पहले तो कल मैंने स्वयं कई review देखे और सब review ऐसे थे कि भाई प्रभास ने बुक्के फाड़ दिये और क्या मूवी बनी है इत्यादि इत्यादि । तो इसी हाइप मे न जाने कितनी सदियों बाद ब्रहस्पतिवार के दिन मैं हाल मे मूवी देखने चला गया और snacks के खर्चे मिलाकर 2000 रुपैया फूँक दिया । तो अब review भी लिख ही देते हैं ।
एक लाइन मे कहूँगा तो ये मूवी अमिताभ बच्चन के लिए देखें, उनके अश्वत्थामा के रोल के लिए देखें, ये मूवी अमिताभ की है। अमिताभ का रोल दिव्य है । प्रभास को आप बदल सकते हैं लेकिन अश्वत्थामा के रूप मे अमिताभ indispensable हैं ।
कहानी : 2 युगों कि कहानी है । अश्वत्थामा (अमिताभ बच्चन) अमर हैं और इस नए युग मे यानि कलयुग मे कल्कि अवतार के जन्म के बाद ही उनको मुक्त होना है और उस बच्चे का जन्म सफलता पूर्वक इस युग मे हो जाए इसके लिए अश्वत्थामा प्रयासरत हैं । इस युग का विलेन जोकि अभी प्रथ्वी पर सारे resources पर कब्जा करके एक complex नाम कि जगह मे रह रहा है और सारी सुख सुविधाएं उसी के अंदर हैं । बाकी बाहर सब वीराना और बंजर है । वो विलेन कमल हासन हैं जो कुछ वैज्ञानिक प्रयोगों से पता नहीं क्या प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन अंत मे आपको शायद लगे कि ये अपना जवान शरीर पाना चाहते हैं या फिर अपनी शक्तियाँ बढ़ाना चाहते हैं या फिर दोनों । प्रभास उस विलेन वाले कॉम्प्लेक्स मे रहना चाहते हैं क्यूंकी वहाँ बहुत सुख सुविधा है लेकिन उसके लिए जो पैसा चाहिए वो इकट्ठा करने के लिए बार बार विलेन द्वारा किसी को पकड़ने के लिए इनाम घोषित होने पर अश्वत्थामा से उनकी लड़ाई होती रहती है । दीपिका ही वो महिला हैं जिनसे कल्कि को पैदा होना है । तो अश्वत्थामा को दीपिका को बचाना है, विलेन को दीपिका को मारना है और पैदा होने वाले बच्चे से वो कोई सीरम extract करके अपनी जवानी वापस पानी है । प्रभास को दीपिका को पकड़ के विलेन को सप्लाई करने से कॉम्प्लेक्स मे एंट्री मिलेगी । और कॉम्प्लेक्स के बाहर एक rebel ग्रुप है जो इस कल्कि अवतार का इंतजार कर रहा है ताकि अच्छे दिन आ जाएँ । तो इसी सारी भसड़ मे कई लड़ाइयाँ होती हैं जोकि बेहद शानदार हैं । और इस कहानी को रचने मे कृष्ण, अर्जुन, अश्वत्थामा तथा कर्ण के पात्रों का सहारा लिया गया है ।
