कंगाली, आतंकवाद और राजनीतिक-संवैधानिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के सामने अब भारत से संबंध सुधारने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। भारत में हो रही एससीओ की बैठकों से पहले पाकिस्तान में भारत और कश्मीर को लेकर चर्चाओं का दौर गर्म हो गया है। ये सिर्फ संयोग नहीं है कि पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार हामिद मीर ने तीन दिन पहले पड़ोसी देश के पूर्व सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा के उस बयान को तूल दे दिया है जो उन्होंने साल 2021 के शुरुआती महीनों में दिया था जबकि पाकिस्तान में इमरान खान पीएम थे।
हामिद मीर ने बाजवा के हवाले से कहा है कि पाकिस्तान के पास भारत से लड़ने की क्षमता नहीं है। पाक के पास न तो टैंक हैं और न ही टैंकों में डालने के लिए डीजल है। इसीलिए बाजवा ने भारत के साथ संबंध सुधारने की कवायद के तहत 25 फरवरी 2021 को सीज फायर समझौता किया था, जो आज तक सफलता से टिका हुआ है। हामिद मीर ने तो बाजवा के हवाले से यह तक दावा किया है कि लंबे समय तक बाजवा और भारत के एनएसए अजीत डोभाल के बीच चली बैक डोर डिप्लोमेसी के बाद अप्रैल 2021 में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी भी पाकिस्तान जाने वाले थे, जिसकी जानकारी उस समय तक पाक विदेश मंत्रालय और पीएम इमरान खान को भी नहीं थी लेकिन इमरान खान को बैक डोर डिप्लोमेसी की जानकारी अवश्य थी।
नहीं आया बयान का खंडन
हामिद मीर के इस खुलासे को करीब तीन दिन हो चुके हैं। गौर करने की बात ये है कि खुलासे पर तमाम हंगामे के बाद भी पाकिस्तान के किसी जिम्मेदार व्यक्ति की ओर से इसका अब तक खंडन नहीं किया गया है। बल्कि पाकिस्तानी बुद्धिजीवियों की ओर से यही कहा जा रहा है कि भारत के साथ शांति और संबंध सुधारने की बाजवा की कवायद को आगे बढ़ाने चाहिए।
पाकिस्तान के जाने-माने अर्थशास्त्री और सिटी बैंक के इमर्जिंग बाजार के निवेश प्रमुख रह चुके यूसुफ नजर ने भी इसका समर्थन किया है। इस खुलासे के बाद पाक सेना के प्रवक्ता ने अवश्य रटी-रटाई लाइनें दोहराई हैं, कि पाकिस्तान सेना पूरी तरह से देश के चप्पे-चप्पे की सुरक्षा करने में सक्षम है।
मीर के खुलासे की टाइमिंग है अहम
पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार हामिद मीर के वायरल हो रहे वीडियो में इस खुलासे की टाइमिंग पर चर्चा हो रही है। दावा किया जा रहा है कि हामिद ने जानबूझकर इस मुद्दे को तब उठाया है जब भारत में एससीओ की बैठक हो रही हैं।
27 और 28 अप्रैल को एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक है जिसमें पाकिस्तान के रक्षा मंत्री वर्चुअली जुड़ेंगे जबकि गोवा में 4-5 मई को विदेश मंत्रियों की बैठक में जिसमें भाग लेने के लिए पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भी भारत आ रहे हैं। लगभग 12 सालों बाद ये पहला मौका होगा जब पाकिस्तान का कोई मंत्री भारत आएगा। खासकर तब जब इस बीच भारत ने कश्मीर से धारा 370 को निष्प्रभावी बना दिया है।
कश्मीर में जनमत संग्रह को भूले पाकिस्तान: पाक अर्थशास्त्री
बालकेनाइजेशन एंड पॉलटिकल इकोनॉमी ऑफ पाकिस्तान पुस्तक के लेखक यूसुफ नजर ने कहा है कि भारत के साथ अच्छे संबंध रखना पाकिस्तान के हित में है। जाने-माने बैंकर ने मंगलवार को एक और ट्वीट किया कि पाकिस्तान को विदेशी निवेशक सुरक्षित नहीं मानते और ऐसे में उसका कोई भविष्य नहीं है।
उन्होंने ट्विटर पर लिखा- एक देश जो अपने असहिष्णु समाज, कट्टरपंथी समूहों और पड़ोसियों के साथ टकराव और युद्ध के इतिहास के लिए जाना जाता है, जिसका अंतर्राष्ट्रीय बहिष्कार किया जा रहा हो, वह विदेशी निवेशकों के लिए सुरक्षित नहीं है और ऐसे में उसका कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में बेहतर है कि कश्मीर में जनमत संग्रह की बात भूलकर पाकिस्तान तत्काल प्रभाव से अपने संबंध सुधारे।
तालिबान ने भारत से सुधारे संबंध
बाजवा का भारत के प्रति क्या रुख था इसकी पुष्टि तालिबान और भारत के बीच संबंधों से भी हो रही है। भारत और तालिबान के बीच के संबंध अब काफी सामान्य हो चुके हैं और राजधानी काबुल में भारतीय विदेश विभाग के अधिकारी फिर से काम कर रहे हैं जबकि भारत लगातार अफगानों की मदद के लिए गेहूं की सप्लाई कर रहा है।
तालिबान भारत से अफगानिस्तान में अपने रूके हुए प्रोजेक्ट्स को फिर से शुरू करने की अपील भी कर चुका है। इस बीच अफगानिस्तान पर आई एक किताब में दावा किया गया है, कि तालिबान ने भारत से संबंध सुधारने से पहले पूर्व पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा की मंजूरी ली थी।
वॉशिंगटन में पढ़ाने वाले हसन अब्बास ने अपनी किताब द रिटर्न ऑफ द तालिबान में लिखा है कि तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने भारत से काबुल में अपने राजनयिकों और तकनीकी कर्मचारियों को वापस बुलाने के लिए कहने से पहले, पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के साथ एक विस्तृत बैठक की थी।
Compiled: up18 News