पूर्व PM मनमोहन सिंह ने ताजा इंटरव्‍यू में कहा, भारत के भविष्य को लेकर मेरे मन में चिंताओं से ज़्यादा आशाएं…

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यूक्रेन-रूस युद्ध पर भारत के रवैये को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी सही बताया था.

अब द इंडियन एक्सप्रेस को दिए ख़ास इंटरव्यू में मनमोहन सिंह भी कहते हैं, ”नई विश्व व्यवस्था को संचालित करने में भारत की अहम भूमिका है. यूक्रेन पर रूस के हमले में शांति की अपील करने के साथ-साथ भारत ने अपने आर्थिक हितों और संप्रभुता को प्राथमिकता देकर बिल्कुल सही किया.”

भारत इस साल यानी 2023 में जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है. इस आयोजन के ज़रिए भारत ख़ुद की वैश्विक साख को मज़बूत करना चाहता है.

कोरोना के बाद चीन समेत दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाएं चुनौतियों का सामना कर रही हैं. 2008 में भी दुनिया के ज़्यादातर देश वित्तीय संकट का सामना कर रहे थे. इसी के बाद जी-20 का मौजूदा प्रारूप उभरकर सामने आया था. तब मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे. जी-20 दुनिया के आर्थिक रूप से ताक़तवर 20 देशों का समूह है.

मनमोहन सिंह को भारत के आर्थिक सुधारों के लिए जाना जाता रहा है. मनमोहन सिंह की तारीफ़ करने वालों में सत्ता पक्ष के लोग भी शामिल रहे हैं. नवंबर 2022 में केंद्रीय मत्री नितिन गडकरी ने भी कहा था कि आर्थिक सुधारों के लिए देश मनमोहन सिंह का कर्ज़दार रहेगा.

ऐसे में जी-20 सम्मेलन दिल्ली में शुरू होने से एक दिन पहले मनमोहन सिंह कहते हैं, ”मैं भारत के भविष्य को लेकर चिंता से ज़्यादा आशावादी हूँ. मगर ये आशावाद भारत के सौहार्दपूर्ण समाज बनने पर निर्भर करता है.” मनमोहन सिंह ने कहा कि उनके जीवनकाल में भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है, ये ख़ुशी की बात है.

भारत की विदेश नीति पर मनमोहन सिंह ने क्या कहा?

2019 में कोविड महामारी, 2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन की हिंसक झड़प, 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती और 2022 में यूक्रेन- रूस का युद्ध शुरू होना. बीते कुछ साल विदेश नीति के लिहाज़ से भारत के लिए काफ़ी अहम रहे हैं.

मनमोहन सिंह ने 10 काल के शासन में कई जी-20 सम्मेलनों में हिस्सा लिया था. क्या विदेश नीति की भूमिका घरेलू राजनीति में बदली या बढ़ी है?

द इंडियन एक्सप्रेस से मनमोहन सिंह कहते हैं, ”मुझे ख़ुशी है कि रोटेशन के तहत जी-20 में भारत को अध्यक्षता करने का मौक़ा मिला और मैं भारत को जी-20 अध्यक्षता करते हुए देख रहा हूं. विदेश नीति हमेशा से भारत के शासकीय ढांचे का अहम हिस्सा रही है. मगर ये कहना सही रहेगा कि पहले की तुलना में अब विदेश नीति देश की राजनीति में ज़्यादा अहम और प्रासंगिक हो गई है.”

मनमोहन सिंह ने कहा, ”भारत दुनिया में कहां खड़ा है, देश की राजनीति में इसका मुद्दा बनना भी चाहिए मगर ये ज़रूरी है कि कूटनीति और विदेश नीति का निजी राजनीति या पार्टी के लिए इस्तेमाल ना किया जाए.”

बदलती दुनिया में भारत कहाँ खड़ा है?

जी-20 की अध्यक्षता भारत पहली बार कर रहा है और ये भी पहली बार है जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी-20 सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेंगे.

चीन ने तय किया है कि 9-10 सितंबर को दिल्ली में होने वाले सम्मेलन में जिनपिंग की बजाय चीनी प्रीमियर ली चियांग भारत आएंगे.

कुछ जानकारों का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के बढ़ते कद की अनदेखी करने के लिए चीन ने ये कदम उठाया है.

ऐसे में वैश्विक मंच और नई वैश्विक व्यवस्था में भारत कहां खड़ा है?