3 घंटे की मूवी है। शुरू के 10 मिनट सही पकड़ती है। फिर रिवियू मे जिसको character बिल्डिंग कह कर स्लो और बोरिंग कहा जा रहा है, मन करता है इतनी सही बन सकती मूवी मे ये boredom डालने के लिए डाइरेक्टर की थोड़ी पिटाई होनी चाहिए। character बिल्डिंग अगर इतनी बोरिंग होनी है तो उसके बेहतर तरीके हैं । यार 2 मिनट के ग्राफिक बना कर अमिताभ बच्चन से ही वॉइस ओवर ले लेते, हो जाती character बिल्डिंग। अनेक फिल्मों मे ऐसा किया गया है । लेकिन नहीं । character बिल्डिंग के नाम पर एकदम छिछोरापंती न दिखा लें तो हम भारत मे बनी फिल्म ही नहीं हैं । फास्ट फॉरवर्ड 1 घंटा पूरा का पूरा काटा जा सकता है मूवी से । character बिल्डिंग के लिए बेहतर था वॉइस ओवर मेथड से समझा देते। लोगों को फ्रेश फूड खाने को नहीं है लेकिन मूवी ये नहीं समझा पा रही की वो खा क्या रहे हैं । उनके पास कॉम्प्लेक्स के बाहर भी इतनी है फंडा रोबोटिक्स उपलब्ध कैसे हैं अगर विलेन का कब्जा पूरी प्रथ्वी के resources पर हो चुका है तो ।
पहला अश्वत्थामा का फाइट सीन आते ही mad max fury की लोकेशन की याद आ जाती है । रिबेल ग्रुप का ट्रक भी कुछ कुछ वहीं से उठाया लगता है । मतलब कुछ नया नहीं लाया गया है। विज्ञान के नाम पर आइरन मैन से उठा कर डिजिटल स्क्रीन्स परसो दी गई हैं, अवतार मूवी वाले अटैक रोबोट परोसे गए हैं जिसमे प्रभास बैठ कर लड़ रहे हैं, इसके अतिरिक्त ट्रांसफारमर से उठाए गए convertible रोबोट हैं और बुज्जी रोबोट का ह्यूमर भी ट्रांसफारमर वालों के कान्सैप्ट का कॉपी जान पड़ता है । उन्ही सब को मिला जुला कर शानदार एक्शन सीन बनाए गए हैं । लेकिन मूवी के शौकीन जो लोग विदेशी सिनेमा देखते आ रहे हैं वो हर सीन पकड़ लेंगे कि हमे तकनीकी रूप से कुछ नया नहीं परोसा जा रहा । बस जो ऑलरेडी विदेशी मूवी मे हम 15-20 सालों से देख रहे हैं उसी को मास्टर करके हमे दिखाया जा रहा है। बस ये समझ लो हमको इन्हे Spider Man को कॉपी करते समय मकड़ा मानव न दिखाने का तहे दिल से शुक्रिया कहना है ।
विलेन के रूप मे कमल हासन को ज्यादा स्क्रीन नहीं मिली है, थोड़ी बहुत स्क्रीन प्ले से वो मतलब भर का काम कर गए हैं लेकिन उनका राइट हैंड कमांडर मानस वाहियात, बहुत ज्यादा वाहियात है। इतना कमजोर स्क्रीन प्ले, या फिर ये हिन्दी अनुवाद की वजह से लग रहा होगा लेकिन इतनी बढ़िया बन सकती फिल्म को हल्का कर देते हैं । प्रभास के फालतू के कॉमेडी सीन और इस विलेन के लचर सीन ने इस मूवी को हद से ज्यादा कमजोर किया है। प्रभास फाइट के सीन तक ही ठीक रहते हैं, प्रभास के सींस मे कॉमेडी बिल्कुल नहीं डाली जानी चाहिए। उनको हीरो के रोल मे ही रक्खें वही सही है । बाहुबली मे भी उनके स्क्रीन प्रजेंस मे कामेडी न के बराबर रक्खी गई थी और वो क्या शानदार नायक बन कर उभरे थे। तो समझ नहीं आता अब उनके किरदारों मे कॉमेडी क्यूँ जबरिया घुसाई जा रही है । फाइट करते हुए कामेडी चुलबुल पांडे पर भी शूट करी है अभी तक ।
