ईरान के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद ज़फ़र मोंटाज़ेरी ने कहा है कि अधिकारी देश की धार्मिक पुलिस (मोरैलिटी पुलिस) को भंग करने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि ईरान की संसद और न्यायपालिका भी देश में लागू किए गए ड्रेस-कोड क़ानून की समीक्षा कर रहे हैं और इसे बदले जाने की ज़रूरत पर विचार कर रहे हैं.
हालांकि अटॉर्नी जनरल ने ये नहीं बताया कि इस क़ानून में किसी तरह के बदलाव पर विचार किया जा रहा है या नहीं.
22 वर्षीय महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद से ईरान में सरकार-विरोधी प्रदर्शन जारी हैं. इन विरोध प्रदर्शनों में अब तक 300 से अधिक संख्या में लोगों की मौत हुई है.
महसा अमीनी को कथित तौर पर हिजाब पहनने के नियम के उल्लंघन के लिए हिरासत में लिया गया था.
मोरैलिटी पुलिस क्या है?
1979 की क्रांति के बाद से ही ईरान में सामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए ‘मोरैलिटी पुलिस’ कई स्वरूपों में मौजूद रही है. 1983 से यहां क सभी महिलाओं के लिए ड्रेस क़ानून बाध्यकारी कर दिया गया था.
इनके अधिकार क्षेत्र में महिलाओं के हिजाब से लेकर पुरुषों और औरतों के आपस में घुलने-मिलने का मुद्दा भी शामिल रहा है.
लेकिन महसा की मौत के लिए ज़िम्मेदार बताई जा रही सरकारी एजेंसी ‘गश्त-ए-इरशाद’ ही वो मोरैलिटी पुलिस है जिसका काम ईरान में सार्वजनिक तौर पर इस्लामी आचार संहिता को लागू करना है.
‘गश्त-ए-इरशाद’ का गठन साल 2006 में हुआ था. ये न्यायपालिका और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स से जुड़े पैरामिलिट्री फ़ोर्स ‘बासिज’ के साथ मिलकर काम करता है.
Compiled: up18 News