भारत का अन्तर्राष्ट्रीय कृषि व्यापार और गेहूं-आटे की कीमतें…

अन्तर्द्वन्द

राष्ट्र के लिए बहुत कम क्षण ऐसे आते हैं की उपलब्धि छोटी हो या बड़ी सभी का मन प्रफुल्लित हो जाता है। ऐसी ही एक उपलब्धि है देश के अन्तर्राष्ट्रीय कृषि और खाद्यान व्यापार का बढ़ना जो कि किसानों के बेचैन मन को कुछ करार देगा । देश ने आजाद हिन्दोस्तान में देखा है किसानों की बदहाली को । पिछले वर्ष के किसान आंदोलन को भी हमने सड़कों पर देखा है। सन 2022 तक उनकी आमदनी दुगनी कर दी जाएगी, ये सपना भी सपना होते हम सब देख रहें हैं। ऐसे में कृषि और खाद्यान का विदेशी व्यापार बढ़े और वह भी धनात्मक हो अर्थात आयात की अपेक्षा निर्यात ज्यादा हो तो यह एक चमत्कार न भी हो तो सुकून देने वाली स्थिति तो है ही । इससे सभी किसानों की स्थिति तो नहीं बदल जाएगी लेकिन भविष्य का एक रास्ता तो बना। आईये पड़ताल करें और देखें-जानें कृषि और खाद्यान व्यापार की स्थिति को ।

पहले कृषि व्यापार की स्थिति का आंकलन दस साल के आँकड़ों (सन 2012-13 से सन 2021-22) के आधार पर किया जाय । आँकड़े क्या कहते हैं? आँकड़े बताते हैं कि कृषि पदार्थों का निर्यात हो या आयात इन वर्षों में उतार चढाव की स्थिति दिखाई देती है जो हमारे प्रयासों पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ी करती है । कृषि निर्यात को अर्थात भारत द्वारा अन्य देशों को अपनी सामग्री बेचने की स्थिति को आइये देखें । सन 2021-22 में निर्यात पिछले वर्ष की अपेक्षा तेजी से बढ़ा है। यह 50.27 बिलियन डॉलर रहा। इसके पूर्व वर्ष सन 2020-21 में यह 41.90 बिलियन डॉलर ही था । तो इसे अभूतपूर्व वृद्धि कह सकते हैं और इसका श्रेय आपूर्ति चेन के सभी सम्बंधित कड़ियों को दे सकते हैं । पीएम् के साथ साथ हम सभी इसी सफलता से प्रफ़ुल्लित हो रहे हैं । लेकिन जरा पूर्व के वर्षों के आँकड़ों की भी पड़ताल कर ली जाय ।सन 2012-13 (41.73 बिलियन डॉलर) की अपेक्षा सन 2013-14 में कृषि निर्यात बढ़ा था (43.25 बिलियन डॉलर) और सन 2021-22 को छोड़ दें तो विगत वर्षों में वह सर्वाधिक रहा । सन2014-15, सन2015-16, सन2016-17, सन2017-18, सन2018-19, सन2019-20 में यह क्रमसः 39.08 बिलियन डॉलर, 32.81 बिलियन डॉलर, 33.70 बिलियन डॉलर, 38.90 बिलियन डॉलर, 39.20 बिलियन डॉलर और 35.60 बिलियन डॉलर था । स्पष्ट है कि कृषि निर्यात व्यापार मोदी काल में, पूर्व काल की तुलना में (सन 2021-22 अपवाद वर्ष था) घटा और कम ही रहा । यह मोदी सरकार की असफलता को रेखाँकित करता है । लेकिन सन 2021-22 अपवाद वर्ष क्यों रहा है ? क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कीमतें यूक्रेन युद्ध के कारण बढ़ी हैं और भारतीय गेहूँ प्रतिस्पर्धी हुआ और भारतीय व्यापारियों ने बाजार में पैठ बढ़ाई।

पीएम् ने अभी हाल में कहा था कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूँ की माँग में वृद्धि का फायदा उठाने कि जरूरत है और गुणवत्तापूर्ण निर्यातों को बढ़ा कर हमे स्थाई बाजार का निर्माण करना चाहिए । सही कहा उन्होंने ।लेकिन एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि आपूर्ति चेन का निर्माण अनेक कदमों से मिल कर बनता है ।सरकार की नीतियाँ; मंत्रालयों और विभागों में समन्वय; नेतृत्व और अधिकारी वर्ग की चैतन्यता और तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, किसानों द्वारा उत्पादन बढ़ाने और विविधीकरण का प्रयास, खाद्यान उत्पादन में वृद्धि के प्रयास के साथ-साथ अन्य फसलों, फल, सब्जी, पशु और मछली पालन उद्योग पर ध्यान, भण्डारण, घरेलू और विदेशी यातायात के साधनों की उपलब्धता, निज़ी और सरकारी कंपनियों की चपलता, अंतर्राष्ट्रीय बाजार, अंतर्राष्ट्रीय कीमतों और मानकों की जानकारी आदि अनेक कड़ियाँ हैं जिन्हे सजोने और पिरोने की आवश्यकता होती है । किन्तु विगत वर्षों में हम आपूर्ति चेन को दुरुस्त करने में कुछ ही सफल रहे हैं।

