ग्रीन लाइट थेरेपी: हर तरह का दर्द हो जाता है कम, न कोई दुष्परिणाम और न ही कोई लत

Health

ग्रीन लाइट थेरेपी के कोई नुकसान नहीं

इसे ग्रीन लाइट थेरेपी नाम दिया गया है। खास बात यह है कि इसके न कोई दुष्परिणाम हैं और न ही कोई लत लगती है। प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर पदमा गुलूर ने फाइब्रोमायल्गिया (मांसपेशियों में दर्द) के मरीजों पर एक एक्सपेरिमेंट किया। दो हफ्तों तक हर दिन 4 घंटे तक अलग-अलग रंगों के चश्मे पहनने को दिए गए। कुछ ने नीला, कुछ ने बिना किसी रंग का और कुछ ने हरा चश्मा पहना। इसके नतीजे सामने आने के बाद पता चला कि हरा चश्मा पहनने वाले लोगों में दर्द की चिंता कम हो गई और उन्होंने पेन किलर्स लेना कम कर दिया।

ऐसे काम करती है यह थेरेपी

गुलूर ने कहा कि अध्ययन के नतीजे से लोग इतने खुश थे कि उन्होंने चश्मे लौटाने से इनकार कर दिया। दरअसल, हरी रोशनी कुछ तंत्रिकाओं के रास्ते हमारी आंखों से होते हुए ब्रेन तक जाती हैं। इन्हीं में से कुछ हमारे दर्द का नियंत्रण करती हैं। आंख में मौजूद मेलानोप्सिन एसिड हरी रोशनी से ट्रिगर हो जाता है। जो ब्रेन में दर्द पर काबू करने वाले हिस्से को सिग्नल भेजने का काम करता है। जब वह हरी रोशनी से ट्रिगर होता है तो मस्तिष्क में दर्द कम करने वाला एक नया रास्ता खुलता है।

थेरेपी से माइग्रेन का दर्द 60% तक कम होता है

एरिजोना यूनिवर्सिटी के डॉक्टर मोहम्मद इब्राहिम ने ग्रीन लाइट का माइग्रेन पीड़ितों पर अध्ययन किया। इससे माइग्रेन के कारण तीव्र दर्द में 60% तक की कमी हुई। दर्द की तीव्रता 40% तक रह गई थी। मांसपेशियों का दर्द भी कम हुआ।

अमेरिका में 5 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी तरह के दर्द की तकलीफ झेल रहे हैं। वे थेरेपी, मसाज, एक्यूपंचर और दवा भी ले रहे है, लेकिन दर्द खत्म नहीं हो रहा है। कई दवाएं तो ऐसी है जिनकी लत लग जाती है।

Compiled: up18 News


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