मुझे ये नहीं समझ आता साउथ के लोग जब तकनीकी रूप से और बेहतर स्क्रिप्ट लिख कर ठीक मूवी बना सकते हैं तो फिर उनको छिछली कामेडी डालने की आवश्यकता क्यूँ पड़ती है। प्रभास को फाइट मे कॉमेडी करवा के मूवी को बहुत बोझिल किया गया है । अमिताभ को देखिये जिनके अश्वत्थामा के चरित्र चित्रण मे एक भी जबरिया कॉमेडी नहीं घुसाई गई और देखिये क्या दिव्य character बनकर उभरा है ।
BGM की बड़ी तारीफ थी। मुझे नोटिस तक नहीं हुआ तो काहे का BGM, BGM मे Leo टॉप पर रहेगी । BGM पर जब भी बात होगी तो Leo से ही comparison होगा, इसलिए BGM पकड़ मे नहीं आता तो ये भी बात सही है कि बुरा तो बिलकुल भी नहीं है लेकिन ये भी नहीं है कि उसकी तारीफ बाल्टी भर के करी जाए ।
अब आते हैं साइन्स से संबन्धित कान्सैप्ट डालने पर । तो हे Bollywood तथा साउथ के निर्देशकों, कब तक हमे हॉलीवुड से जनरेटेड साइन्स कान्सैप्ट देखने पड़ेंगे? कब तक हम वही आइरन मैन से उठाई गई पारदर्शी स्क्रीन्स देखेंगे, कब तक ट्रान्स्फ़ोर्मर मे imagine करे गए रोबोट ही विज्ञान माने जाएंगे, कब तक तकनीक दिखाने के नाम पर विदेशी मूवी मे जो विज्ञान दिखाया जाता है वही दिखाया जाता रहेगा। क्या imagination मे भी हम विज्ञान मे कुछ अपना बेहतर netive तरीके का नहीं खोज सकते। उदाहरण के लिए आपका बौद्ध प्रेयर व्हील घूमा कर waves जनरेट करना एक शानदार मूव है । आध्यात्म और माइथोलोजी हमारे स्ट्रॉंग एरिया हैं और उससे हमने बाहुबली निकाल ली, बाहुबली मे जो युद्ध था वो तकनीकी रूप से पिछड़ा लेकिन सिनेमा के पर्दे पर शानदार था । तो हमे ये रोबोट वोबोट वेस्टर्न स्टाइल मे कबतक देखने पड़ेंगे। तनिक दिमाग के घोड़े दौड़ाइए, विदेशी लोग यानि हॉलीवुड वाले जब भी कुछ नया बनाते हैं तो लगभग लगभग एक लीग स्थापित कर देते हैं । उन्होने रेगिस्तान मे एक लड़ाई वाली मूवी बनाई और mad max fury बना डाली, एकदम अलग concept, उन्होने अवतार मे दूसरे गृह पर जाके लड़ाई लड़ी तो एकदम अलग कान्सैप्ट स्थापित कर दिया, बिलकुल अलग मशीने दिखाई, ट्रान्सफारमर बनाई तो एकदम अलग मशीने दिखाकर एक अलग लीग बना ली । तो हमारे लोगों का विज्ञान का कान्सैप्ट मूवी मे कॉपी पेस्ट पर काहे चल रहा है? क्या विज्ञान के अंतर्गत मूवी मे भी हमसे कुछ नया imagine नहीं हो पा रहा है? CGI इत्यादि बढ़िया है लेकिन भाई साहब कुछ नया बनाने की दिशा मे भी आगे बढ़िए । लड़ाइयों मे नई और अलग तकनीक दिखाइए, कुछ नेटिव सा। जरूरी तो नहीं बंदूकें और लेजर ही हमेशा चलें, आप धनुष, तीर इत्यादि पर कुछ प्रयोग कर सकते हैं, जानवरों पर कुछ प्रयोग कर सकते हैं, मेरा कहना है हॉलीवुड से अलग ले जाओ यार अन्यथा हम हॉलीवुड ही नहीं देख लेंगे ।
