90 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया की हिन्दू रीति रिवाज…

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बाली में वह 25 मार्च की दोपहर थी. लंबे समय बाद मैं ख़ुद को सुन सकती थी. स्कूटरों की आवाज़ नहीं आ रही थी. नूडल्स बेचने वालों का शोर नहीं था. यहां तक कि ऊपर उड़ते विमानों की आवाज़ भी नहीं थी.

उनकी जगह मैंने ड्रैगनफ्लाई की भनभनाहट सुनी और एक मेढ़क को उछलते देखा. मैं चुपचाप बैठकर द्वीप के नए साल के दिन “न्येपी” की परंपरा में खोने की कोशिश कर रही थी.

बाली में यह “मौन दिवस” होता है जब 24 घंटे के लिए लोग अपने घरों में रहते हैं. वे बीते साल का मूल्यांकन करते हैं और आने वाले समय के लिए ख़ुद को तैयार करते हैं.

आम तौर पर बाली में नए साल का पहला दिन तूफान के बाद की शांति जैसा होता है. नए साल की पूर्वसंध्या पर बाली में ख़ूब धूम-धड़ाका होता है.

दानव के विशाल पुतले

महीनों पहले से लोग बांस और काग़ज़ की लुगदी से दानव के विशाल पुतले बनाने में लगे रहते हैं. उनको ओगोह-ओगोह कहा जाता है. नए साल से एक दिन पहले भव्य समारोह में गेमेलन बैंड के साथ उन पुतलों की परेड कराई जाती है.

बाली के लोग पेनग्रुपुकन की रस्म निभाते हैं, जिसमें नारियल के सूखे पत्तों के जलते हुए बंडल को मंदिरों और इमारतों की नींव में रगड़ा जाता है और फटे हुए बांस के डंडे पटककर दानव को भागने के लिए कहा जाता है.

समय के साथ, नए साल की पूर्व संध्या का यह समारोह बड़ा सार्वजनिक उत्सव बन गया है. मोहल्लों में बांस की मशालें जलाई जाती हैं जिससे पूरा मोहल्ला और शहर दानव से मुक्त हो सके. बाली का नया साल शक संवत् पंचांग से तय होता है, जो चंद्रमा की गति पर आधारित है.

शक राजवंश की स्थापना 78 ईस्वी में भारतीय राजा कणिष्क ने की थी. हिंदू धर्म प्रचारक इसे लेकर जावा पहुंचे थे और वहां से यह बाली पहुंचा.
90 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में बाली एकमात्र द्वीप है जहां हिंदू बहुसंख्यक हैं.

पूजा, प्रसाद और बलि

न्येपी का जश्न तीन दिन पहले से शुरू हो जाता है. मेलास्ती की रस्म में देवताओं की पवित्र मूर्तियों को मंदिरों से निकालकर पास के समुद्र तट, झील, नदी या झरने तक ले जाया जाता है.

उनकी शारीरिक, आध्यात्मिक अशुद्धियों को साफ़ किया जाता है और लोग दोबारा से शुद्ध हुए देवताओं की पूजा करते हैं. दो दिन बाद यानी न्येपी से एक दिन पहले दोपहर में तवुर-अगुंग में जानवरों की बलि दी जाती है.
दानवों को कच्चा मांस, अंडे और शराब भेंट की जाती है और तेज़ संगीत बजाया जाता है. मान्यता है कि इससे पहले उनका ध्यान खींचा जाता है, फिर उनको ख़ुश करके वापस भेजा जाता है.

गैरेट काम पिछले 30 साल से दक्षिण-पूर्व एशिया में रह रहे हैं. गियनार के पुरा सामुआन टिगा मंदिर में वह एकमात्र गैर-बाली अनुष्ठान सहायक हैं.

वह कहते हैं, “मंदिर में होने वाले हर समारोह से पहले दानवों को प्रसन्न करने के लिए बलि (कारू) दी जाती है ताकि उनकी इच्छाएं पूरी हो सकें और वे परोपकारी देवता बन जाएं.”

