एक भवन अपने चारों कोनों के पिल्लर / स्तम्भ पर टिका होता हैं | यदि इसमें से एक पिल्लर / स्तम्भ नहीं हो या हटा दिया जाये तो उसका दबाव अन्य तीन स्तम्भों पर पडता हैं और भवन को डामाडोल कर देता हैं | यही सच्चाई हमारे लोकतन्त्र सिस्टम की हैं | यहां भवन लोकतांत्रिक व्यवस्था का हैं जिसके शीर्ष पर संविधान संरक्षक राष्ट्रपति का भवन हैं और इसके तीनो कोनों में विधायीका, कार्यपालिका व न्यायपालिका का स्तम्भ हैं परन्तु चौथें कौने में कोई स्तम्भ नहीं हैं | जुबानी कहने, सुनने के लिए मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ हैं परन्तु इसका कोई संवैधानिक चेहरा नहीं हैं |
इस चौथें स्तम्भ के अभाव में सबसे ज्यादा दबाव न्यायपालिका वाले स्तम्भ पर आ रहा हैं, जिसके कारण वो जर्जर हो चुका हैं व अब धीरे – धीरे बिखराव की तरफ बढ़ रहा हैं | वर्तमान में न्यायपालिका का कॉलेजियम सिस्टम व उस पर विवाद और केन्द्रीय कानून मंत्री का कार्यपालिका की तरफ से बयान एवं उपराष्ट्रपति का देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं के अध्यक्षों की मीटिंग के मच से जुबानी गर्जना व बरसना इसी बिखराव को जगजाहिर करता हैं |
इसके बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा मंत्रियों के बयानों को कार्यपालिका का दिया बयान न मानना कागजी रूप से न्यायपालिका के बिखराव के क्षणीक कारण को रोकता हैं | इसके बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा कॉलेजियम सिफारिश की मीटिंग के मिनिट की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना स्तम्भ की मजबूती को बताना हैं व इस सच्चाई को अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हिन्दीं व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी देना जनता का समर्थन प्राप्त करना हैं | इसकी शुरूआत 26 जनवरी से 10 भाषाओं के साथ हो गई हैं |
अब न्यायिक तंत्र से जुड़ें रहे भूतपूर्व न्यायाधीशों, ऐडवोकेटों, सलाहकारों का मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक बयानों द्वारा बिखराव के लिए बाहरी कारकों (सरकारी तन्त्र की खामियां, दबाव, ढुलमुल रवैया, समय की बर्बादी, संसाधनों का अभाव इत्यादि – इत्यादि) से लड़ना व प्रतिरोध दीवार का निर्माण करने का कार्य हो रहा हैं | 22 जनवरी, 2023 को आयोजित 135वें राष्ट्रीय आरटीआई जूम मीटिंग इसी दिशा की ओर ईंशारा करती हैं |
यहां पर मीडिया के लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का सिर्फ खयाली व जुबानी होना और संवैधानिक चेहरे की रित्तिका की वजह से न्यायपालिका से जुड़ें लोगों द्वारा प्रस्तुत सभी तर्क, आधार, सच्चाई, कागजों की रद्दी, टेलीविजन पर मनोरंजन के साधन व सोशियल मीडिया में बिना किसी लक्ष्य के इधर-उधर फोरवर्ड, शेयर होकर ई-कचरे के रूप क्षीण होते जा रहे हैं |यह सभी तर्क, आधार, सच्चाई व अनुभव संगठित होकर व्यवस्था को विकसित व मजबूत नहीं कर पा रहे हैं ताकि बिमारी जड़ से ही खत्म हो जाये |
कार्यपालिका यानी तथाकथित सरकार ने आदेश जारी कर अपनी शक्ति और कानून बनाने के अधिकार से सम्बद्धित सरकारी कर्मचारियों को उसकी हर बात को मानने पर विवश कर दिया अन्यथा घर भेजने का द्वार बता अपने स्तम्भ को मजबूत बना लिया | इसके विपरीत न्यायिक तन्त्र के लोग पक्ष – विपक्ष में बंटकर राजनीति की भेद नीति के शिकार हो रहे हैं व न्यायपालिका के स्तम्भ को नया व मजबूत बनाने के नाम पर बिना किसी ठोस योजना व रूपरेखा के पुराने स्तम्भ को ही हथौड़ा पटक – पटक के तोड़ कर्तव्य पथ पर आवरा जानवरों की तरह आ रहे हैं |
