आगरा शहर में नशे का उत्पात: सामाजिक कार्यकर्ता ने ठेकों को आबादी से हटाने की मांग की

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आगरा। न्यू आगरा थाना क्षेत्र के नगला बूढ़ी में बेकाबू कार से सात लोगों के कुचले जाने और पांच की मौत ने पूरे शहर को झकझोर दिया है। यह हादसा सिर्फ एक सड़क दुर्घटना नहीं, बल्कि शहर में फैल चुके नशे के खुले उत्पात और प्रशासनिक लापरवाही की एक भयावह मिसाल बनकर सामने आया है।

घनी आबादी वाले क्षेत्रों, दलित बस्तियों और मलिन इलाकों में खुलेआम शराब के ठेकों के बाहर दिन-रात जाम छलकते हैं। महिलाओं और छात्राओं से छेड़छाड़, गाली-गलौज और झगड़ों की घटनाएं आम हैं। सड़कों पर नशे में धुत लोगों का तांडव किसी भी वक्त हादसे को जन्म दे देता है।

इसी पृष्ठभूमि में सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने जिलाधिकारी और कमिश्नर को पत्र भेजकर आबादी के बीच चल रहे शराब के ठेकों को हटाने और “वाइन जोन” बनाने की मांग की है। उनका कहना है कि इन ठेकों को शहर की सीमाओं या औद्योगिक क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाए, जहां निगरानी, नियंत्रण और जिम्मेदारी तय हो सके।

संविधान और कानून का उल्लंघन

पारस ने अपने पत्र में लिखा है कि दलित और गरीब बस्तियों के बीच शराब के ठेके खोलना न केवल कानून, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 और 46 का उल्लंघन है। अनुच्छेद 21 नागरिकों को सुरक्षित जीवन का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 46 राज्य को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के हितों की रक्षा का दायित्व सौंपता है।

उन्होंने कहा कि प्रशासन ने इन संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी करते हुए ऐसे ठेकों को अनुमति दी, जिससे महिलाओं, बच्चों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा खतरे में है।

वाइन जोन नीति और निगरानी व्यवस्था

नरेश पारस ने सुझाव दिया है कि शराब बिक्री को नियंत्रित करने के लिए एक “वाइन जोन पॉलिसी” बनाई जाए।
इस नीति के तहत —

शराब बिक्री का समय सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक सीमित किया जाए,

ठेकों पर सीसीटीवी निगरानी अनिवार्य हो,

पुलिस की नियमित गश्त और नियंत्रण सुनिश्चित किया जाए,

और ठेकों के 200 मीटर दायरे में न विद्यालय हों, न धार्मिक स्थल या आवासीय परिसर।

उन्होंने यह भी कहा कि जिन आबकारी अधिकारियों ने लापरवाही दिखाकर आबादी वाले क्षेत्रों में ठेकों की अनुमति दी, उन पर विभागीय जांच और दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।

नशा मुक्त शहर की दिशा में पहल

पारस ने पत्र में “नशा मुक्त शहर अभियान” के तहत ठोस कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने सुझाव दिया कि

नशा-निवारण केंद्र स्थापित किए जाएं,

हर छह माह में ठेकों के लाइसेंस का पुनरीक्षण हो,

और किसी भी नए ठेके की स्वीकृति से पहले स्थानीय जनसुनवाई अनिवार्य की जाए।

“यह सिर्फ कानून-व्यवस्था नहीं, समाज का सवाल है”

नरेश पारस ने कहा कि यह मामला केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि महिला सम्मान, सामाजिक न्याय और संविधानिक मूल्यों की रक्षा का है। दलित और गरीब बस्तियों में खुले शराब ठेके सामाजिक ताने-बाने को तोड़ रहे हैं और महिलाओं की गरिमा को आहत कर रहे हैं।

उन्होंने मांग की कि डीएम तत्काल आदेश जारी करें और इन ठेकों को आबादी से हटाकर “वाइन जोन पॉलिसी” को लागू करें, ताकि शहर में फिर किसी परिवार को नगला बूढ़ी जैसी त्रासदी न झेलनी पड़े।