न्येपी से एक दिन पहले दोपहर में हर गांव, शहर और ज़िले में पूरे साल इकट्ठा होने वाले दानवों को बड़े पैमाने पर खाना-पीना भेंट किया जाता है.

हर 10 साल और 100 साल पर द्वीप के बड़े मंदिरों में विशाल आयोजन होता है. इस मौक़े पर एक दशक और एक सदी में जमा हुए सारे दानवों को ख़ुश करके उनको भगाया जाता है.

इस साल, इस उत्सव को बहुत छोटा रखा गया. गैरेट काम कहते हैं, “केवल बंजार (स्थानीय समुदाय) के स्तर पर ओगोह-ओगोह की अनुमति दी गई, कोई परेड नहीं हुई.”

कुछ युवा संगठनों ने इसका विरोध भी किया क्योंकि वे कई हफ्तों से लगे हुए थे और उन्होंने तैयारियों पर हज़ारों डॉलर ख़र्च किए थे. लेकिन ज़्यादातर लोग समझते हैं कि परेड पर पाबंदी क्यों लगाई गई.

मौन रखने का दिन

एक चीज़ नहीं बदली. जहां एक तरफ़ दुनिया भर के लोग कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन को सिस्टम के लिए झटका समझते हैं, वहीं बाली के लोगों को इसका अभ्यास है.

हर साल न्येपी के मौक़े पर यह द्वीप ख़ामोश हो जाता है. किसी को घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी जाती.

उनको अपना समय घर पर ही काटना होता है. आग नहीं जलाई जाती, बिजली बत्ती नहीं जलाई जाती. मतलब कोई काम नहीं, कोई मनोरंजन नहीं.
व्यवसायों को बंद करा दिया जाता है. यहां तक कि 24 घंटे के लिए हवाई अड्डे भी बंद रखे जाते हैं.

बाली के कुछ लोग उपवास भी रखते हैं. वे अपने फ़ोन बंद कर देते हैं और बहुत ज़रूरी होने पर फुसफुसाने के अलावा कोई बात नहीं करते. यहां तक कि कुत्ते और मुर्गे भी आम दिनों के मुक़ाबले शांत रहते हैं.

स्थानीय पुलिस सड़कों पर और समुद्र तटों पर गश्त करती है ताकि कोई व्यक्ति नियम न तोड़े.
बाली के लोगों का विश्वास है कि यदि कोई दानव पलटकर आए तो वह द्वीप को निर्जन समझकर लौट जाए.

बाली के लोग इस समय का उपयोग पिछले साल के बारे में सोचने और भविष्य के लक्ष्य निर्धारित करने के लिए भी करते हैं.

श्री दरविती बाली में तबनान के एक गांव में पली-बढ़ी हिंदू हैं. फ़िलहाल वह स्कूल सेक्रेटरी और ग्रीन स्कूल की बोर्ड मेंबर हैं.

वह कहती हैं, “इस समय का मौन ध्यान लगाने का सबसे अच्छा तरीक़ा है. मैं पिछले 40 साल से न्येपी मना रही हूं. जैसे-जैसे मेरी उम्र हो रही है, मैं इसके पीछे के महत्व को समझ रही हूं.”

चिंतन और नए लक्ष्य

एक दिन के लिए ही सही, घर में परिवार के साथ समय बिताने से ख़ुशी मिलती है. बीते हुए समय के बारे में चिंतन भविष्य में हमें और अधिक उत्पादक बनने में मदद करता है.

गैरेट काम के मुताबिक़ इन दिनों इनकी अहमियत और बढ़ गई है क्योंकि बाली के लोग आम दिनों में बहुत व्यस्त रहते हैं और घर पर शायद ही कभी ठहरते हैं.

