता है।
शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने को इसलिए ही कहा जाता है क्योंकि इसके ऊपर से जाने पर जलधारी की ऊर्जा हमारे अंदर प्रवेश कर सकती हैं लेकिन यदि यह भूमिगत होगी या ढकी हुई होगी तो ऐसी स्थिति में शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा की जा सकती हैं।
शिवलिंग की परिक्रमा करते समय इन बातों का रखें ध्यान
शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने को कहा जाता हैं लेकिन शिवजी की मूर्ति की पूर्ण परिक्रमा ही करे।
जलधारी से उलटे पाँव वापस नही आना हैं अपितु पीछे मुड़कर वापस आये।
जलधारी से वापस आने से पहले उसके जल को अवश्य स्पर्श करके अपने सिर से लगाए।
शिवलिंग की परिक्रमा करते समय छोटे बच्चों को गोद में या हाथ पकड़ कर रखे क्योंकि वे गलती से जलधारी लांघ भी सकते हैं।
जलधारी जब पूरी तरह से ढकी हुई हो, ऐसी स्थिति में ही उसे लांघे अन्यथा नहीं।
Compiled: up18 News
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