हर साल 3 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांग दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दिव्यांगों के प्रति व्यवहार में बदलाव लाना। विकृति लोगों के साथ ही अन्य परिजनों को उनके अधिकार के लिए जागरूकता फैलाना। 1992 के बाद से दुनियाभर में विश्व दिव्यांग दिवस मनाया जा रहा है। इस दिवस को मनाने का एक और उद्देश्य है उनके प्रति करूणा, आत्म – सम्मान, और जीवन को बेहतर बनाने का समर्थन और सहयोग दोनों करें।
दिव्यांगता किसी व्यक्ति के शरीर में होने वाली शारीरिक और मानसिक कमी होती है, जो कभी प्राकृतिक भी हो सकती है और कभी परिस्थितिजन्य भी, जिससे वह अन्य लोगों पर आश्रित रहने को बाध्य होते है। सोचने वाली एक बात यह है कि, हम आज इतने आधुनिक हो चुके है।एक वैज्ञानिक युग मे रहने लगे है।विज्ञान और वैज्ञानिक आए दिन कोई ना कोई नया अविष्कार करते रहते है, फिर चाहें वह मनुष्य को पुनः अमरता दिलाने की खोज हो या इंसानी शरीर के क्लोन बनने की बात हो, हम सब जगह आगे है,लेकिन क्यों हम ऐसे इंसानों को पूर्णतः ठीक नही कर पाते जो मुक़बधिर, नेत्रहीन, अपंग, पोलियोंग्रस्त या ऐसी किसी भी अक्षमता के शिकार है।अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस इन्हीं सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर पूरे विश्व द्वारा किया गया एक सराहनीय प्रयास है, जिसकी सहायता से यह कोशिश की जाती है कि, ऐसे व्यक्तियों के प्रति लोगों का रवैया सकारात्मक बने।
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस की शुरुआत, शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के साथ समाज में होने वाले भेद-भाव को समाप्त करने के उद्देश्य से हुई थी। संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा ने 1981 को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के रूप में घोषणा की थी, जो आगे जाकर 1991-92 में 3 दिसम्बर से अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के तौर पर विश्व के साथ-साथ भारत जैसे कई देशों में मनाया जाने लगा।
भारत देश में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन इस समस्या से जुड़े सभी कार्य यहीं से संचालित होते है।1992 से ही पूरी दुनिया में इस दिन एक थीम लेकर काम किया जाता हैं।इस वर्ष दिव्यांग व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2022 का विषय है
“समावेशी विकास के लिए परिवर्तनकारी समाधान: एक सुलभ और न्यायसंगत दुनिया को बढ़ावा देने में नवाचार की भूमिका”
2022 में दिव्यांग व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस का वैश्विक स्मरण समावेशी विकास के लिए नवाचार और परिवर्तनकारी समाधानों के व्यापक मुद्दे पर केंद्रित होगा।
दिव्यांगता क्या है :
सबसे पहले यह जान लें कि आखिर दिव्यांगता क्या है? अगर इसे सरल भाषा में समझें तो दिव्यांगता एक ऐसी शारीरिक या मानसिक अक्षमता (कमी) है, जिस वजह से कोई व्यक्ति किसी काम को कर पाने में सामान्य व्यक्तियों की तरह अक्षम होता है। भारत में ऐसे व्यक्ति को दिव्यांगता की श्रेणी में लिया जाता है, जो चिकित्सा के आधार पर 40 फीसदी से कम दिव्यांगता का शिकार न हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट की मानें तो दुनिया की करीब 15 फीसदी आबादी किसी तरह की दिव्यांगता से पीड़ित है। भारत में यह प्रतिशत 2.21 है।
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस का उद्देश्य
हमारे परिवेश में,आस-पड़ोस, गली मोहल्लों में ऐसे कितने लोग है, जिनके दिव्यांग होने की जानकारी हमें नही है। एक आकड़ें के अनुसार पूरे विश्व में अल्पसंख्यक तबके की बात करें तो दिव्यांगों का प्रतिशत 14-15% लेकर सबसे निचलें स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा दिव्यांग दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक हर क्षेत्र में उनके अधिकारों का शोषण कोई अन्य व्यक्ति ना कर सकें। समाज में उनके साथ भी वैसा व्यवहार किया जायें, जो किसी अन्य व्यक्ति के साथ किया जाता है। उन्हें भी समानता का पूर्ण अधिकार मिलें, ताकि उनके दिल में कभी कोई हीनभावना घर ना करें।
दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन :
यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की एक मान्यता प्राप्त मानव अधिकार संधि है,जिसके अंतर्गत दिव्यांग व्यक्तियों के आत्म-सम्मान और अधिकार की रक्षा करने के उद्देश्य समाहित हैं। इस कन्वेंशन के तहत दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को बढ़ावा देने, रक्षा, और मानव अधिकारों द्वारा सुनिश्चित करने और उन्हें जीवन का पूरा आनंद लेने में मदद करता है और कानून के तहत पूर्ण समानता का आनंद लेने के लिए सक्षम बनाता है। इस कन्वेंशन के बाद से मानव अधिकारों के साथ समाज के पूर्ण और संपूर्ण सदस्यों के रूप में उन्हें (दिव्यांग) देख-रेख की दिशा में दान, चिकित्सा उपचार और सामाजिक सुरक्षा की वस्तुओं के रूप में दिव्यांग व्यक्तियों को देखने के सन्दर्भ में वैश्विक आंदोलन में तेजी आई है। यह कन्वेंशन इस दुनिया में मानव अधिकार से जुडी पहली संधि थी, और इसके अंतर्गत दिव्यांग व्यक्तियों के सतत और सौहार्दपूर्ण विकास पर पूरा ध्यान दिया गया है।
13 दिसंबर, 2006 के दौरान, संयुक्त राष्ट्र महासभा नें कुछ तथ्यों की स्थापना की थी जिस पर 30 मार्च, 2007 को हस्ताक्षर किया गया था।यह नियम 3 मई 2008 को लागू किया गया था। इस नियम में 159 हस्ताक्षरकर्ता और 151 दल शामिल हैं। साथ ही इसमें यूरोपीय संघ (ईयू) भी शामिल है। इस कन्वेंशन पर दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर बनी समिति द्वारा नजर रखी जाती है।
दिव्यांगता भेदभाव अधिनियम :
दिव्यांगता भेदभाव अधिनियम 1995 (डीडीए) यूनाइटेड किंगडम की संसद के द्वारा पारित एक अधिनियम है। हालांकि वर्तमान में इसे समानता अधिनियम 2010 के रुप में पहचाना जाता है। यह अधिनियम उत्तरी आयरलैंड को छोड़कर दिव्यांग व्यक्तियों के संबंध में लोगों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने का एक अधिनियम है। यह खास अधिनियम रोजगार, वस्तुओं,सेवाओं, शिक्षा और अन्य सामाजिक गतिविधियों के प्रावधान और भेदभाव को समाप्त करने के सन्दर्भ में अपनी महत्ता रखता है।
भारत में सरकार की ओर से “सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय” नाम के एक मंत्रालय का गठन ही, इसी उद्देश्य से किया गया है कि, किसी दुर्घटना या जन्म से मिली दिव्यांगता से ग्रसित लोगों के हित और प्रगति के लिए कार्य निर्बाध रूप से निरंतर चलता रहे।
दिव्यांग बच्चा है परिवार में तो,उसे जल्द-से-जल्द चिकित्सक को दिखाएं।
आर्थिक रूप से कमजोर होने पर दिव्यांगों के लिए काम करने वाले किसी एनजीओ या सरकारी संस्थान से मदद मांगें। आज ऐसे कई संस्थान मौजूद हैं।
जितनी जल्दी हो सके, उसकी वोकेशनल ट्रेनिंग शुरू करवा दें। इसके लिए एनजीओ और सरकारी संस्थानों की मदद लें सकतें हैं।
बिना किसी भेदभाव के रखें ख्याल:
दिव्यांग बच्चे को अपने परिवार से बहुत ज्यादा लगाव और प्यार होता है, क्योंकि बाकी दुनिया में वे लगभग उपेक्षित रहते हैं। ऐेसे में सबसे बड़ी जिम्मेदारी परिवार की है। उन्हें अपेक्षाओं को परे रखना चाहिए। दिव्यांगों को एक बोझ नहीं, बल्कि जिम्मेदारी की तरह समझना चाहिए।दिव्यांग बच्चों का हमें बिना किसी भेदभाव से ख्याल रखने की आज महती आवश्यकता है।कई बार जिम्मेदारी से बचने को लोग अपनों को सिर्फ इसलिए छोड़ देते हैं, क्योंकि वे दिव्यांग हैं या उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं। जबकि उन्हें कहीं ज्यादा देखभाल की जरूरत है। परिवार ही उन्हें छोड़ देगा, तो रिश्तों का मतलब क्या है? रिश्ते तो निस्वार्थ होते हैं न? जैसा कि मैंने विद्यालय स्तर पर इन विशेष बच्चों के साथ रहकर अनुभव किया यदि हम इन्हें स्नेह देंगें तो ये हमें कहीं अधिक प्यार देतें हैं। अतः वर्तमान परिप्रेक्ष्य के लिहाज से मेरा यही मानना है कि दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति नफरत नहीं स्नेह का भाव रखें। दिव्यांग को भरपूर प्यार दें और उन्हें आत्म निर्भर व स्वावलंबी बनाने का प्रयास करें, ताकि वह अपने को बोझ नहीं समझे
दिव्यांगता शारीरिक और मानसिक होने से ज़्यादा हमारी सोच में है, जो हम इन्हें हीन और अपने से कमतर आँकतें है। ज़रूरत है तो ऐसी सोच बदलने की।
-मोनिका शर्मा
‘विशेष शिक्षा’ अध्यापिका(दिल्ली)