अब कृषि जन्य वस्तुओं के आयात व्यापार की स्थिति को देखते हैं । पिछले दस वर्षों में अर्थात सन 2012-13 से सन 2021-22 के बीच सबसे कम आयात सन 2013-14 में (15.53 बिलियन डॉलर) और सबसे अधिक आयात सन 2021-22 में (32.42 बिलियन डॉलर) किया गया । यही कारण है कि सन 2013-14 में व्यापार आधिक्य सर्वाधिक (22.72 बिलियन डॉलर) था और आधिक्य ही बढ़ाना लक्ष्य होता है । सन 2021-22 में निर्यात और आयात दोनों ही सर्वाधिक रहने के कारण व्यापार आधिक्य (17.85 बिलियन डॉलर) कम था ।तो स्पष्ट है कि हमने सन 2021-22 में न केवल निर्यात बढ़ाया है वरन आयात भी ज्यादा किया है ।

कृषि निर्यात और आयात व्यापार को और गहरे से समझने की जरूरत है । किन वस्तुओं का निर्यात और आयात हम कर रहे हैं, को जानना भविष्य के व्यापार वृद्धि के लिए आवश्यक है । हमारे निर्यात में मोटे रूप से सबसे महत्वपूर्ण पदार्थ हैं समुद्री उत्पाद, गैर बासमती चावल, बासमती चावल, मसाले, चीनी, भैंस का मांस । कुल निर्यात में इनका आधे से ज्यादा की हिस्सेदारी होती है । इनके अलावा हम गेहूँ, अन्य अनाज, फल और सब्जी इत्यादि का भी निर्यात करते हैं। विगत वर्षों में समुद्री उत्पाद का निर्यात तेजी से बढ़ा है । कुल निर्यात में इसका भाग सन 2020-21 में 14.2 प्रतिशत (5962.39 मिलियन डॉलर) था जो सन 2021-22 में बढ़ कर 15.46 प्रतिशत (7772.36 मिलियन डॉलर ) हो गया था ।यह एक तीव्र वृद्धि थी । सरकार ने भी इसका निर्यात बढ़ाने के लिए काफी प्रयास किया है ।इसी तरह गैर बासमती चावल,चीनी और कच्ची कपास के निर्यात, सन 2020-21 की तुलना में सन 2021-22 में बढ़े हैं । कुल निर्यात में इनका योगदान सन 2020-21 में क्रमसः 11.48 प्रतिशत, 6.65 प्रतिशत और 4.52 प्रतिशत रहा । सन 2021-22 में यह बढ़ कर क्रमसः 12.18 प्रतिशत, 9.15 प्रतिशत और 5.60 प्रतिशत हो गया था ।

निर्यात व्यापार का यह एक सकारात्मक पक्ष है । सबसे प्रसन्नता का विषय है कि गेहूँ का निर्यात सन 2020-21 की तुलना में सन 2021-22 में तेजी से बढ़ा है । कुल कृषि निर्यात में गेहूँ का भाग सन 2020-21 में 1.35 प्रतिशत (567.93 मिलियन डॉलर) मात्र था जो बढ़कर सन 2021-22 में 4.21प्रतिशत (2119.98 मिलियन डॉलर) हो गया । इससे देश प्रसन्न और पीएम् मगन हैं । किन्तु कुल कृषि निर्यात में मसालों, बासमती चावल और भैंस के मांस के निर्यात में कमी आयी है जो निराश भी करता है ।

अब आयातित वस्तुओं को देखा जाय। हम मुख्यतः खाने का तेल, ताजे फल, दाल, मसाला, काजू, रबर आयात करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण आयात खाने के तेल का है जिसका देश के कुल कृषि आयात में आधा से ज्यादा भाग होता है । सन 2020-21 में कुल कृषि आयात व्यय 21652.05 मिलियन डॉलर था जिसमें खाने के तेल पर 11089.12 मिलियन डॉलर (51.21%)) व्यय किया गया । जबकि सन 2021-22 में इस पर 18991.52 मिलियन व्यय किया गया जो कि कुल कृषि आयात का लगभग 58 प्रतिशत होता है । सन 2021-22 में रबर पर खर्च बढ़ा है । किन्तु फल, दाल, मसाला, काजू पर होने वाला व्यय घटा है जो कि अच्छी स्थिति है ।