“न्येपी में उन्हें पूरे दिन परिवार के साथ वक़्त बिताने का मौक़ा मिलता है. ध्यान भटकाने के लिए न टीवी होता है न ही इंटरनेट.”

बाली में सोशल डिस्टेंसिंग के उपाय लागू हैं. कोरोना वायरस के कारण इस साल न्येपी को एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया था. मौन दिवस के फ़ायदे भी बढ़े हैं.
गैरेट काम कहते हैं, “पिता अपनी संतानों को गेमेलन संगीत और कला सिखा रहे हैं. मेरे पड़ोसी ख़ुद से युकुलेले (नाइलॉन तार वाली गिटार) बजाना सीख रहे हैं.”

“छोटी दुकान या सड़क किनारे ढाबे चलाने वाली मांएं अपनी बेटियों को घर के कामकाज सिखा रही हैं ताकि वे उनका हाथ बंटा सकें.”

“इन सब चीज़ों का मतलब है एक परंपरा को आगे बढ़ाना जो स्कूली कक्षाओं में नहीं सिखाई जा सकती और बड़ों के प्रति सम्मान जिनकी भूमिका आज बढ़ गई है.”

प्रकृति का सम्मान

न्येपी का पर्यावरण पर भी अच्छा असर दिखा है, भले ही यह 24 घंटे के लिए ही क्यों न हो.

इंडोनेशिया के मौसम विज्ञान, जलवायु विज्ञान और भू-भौतिकी एजेंसी के 2015 के अध्ययन में पाया गया कि मौन दिवस के दिन बाली के शहरी क्षेत्र में हवा में झूलते धूलकण (TSP) 73 से 78 फीसदी तक कम हो जाते हैं.
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) के विश्लेषण के मुताबिक न्येपी दिवस पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 33 फीसदी कम हो जाता है.

दरविती कहती हैं, “अगर हम पूरे देश में यह आयोजन करें तो इसका असर और बड़ा होगा. न सिर्फ़ हमें एक ब्रेक मिलेगा बल्कि पर्यावरण को भी कार्बन से मुक्त होने का मौका मिलेगा.”

ऐसे समय में जबकि दुनिया की आधी आबादी लॉकडाउन में है, सदियों से चली आ रही संस्कृति से कुछ सबक लेने का इससे बेहतर मौका दूसरा नहीं हो सकता.
कोविड-19 से पहले बाली दुनिया का एकमात्र ऐसा एयरपोर्ट था जो नये साल के मौके पर 24 घंटे के लिए बंद कर दिया जाता था.

दरविती कहती हैं, “पर्यटन पर टिके द्वीप के लिए यह बड़ा फ़ैसला होता है, लेकिन इसमें परंपराओं के प्रति सम्मान झलकता है.”

“पश्चिमी देश यहां से ज़िंदगी की छोटी-छोटी चीज़ों का सम्मान करना सीख सकते हैं- प्रकृति से जुड़ना, परिवार से जुड़ना, ख़ुद से जुड़ना, ज़िंदगी की रफ़्तार को धीमा करना और सितारों की ओर देखना.”

मैंने उनकी सलाह मानी. शाम ढलते ही मैं बगीचे में गई और सितारों से भरे आसमान को देखा. ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था.

बिजली की बत्तियां बंद थीं. गैरेट काम कहते हैं, “प्रकाश और ध्वनि प्रदूषण के कारण बहुत कुछ खो जाता है.”
इस साल जब न्येपी को एक दिन के लिए बढ़ाया गया तो मैं नहीं कह सकती कि मैं उदास थी.

एक अतिरिक्त दिन के लिए कोई काम नहीं, चूल्हा-चौका नहीं, मनोरंजन नहीं या यात्रा नहीं- यह इतना बुरा नहीं था. मैंने अगले 24 घंटे के लिए फिर से लैपटॉप बंद रखने का फ़ैसला किया.

-इली अर्ल्स
बीबीसी ट्रैवेल