आर्टिकल 370 पर 15वें दिन की सुनवाई जारी, सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता से मांगा संविधान में निष्ठा का एफिडेविट

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इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मोहम्मद अकबर लोन हलफनामा (एफिडेविट) दायर करें। इसमें बताएं कि उनकी भारतीय संविधान में निष्ठा है। वहीं, कपिल सिब्बल ने कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से एनसी नेता मोहम्मद अकबर लोन द्वारा 2018 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कही गई बातों से सहमत नहीं हैं।

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच इस मामले में सुनवाई कर रही है। सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पैरवी कर रहे हैं।

कश्मीरी पंडितों ने लगाई याचिका

कश्मीरी पंडितों ने 3 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें याचिकाकर्ता लोन पर सवाल उठाए गए थे। ‘रूट्स इन कश्मीर’ संगठन ने दावा किया कि लोन घोषित तौर पर पाकिस्तान का समर्थन करते हैं। वो विधानसभा में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगा चुके हैं।

4 सितंबर को कोर्ट रूम में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बीच ये बहस हुई…

सिब्बल– एक राजनीतिक प्रक्रिया का एक राजनीतिक समाधान जरूर होना चाहिए।

सीजेआई– आपके मुताबिक संविधान के तहत कश्मीर का कोई समाधान नहीं है। अंततः यही तर्क है कि समाधान राजनीतिक होना चाहिए

सिब्बल– उन्होंने विधानसभा के स्थान पर संविधान सभा का स्थान ले लिया। फिर उन्होंने 356 लगा दिया और संसद ने विधानसभा बनकर अपनी सहमति दे दी।

सिब्बल– आर्टिकल 356 की प्रोसेस ये है कि आप असेंबली को सस्पेंड रखें। अगर आपको लगता है कि ये संभव नहीं है तो आर्टिकल 356 लगाने के बाद आप असेंबली भंग करें और चुनाव कराएं।

सीजेआई– आपके कहने का मतलब है कि 25 नवंबर को विधानसभा भंग करना गलत था, क्योंकि कोई सलाह नहीं ली गई।

सिब्बल– 356 की नौबत ही कहां आई, क्योंकि प्रशासन तो वही चला रहे थे। संवैधानिक विफलता नहीं हो सकती।

सीजेआई– मान लीजिए कि विधानसभा का विघटन गलत है तो परिणाम यह होगा कि 6 महीने के अंत में विधानसभा को बहाल करना होगा? मंत्रिपरिषद का गठन करना होगा। तो अपने तर्क को उसके तार्किक निष्कर्ष पर ले जाइए कि विघटन गलत था और राज्यपाल को विधानसभा को बहाल करना पड़ा। किस मामले में, क्या भारत सरकार 356 के तहत शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकती थी।

सिब्बल– आप कभी भी विधानसभा को तुरंत भंग नहीं करते, क्योंकि तब आपको चुनाव कराने होते हैं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपमानित नहीं किया जा सकता।

Compiled: up18 News