आइये अब इस विवेचन के निष्कर्ष और निहितार्थ को समझा जाय.। आँकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के कार्यकाल में अन्तर्राष्ट्रीय कृषि व्यापार, सन 2013-14 की तुलना में घटा है लेकिन केवल सन 2021-22 में इसमें आशातीत वृद्धि हुई है। तो देश और किसानों की स्थिति सुधरती कैसे ? कुल निर्यात में समुद्री उत्पाद, गैर बासमती चावल, चीनी, कच्ची कपास और विशेष रूप से तेजी से गेहूँ का निर्यात सन 2020-21 की तुलना में सन 2021-22 में बढ़ा है । किन्तु कुल कृषि निर्यात में मसालों, बासमती चावल और भैंस के मांस के निर्यात में कमी आयी है जो हमारे विविधीकरण के प्रयासों पर एक प्रश्न चिन्ह है । हमारा सबसे महत्वपूर्ण आयात, खाने के तेल का है जिसका देश के कुल कृषि आयात में आधा से ज्यादा भाग होता है । सत्तर के दशक की शुरुवात तक हम आत्मनिर्भर थे किंतु अब हम आयात पर निर्भर हैं ।ऊपर से यूक्रेन युद्ध के कारण सूरजमुखी और सोयाबीन तेल का आयात प्रभावित हुआ और इंडोनेशिया ने भी पाम तेल के निर्यात पर रोक लगा रखी थी जो समस्या को और जटिल कर रहा था । तो विगत वर्षों में इन समस्याओं पर ठीक से ध्यान न देने का कुफल सामने आ रहा है । सरकार ने अनेक वर्ष बर्बाद किये हैं । एक वर्ष तो वह किसानों से उलझी हुई थी किन्तु आपूर्ति चेन को दुरुस्त नहीं कर पाई । देश के कृषक वर्ग से खाद्यान के अतिरिक्त गैर खाद्यान जैसे फल, सब्जी, दूध, माँस, मछली इत्यादि के उत्पादन बढ़ाने के लिए भी ध्यान देने की अपील करनी थी। माहौल बनाने की आवश्यकता थी । लेकिन हम उलझने में व्यस्त थे किसानों से। तो संकट बढ़ना ही था । यद्यपि यह भी सच है कि सरकार ने इधर दो तीन वर्षों में कमर कसी है और कृषि विविधीकरण के लिए कुछ सचेत हुई है। उसनें समुद्री उत्पाद, पाम तेल का घऱेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए अनेक कदम उठाये है। तो देर आये दुरुस्त आये। तो सभी को बधाई ।

आइये अब गेहूँ और आटे की बात की जाय । यूक्रेन युद्ध ने गेहूँ के उत्पादन, निर्यात और किसानों को हो सकने वाले फायदों के प्रश्न को केंद्र में ला खड़ा कर दिया है ।जैसे एक बिजली कौंध गई हो। क्या लेखक, क्या विचारक, क्या सीएम् और क्या पीएम् सभी गेहूँ के अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में छा जाने की घोषणा करने लगे ।लेकिन प्रश्न तो यह है कि क्या हम इतना उत्पादन करते हैं की विश्व गुरु बन जाते ? उत्तर है, हम अपनी आवश्यकता से थोड़ा ही अधिक उत्पादन कर पाते हैं । ऊपर से इस वर्ष गेहूँ का उत्पादन 11.12 करोड़ टन के पूर्व के आंकलन की अपेक्षा 10.5 करोड़ टन ही होने की संभावना है । फिर सरकार ने गेहूँ निर्यात का 10 मिलियन टन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रख दिया । संभवतः सरकार की इस घोषणा के पीछे दो सोच थी । एक, गेहूँ के अंतरास्ट्रीय बाजार में बढती कीमतों से फायदा उठाना और विदेशी मुद्रा कमाना तथा दूसरा, जनता एवं किसानों को दिखाना की बाजार आधारित अर्थ व्यवस्था में उन्हें एम्एसपी से ज्यादा कीमतें मिलती हैं । लेकिन हम सब यह विचार ही नहीं कर सके कि घरेलू मांग और कीमतें भी प्रभावित होंगी । ऐसा ही हुआ है । गेहूं और आटे का भाव आसमान छू रहा है । गेहूं की कमी के कारण अब यूपी सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये गेहूं की जगह चावल देने का ऐलान कर दिया है। उत्साह में या दबाव में गेहूं और फिर आटे के निर्यात ने देश में गेहूँ और आटे की कीमतों को आसमान में पंहुचा दिया है । गरीब वर्ग त्रस्त होने लगा है तो पहले सरकार ने 14 मई को गेहूँ के निर्यात पर और अब दो दिन पहले आटे के निर्यात पर रोक लगा दी है । वस्तुतः इस साल अप्रैल-जुलाई में सालाना आधार पर आटे का निर्यात 200 फीसदी बढ़ा था । तो खाद्य सुरक्षा प्रभावित होनी ही थी । निर्यात लॉबी की सक्रियता ने कीमतों को बढाने में योगदान किया है और उसका खामियाजा गरीब जनता भुगत रही है, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ऐसा तो नवउदारवादी बाजार अर्थव्यवस्था में, जिसके मोदी जी पोषक हैं, हम अक्सर देखेंगे ।

(लेखक- विमल शंकर सिंह, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं)

( लेखक का आभार उन लेखकों, प्रकाशकों एवं संस्थाओ को है जिनकी रिपोर्टो एवं लेखन सामग्री का उपयोग इस आलेख को तैयार करने में किया गया है)

 


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