आगरा।नेपाल केसरी और मानव मिलन संस्थापक डा.मणिभद्र महाराज ने कहा कि आज कोई किसी का नहीं है। जिसको अपना बनाया वही दुख देता है। मोह भी तो एक तकलीफ है, इसलिए अपने मन को मित्र बनाओ, उसी के आधार पर अपना जीवन जीएं।
राजामंडी के जैन स्थानक में हो रहे भक्तामर स्रोत के दौरान प्रवचन करते हुए जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज ने कहा कि जीवन में अनुकूलता बहुत जरूरी है। मन को नियंत्रण करके इंद्रियों को अपने अनुकूल बनाइये। यदि पति, पत्नि, बच्चे भी आपके अनुकुल नहीं हो तो जीवन में मुश्किलें ही मुश्किलें हैं। जिसको अपना बनाते हो, उससे भी तो मोह हो जाता है, जिससे कष्ट होता है। इसलिए जीवन में शांति, सद्भभावना, समभाव जरूरी है, उसी से सुख मिलेगा।
तीर्थंकरों के विहार की चर्चा करते हुए जैन मुनि ने कहा कि जिस प्रकार शहर में किसी वीआईपी के आने पर कालीन बिछाया जाता है, वैसे ही जब भगवान महावीर व अन्य तीर्थंकर विहार करते हैं तो देवता उनके मार्ग में स्वर्ण कमल बिछा देते हैं। स्वर्ण कमलों की ये व्यवस्था भले ही हमें दिखाई न दें, लेकिन तीर्थंकर अनुभव करते हैं। हमारे साथ भी एसे चमत्कार देवता करते हैं, लेकिन यह सब गोपनीय रखे जाते हैं।
तीर्थंकर बारह महीने बिहार करते हैं। केवल भगवान ऋषभ देव व भगवान महावीर व उनके अनुयाई ही चातुर्मास में चार माह का प्रवास एक स्थल पर करते हैं,लेकिन अन्य तीर्थंकर व जैन संत किसी भी एक स्थान पर 28 दिन से अधिक दिन एक स्थान पर नहीं रुक सकते। उनका उद्देश्य होता है ‘चरैवेति-चरैवेति’ यानि चलते रहो, चलते रहो’
बहता पानी निर्मला, बंधा गंदा होय ।
साधु जन रमता भला, दाग न लागे कोय ॥
जिस प्रकार नदी के बहते हुए जल को स्वच्छ एवं निर्मल माना जाता है तथा तालाब अथवा पोखर के ठहरे हुए जल को दूषित माना जाता है, उसी प्रकार सद्पुरुष एवं साधुजन को भी नदी की भाँति सदा चलायमान ही रहना चाहिए। यदि जैन साधु ज्यादा दिन रुकेंगे तो वहां के व्यक्तियों, स्थल आदि से मोह उत्पन्न हो जाएगा, जो धर्म के प्रतिकूल है। इसलिए जैन संत लगातार यात्रा करते हैं। निडर होकर गांव-गांव, जंगल-जंगल धर्म ध्वजा फहराते हैं।
मुनिवर ने कहा कि व्यक्ति द्वारा किए गए पुण्य कभी बेकार नहीं जाते। अक्सर हमारे साथ होता कि किसी बड़ी घटना से हम बाल-बाल बच जाते हैं । यह बाल-बाल बचना ही पुण्य कर्मों का फल होता है, लेकिन पुण्य फल का भी यदि हम दुरुपयोग करेंगे तो नर्क के भागी बनेंगे। इसलिए पुण्य के साथ विवेक होना जरूरी है। पुण्य फल से हमने धन कमाया, यश मिला, लेकिन उसका हमने दुरुपयोग किया तो वह कष्ट का कारण बन सकता है। क्योंकि जो सुख मिल रहा है, वह पूर्व पुण्यों का फल है, उसका भी यदि हमने दुरुपयोग किया तो फिर पुण्यों का क्षय होता है।
जैन संत ने कहा कि पृथ्वी कितना बड़ा बोझ उठाती है, उसे कोई कष्ट नहीं होता। सभी को अपना समझ कर सब कुछ सहन करती है, लेकिन चार लोग बोझ लगते हैं-मांसाहारी, शराबी, मूर्ख और निरक्षर। ये पृथ्वी पर बोझ हैं, इसलिए एसे लोगों के सुधार की आवश्यकता है।
मानव मिलन संस्थापक नेपाल केसरी डॉक्टर मणिभद्र मुनि,बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में गुरुवार को 36 वीं गाथा का जाप माया सुरेंद्र, रुचिका राजीव चप्लावत सुनीता वीरेंद्र दुग्गर, नेमीचंद, अतिन मोनिका छाजेड़ परिवार ने लिया।
नवकार मंत्र जाप की आराधना ललित, अमित, मुक्ता बरार परिवार ने की। इस चातुर्मास में मधु बुरड़ की 36 आयंबिल, पदमा सुराना 16 नीवी उपवास की तपस्या चल रही है।
गुरुवार की धर्मसभा में केरला कोट्टायम से आए श्रद्धालु उपस्थित थे जिनका स्वागत ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक जैन सुराना ने किया। विवेक कुमार जैन, अमित जैन, महावीर प्रसाद जैन, अनिल जैन, अर्पित जैन, वैभव जैन आदि उपस्थित थे।
-up18news
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.