इंटीरियर डेकोरेशन में वास्तविक हरियाली बनी पहली पसंद…
दिल्ली की ओर रुख करते हुए मन में एक ही प्रश्न बार-बार कौंधता रहा—क्या इस बार भी वही धूल-धुआँ और दमघोंटू हवा स्वागत करेगी? बीते कुछ वर्षों से दिल्ली की हवा जहरीली होती जा रही है, और आंकड़े इसकी भयावहता की पुष्टि भी करते हैं। अक्टूबर से जनवरी तक दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) अक्सर 400 से ऊपर चला जाता है, जो कि “गंभीर” श्रेणी में आता है। WHO के मानकों के मुताबिक, जहाँ PM 2.5 की सुरक्षित सीमा 5 µg/m³ है, वहीं दिल्ली में यह कई गुना अधिक दर्ज होता है। इस प्रदूषण की गिरफ्त में केवल वृक्ष नहीं, जीवन तक घुटता नज़र आता है।
लेकिन इस बार की दिल्ली यात्रा केवल निराशा लेकर नहीं आई बल्कि कुछ ऐसा भी देखने को मिला, जिसने उम्मीद की हरियाली को फिर से ज़िंदा कर दिया। यह अनुभव था Microsoft के Delhi Office का, जहाँ केवल तकनीक नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व की भावना भी जीवित है। इस भव्य भवन की सबसे विशेष बात है इसकी वर्टिकल गार्डन दीवारें, जिनमें जीवित पौधे लगे हैं। यह दीवारें कोई आभासी सजावट नहीं, बल्कि शुद्ध हवा की एक सजीव कोशिश हैं। इन दीवारों से न केवल वातावरण शुद्ध होता है, बल्कि वहाँ से आती प्राकृतिक चिड़ियों की मधुर चहचहाहट पूरे माहौल को सजीव और सुकूनदायक बना देती है।वहाँ कार्यरत लोगो की थकान को एक पल में दूर कर देती है।
यह दृश्य एक सवाल खड़ा करता है,क्या भव्यता अब ईंट, टाइल्स और मार्बल की मोहताज रह गई है या वह अब हरियाली में दिखाई देती है? यकीनन, आज के समय में हरियाली ही असली वैभव है जो आँखों को नहीं, आत्मा को राहत देती है।
हालाँकि आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली की आबादी के हिसाब से ग्रीन कवर बेहद असंतुलित है। लगभग 2 करोड़ लोगों के लिए दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1,484 वर्ग किमी है, जिसमें हरित क्षेत्र लगभग 23% है। पर्यावरणविदों के अनुसार एक स्वस्थ जीवन के लिए प्रति व्यक्ति कम से कम 7 से 8 पूर्ण विकसित पेड़ आवश्यक हैं। इस लिहाज से देखें तो दिल्ली को 14 से 16 करोड़ पेड़ों की आवश्यकता है, जबकि वर्तमान में यह संख्या लाखों में ही सिमटी हुई है। यानी शहर में हरियाली अब जरूरत से कई मील पीछे है।
फिर भी, आशा की किरण यही है कि प्रयास शुरू हो चुके हैं। देर से ही सही, पर लोग अब चेतने लगे हैं। सरकारी संस्थान, कॉर्पोरेट सेक्टर, शैक्षणिक संस्थाएं और आवासीय सोसाइटीज़ अब छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े बदलाव की नींव रख रही हैं। वर्टिकल गार्डन, रूफटॉप फार्मिंग, ग्रीन क्लासरूम, टेरेस प्लांटेशन जैसी पहलें केवल सजावटी प्रयोग नहीं हैं,ये भविष्य के लिए की जा रही जिम्मेदारियाँ हैं।
दिल्ली के पड़ोसी शहर नोएडा ने इस दिशा में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उत्तर प्रदेश में आने वाला यह शहर अब देश के हरित और व्यवस्थित शहरों में गिना जा रहा है। वहाँ की चौड़ी, साफ-सुथरी सड़कों के दोनों ओर घने पेड़ों की कतारें, सुव्यवस्थित ग्रीन बेल्ट्स और डिवाइडरों की हरियाली मन को मोह लेती है। वहाँ के सार्वजनिक स्थानों पर हरित योजना स्पष्ट दिखाई देती है।यह साबित करता है कि अगर इच्छाशक्ति हो तो कंक्रीट के जंगलों में भी ऑक्सीजन के झरोखे बनाए जा सकते हैं।
पर इसी मार्ग में बहती यमुना नदी ने चिंतन के लिए मजबूर कर दिया। दिल्ली और नोएडा को बांटती यह जीवनधारा अब झाग, बदबू और गंदगी से भरी दिखी। कभी पूजा की जाने वाली यह नदी अब शहरों की गटर बन चुकी है। हरित प्रयासों के साथ-साथ जल शुद्धि और संरक्षण भी उतना ही अनिवार्य है। यमुना को पुनर्जीवित करना केवल पर्यावरण नहीं, संस्कृति और आत्मा को पुनः जीवन देना है।
दुनिया में इस समय लगभग 3.04 ट्रिलियन पेड़ हैं, यानी प्रति व्यक्ति लगभग 422 पेड़। भारत में यह संख्या घटकर 28-30 पेड़ प्रति व्यक्ति रह जाती है, और दिल्ली जैसे शहरों में यह संख्या 5 से भी कम है। यह आंकड़े चेताते हैं कि यदि अभी नहीं जागे, तो अगली पीढ़ी के लिए हवा सिर्फ इतिहास की बात बन जाएगी।
Microsoft जैसी कंपनियों द्वारा किया गया यह हरित प्रयोग केवल एक संस्था का दायित्व नहीं, सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। जब एक दफ्तर अपने इंटीरियर को ऑक्सीजन देने वाले पौधों से सजाता है, तो वह सिर्फ CSR नहीं करता, बल्कि हमें यह याद दिलाता है कि हमारी सबसे जरूरी जरूरतें प्रकृति से आती हैं, मशीनों से नहीं।
अब समय आ गया है कि हम केवल शिकायत करने वाले नहीं, समाधान देने वाले नागरिक बनें।एक पौधा लगाएँ, एक गमला सजाएँ,एक बालकनी हरा करें,एक दीवार को वर्टिकल गार्डन में बदलें।
और जहाँ हो सके, एक नदी के लिए आवाज़ उठाएँ..।अब समय आ गया है कि हम पर्यावरण के प्रदूषण को रोकने में जिस भूमिका का भी निर्वहन कर सकते है,वो करे।क्योंकि अब भव्यता सिर्फ इंटीरियर डिज़ाइन से नहीं,भव्यता अब हरियाली से है।
और हवा अब कोई मुफ़्त उपहार नहीं,शुद्ध हवा अब जीवन का अधिकार है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं आध्यात्मिक चिंतक)