इस सवाल के जवाब में मनमोहन सिंह द इंडियन एक्सप्रेस से कहते हैं, ”अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था अब काफ़ी अलग है. ख़ासकर रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों के साथ चीन की जियो पॉलिटिकल टकराव के बाद. इस नई व्यवस्था को संचालित करने में भारत की अहम भूमिका है. आज़ादी के बाद से एक बड़े लोकतांत्रिक, संवैधानिक मूल्यों वाले शांतिपूर्ण देश बनने और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश होने के नाते दुनियाभर में भारत को अब सम्मान से देखा जाता है.”

ऐसे वक़्त में जब कई मतभेदों और ख़ासकर यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण अर्थव्यवस्था का संतुलन बिगड़ा है, तब भारत कहां खड़ा है और क्या चुनौतियां हैं?

मनमोहन सिंह बोले, ”2005 से 2015 के दशक में जीडीपी के रूप में भारत का विदेशी व्यापार दोगुना हो गया था. इससे देश को फ़ायदा हुआ और करोड़ों लोग ग़रीबी से बाहर निकल पाए. इसका मतलब ये भी हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ी हुई है. 2008 के वित्तीय संकट में जी-20 देशों ने नीतियों, वैश्वीकरण और नए तरह के व्यापारिक प्रतिबंधों पर अच्छी काम किया.”

नए व्यापारिक प्रतिबंधों का ज़िक्र करते हुए मनमोहन सिंह कहते हैं, ”अभी नए तरह के व्यापारिक प्रतिबंधों की बात हो रही है. इससे मौजूदा व्यवस्था बदलेगी और विश्व की सप्लाई चेन में भारत के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं. भारत का आर्थिक हित इसी में है कि वो संघर्षों में ना उलझे और दूसरे देशों के साथ व्यापारिक संबंधों का संतुलन बनाए रखे.”

भारत के सामने चुनौतियां क्या हैं?

रूस और यूक्रेन ये युद्ध के बारे में जानकारों का कहना है कि भारत ने दोनों पहलुओं को साधा हुआ है.

इसकी गवाही कुछ आँकड़े भी देते हैं. रूस पर पश्चिमी देशों ने जब प्रतिबंध लगाया तो भारत ने इसे अनसुना करते हुए रूसी तेल ख़रीदना जारी रखा. इससे भारत को आर्थिक तौर पर काफ़ी फ़ायदा हुआ.

जी-7 देशों ने रूसी तेल के आयात पर प्राइस कैप लगा दिया था. इसके बावजूद यूरोप रूसी तेल भारत के ज़रिए ख़रीदता रहा.

यूक्रेन जंग के बाद से भारत का रूस से तेल आयात 1,350 फ़ीसदी बढ़ा है और भारत यूरोप का सबसे बड़ा ईंधन निर्यातक देश बन गया है.

मई 2023 में द सेंटर फ़ॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर की ओर से एक डेटा आधारित स्टडी हुई. इसमें बताया गया कि कैसे यूरोपियन यूनियन, जी-7 और ऑस्ट्रेलिया रूसी तेल सीधे रूस से ना लेकर भारत और चीन से ले रहे हैं.

ऐसे में भारत रूस और पश्चिम को साधने में कितनी चतुराई से पेश आया?

इस सवाल के जवाब में मनमोहन सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस अख़बार से कहा, ”जब दो या उससे ज़्यादा ताकतें आपस में भिड़ती हैं तो दूसरे देशों पर किसी एक तरफ़ होने का काफ़ी दबाव होता है. मुझे लगता है कि रूस, यूक्रेन के मामले में भारत ने शांति की अपील करते हुए अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता देकर सही क़दम उठाया. जी-20 देशों के लिए ये ज़रूरी है कि वो सुरक्षा मतभेदों को किनारे रखकर जलवायु परिवर्तन, असमानता और वैश्विक व्यापार से जुड़ी चुनौतियों से नीतिगत सहयोग से निपटें.”

भारत-चीन सीमा विवाद: मोदी सरकार को क्या सलाह देंगे?

अगस्त 2023 के आख़िर में दक्षिण अफ़्रीका में ब्रिक्स सम्मेलन हुआ था.

इस सम्मेलन को शी जिनपिंग की जीत के तौर पर देखा गया. ब्रिक्स समूह छह नए देशों को जोड़ने पर सहमति बनी.
कहा जा रहा है कि इन देशों को जोड़ने का ज़ोर शी जिनपिंग की ओर से दिया जा रहा था. ऐसे में जब जिनपिंग की कोशिशों पर ब्रिक्स की मुहर लगी तो इसे चीन की उपलब्धि के तौर पर देखा गया.