साउथ वालों, अगर हिन्दी पट्टी मे entertaining सिनेमा दिखाना है तो अपने कॉमेडी का स्टाइल थोड़ा बदल लीजिये । कसम से सैकड़ों मूवी देखी कोई हंसी नहीं आती । साउथ मे चलती होगी, यहाँ के लोगों को वो कॉमेडी बोझ ही लगती है । मेरे ख्याल से ये अनुवाद की गलती है। अनुवाद के लिए कोई बेहतर तरीका चुनिये या फिर नॉर्थ के ही कोमेडियन से अनुवाद करवाइए । हिन्दी ट्रांसलेशन “आज तुम बड़ी कातिल लग रही हो” का अनुवाद “You look like a murderer” के तरीके का करने की क्या जरूरत है। Slayer बोल के देख लो यार लेकिन छिछली कॉमेडी डाल कर मूवी मत बिगाड़ो ।
और लंबी मूवी को ये पार्ट मे बनाने का कान्सैप्ट तो ठीक है लेकिन एक पार्ट तो आज बना दिया है और अब hype बनाने के बाद अगला पार्ट 2 साल बाद ला पाओगे, कसम से तब तक न क्रेज रहेगा और न समय । और अगला पार्ट औंधे मुह गिरेगा क्यूंकी एक तो वो अपनी ही expectations के नीचे दब जाएगा और आएगा भी तब जब हम लोग लाइफ मे मूव ऑन कर चुके होंगे। इस संबंध मे जो भी पार्ट वाली मूवी बनाओ तो उनके पहले ही सारे पार्ट शूट कर लो और 1-2 महीने के अंतर पर रिलीज कर डालो । इस मामले मे Gang of wasipur का एकदम सही तरीका था। 1 महीना बाद ही पार्ट 2 आ गया था। ऐसे ही एनिमल भी ऐसे छोड़ी गई है कि पार्ट-2 आएगा। लेकिन जब तक आएगा तब तक Animal -1 कि फील वो वाली नहीं रहेगी जो अभी है । तो आप अपना ही potential बिजनेस गिरा रहे हो पार्ट वाली मूवी जब भी बनाओ तो पार्ट -2,3,4 सब शूट कर के रक्खो, जैसे ही पार्ट 1, हिट कर जाए तो 2 को एडिट करके निकाल दो, हाथों हाथ चलेगा।
अभी भी वक्त है, कल्कि मूवी काफी बढ़िया बनी है । अश्वत्थामा का चरित्र चित्रण कमाल का है । इसको एडिट करके सारा कॉमेडी सीन हटा दो और 2 घंटा कि मूवी रिलीज कर दो । बहुत ज्यादा बेहतर रहेगा।
प्रभास के चरित्र बिल्ड अप को बेहतर करो, उसको इतनी तकनीकी नालेज कैसे है, क्यूँ है, ये सब स्टोरी मे डालो, दीपिका के साथ कुछ रोचकता जोड़ो, और वैज्ञानिक लड़ाइयों मे कुछ नया इनवेंट करो । मूवी 1 लेवेल और ऊपर उठ जाएगी । और हाँ कॉम्प्लेक्स का टूर भी वॉइस ओवर से और ग्राफिक से करवा दो, दिशा पटानी कि स्टोरी पूरी की पूरी आराम से हट जाएगी । और यदि आपकी मूवी के गाने मूवी रिलीज के पहले हिट न हों, लोगों कि जुबान पर न आयें, घरों, कारों, FM इत्यादि पर न सुने जा रहे हों तो कृपया करके उनको मूवी मे सिनेमा हाल मे न डालें ।
मूवी recommended है। सिर्फ और सिर्फ अश्वत्थामा के कान्सैप्ट के शानदार execution के लिए । बाकी सब इससे बेहतर Mad Max Furry, Avtaar, Transformer और Iron Man मे मिल जाएगा।
और अरे ओ आदिपुरुष बनाने वालों, कुछ सीख लो ।
साभार- अनुराग तिवारी के फेसबुक पेज से
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