मुख्य न्यायाधीश भी हमारे भेजे गये प्रमाण सहित ईमेल से दिल व दिमाग से समझ गये कि भारतीय मीडिया का संवैधानिक चेहरा नहीं हैं और कोई कानूनी जवाबदेही वाला अधिकार नहीं दे रखा हैं | इसलिए 22 जनवरी, 2023 को देश में पहली बार बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (बीसीएमसी) की तरफ से बने श्रेत्रीय एयर न्यूज़ ल व्यूज चैनल की शुरूआत करी | इसे धीरे – धीरे हर राज्य में लागू करा जायेगा | लाखों मामलों के अदालतों में पेंडिग होने के बावजूद भी न्यायपालिका से जुड़ें लोग खबरें बनाने व विज्ञापन लाने व बनाने का काम भी अतिरिक्त करेंगे | इससे विज्ञापन के लालच में न्याय के पैंसों में बिक जाने का खतरा मोल लेना पड़ रहा हैं | विधायीका व कार्यपालिका भी चुप रहकर इसे भी अपने साथ खड़े में गिरा रही हैं क्योंकि इन्होंनें ही अपने अपने क्षेत्रीय चैनलों को खोलने की शुरूआत करी चाहें उन्हें जनता का पैसा बर्बाद कर अधिकांश को बन्द करना पड़ा |
केन्द्रीय कानून मंत्री का बयान की वो चुनाव से चुनकर आते हैं जबकि न्यायपालिका में बिना चुनाव के आते हैं, अपनी संकुचित मानसिकता के कारण संविधान की भावना व सोच को न समझ पाने की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना हैं | सामाजिक जीवन के हर कार्यक्षेत्र का बन्दा सर्वोच्य पद तक पहुंचे यह संविधान चाहता हैं क्योंकि सभी मनुष्य एक ही क्षेत्र में दक्ष नहीं होते हैं, सबकी अपनी अपनी रूचि, विशिष्टता एवं योग्यता होती हैं जिसके माध्यम से वो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य एवं निष्ठा को समर्पित करते हैं | न्यायिक कॉलेजियम सिस्टम में कार्यपालिका राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के माध्यम से अपना प्रतिनिधि घुसाना चाहती हैं तो व पहले अपने हर जांच कमेटियों में न्यायिक तन्त्र को घुसाकर आदर्श प्रस्तुत करे न कि रिटायर्ड न्यायाधीशों का मुखौटा लगा बैठ जाये | संसद व विधानसभाएं स्वयं न्यायिक फैसला सुना संविधान की मर्यादा को ताक पर रख देती हैं जिसका प्रतिफल इनके यहां से पैदा हुई हेट-स्पीच की बिमारी पूरे सिस्टम व समाज में फैल चुकी हैं के एक छोटे से उदाहरण से समझ सकते हैं |
यदि न्यायपालिका मीडिया के चौथे स्तम्भ को संवैधानिक चेहरा दिला दे जो कानूनन न्यायसंगत हैं तब लोकतंत्र के चारों स्तम्भों की थ्योरी परिभाषित व प्रायोगिक रूप से सत्यापित हो जायेगी | इससे लोकतंत्र मजबूत हो जायेगा और न्यायपालिका के स्तम्भ पर दबाव घट जायेगा परन्तु चक्र के रूप में आगे गतिमान समय के अनुरूप इसे अपने में बदलाव व परिवर्तन लाकर गतिशील बनना पड़ेगा जिसमें न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया भी आती हैं |
हम पहले ही संविधान के अनुसार देश को असली मालिक व असली सरकार आम जनता और मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में ला चुके हैं कि सभी हेट-स्पीच के मामलों में मीडिया के समाहित होने के आधार को लेकर एकत्रित कर उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीश सामुहिक सुनवाई करे व मीडिया को परिभाषित कर संवैधानिक चेहरे से उसे कानूनन जवाबदेही बनाये | यह संविधान के अनुसार अपने आप में सबसे बड़ी संविधान पीठ हैं और राष्ट्रपति के समान संविधान संरक्षक भी, यदि इसमें भी तारिख के नाम पर समय बर्बाद करा तो स्वार्थ, लालच, कालेधन व व्यक्तिवाद से नया पनपा गोदी मीडिया अदालतों के हर फैसले व बयानों को तोड़ मरोड़कर कर स्वाह कर देगा |
-शैलेन्द्र कुमार बिराणी
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.