इसी सम्मेलन में पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच सीमा विवाद पर भी बात हुई थी.
हालांकि इस मुलाक़ात के फ़ौरन बाद चीन ने एक नया नक़्शा जारी किया. इस नक़्शे में एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीनी सीमा में दिखाया गया.
चीन के इस कदम के बाद शी जिनपिंग ने दिल्ली में होने वाले जी-20 सम्मेलन में ना आने का भी फ़ैसला किया.

ऐसे में चीन से बढ़ते विवाद के बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह केंद्र सरकार को क्या सलाह देना चाहेंगे?

इस सवाल पर मनमोहन सिंह कहते हैं, ”मेरा प्रधानमंत्री को ये बताना उचित नहीं है कि जटिल राजनयिक संबंधों से कैसे निपटें. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिनपिंग जी-20 सम्मेलन में शरीक नहीं हो रहे हैं. मुझे उम्मीद और विश्वास है कि भारतीय सीमा की रक्षा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी हर ज़रूरी क़दम उठाएंगे.”

चंद्रयान-3 की सफलता पर मनमोहन सिंह ने क्या कहा?

23 अगस्त को चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतरने वाला पहला देश बन गया था.

इसे दुनिया में भारत की बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया.

इससे पहले चंद्रयान-2 साल 2019 में क्रैश हो गया था. चंद्रयान-1 साल 2008 में लॉन्च किया गया था, तब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे.

ऐसे में चंद्रयान-3 की सफलता और इसरो मिशन पर मनमोहन सिंह क्या सोचते हैं?

इसके जवाब में मनमोहन सिंह द इंडियन एक्सप्रेस अख़बार से कहते हैं, ”ये बहुत गर्व की बात है कि भारत के वैज्ञानिक संस्थानों ने एक बार फिर दुनिया में ख़ुद के सर्वश्रेष्ठ होने का लोहा मनवाया है. बीते सात दशक में समाज में वैज्ञानिक मिजाज़ को बढ़ावा देने और ऐसे संस्थाओं को बनाया जाना हम सबके लिए गर्व की बात है. मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि चंद्रयान मिशन 2008 में लॉन्च किया गया था और अब वो दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचकर नई ऊंचाइयों को छू रहा है. इसरो को तहे दिल से बधाई.”

पीएम मोदी की उम्मीदों पर क्या कहा?

भारत फ़िलहाल दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. जुलाई महीने में पीएम मोदी ने जी-20 सम्मेलन वाली जगह दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित ‘भारत मंडपम’ का उद्घाटन करते हुए भारत के दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने की बात कही थी.
पीएम मोदी ने कहा था, ”सरकार के तीसरे कार्यकाल में भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था में शामिल हो जाएगा.”

मगर भारत के सामने इस लक्ष्य को हासिल करने की राह में चुनौतियां क्या हैं?

मनमोहन सिंह जवाब देते हैं, ”पिछले साल मैंने द हिन्दू अख़बार में लेख लिखा था कि बदलती विश्व व्यवस्था में भारत एक अद्वितीय आर्थिक अवसर के मुहाने पर खड़ा है. एक बड़े बाज़ार वाले शांतिपूर्ण लोकतंत्र के रूप में हम सेवा, निर्माण, उत्पादन के क्षेत्र में ज़ोर देकर एक बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकता है. दुनिया जैसे-जैसे पर्यावरण के अनुकूल विकास मॉडल की तरफ बढ़ रही है, ये कई रास्ते खोलेगी. इन रास्तों का फ़ायदा उठाने के लिए भारत को तैयार रहना चाहिए. इससे लोगों को नौकरियां भी मिलेंगी और जीवन भी बेहतर होगा.”

मनमोहन सिंह कहते हैं, ”भारत के भविष्य को लेकर मेरे मन में चिंताओं से ज़्यादा आशाएं हैं. हालांकि मेरा आशावाद इस पर निर्भर करता है कि भारतीय समाज में कितना सौहार्दपूर्ण माहौल है क्योंकि यही उन्नति और विकास के लिए सबसे अहम बुनियाद है. भारत की प्रवृति विविधता को अपनाने और उसका जश्न मनाने की रही है, और इसे बचाए रखना चाहिए.”

Compiled: up18 News