डोर: थ्रिलर-सस्पेंस-सेंसुअस विषयों से नसें ऐंठने लगे तो ये फ़िल्म देखी जा सकती हैं…..

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डोर कहानी हैं दो औरतों की जिसमें से एक मीरा ( आयशा टाकिया) सोने सा चमकते रेतीले रेगिस्तान और दूसरी जीनत ( गुल पनाग) पहाड़ों से घिरे खूबसूरत हिमाचल में रहती हैं।

दोनों जिंदगी अपने जीवन के सुनहरे काल में जी रही हैं, मीरा को जहां उसके सास ससुर अपने परिवार के लिए लकी मानते हैं वहीं जीनत के सास ससुर भी अपनी बहु के स्वाभिमान और लगन के कायल हैं….

पर एक दुर्घटना इन सुखभरे दिनों को दुख और संघर्ष में तब्दील कर देती हैं।

अपने पति के माफिनामें की वजह से जीनत को राजस्थान आना होता हैं और उससे टकरा जाता हैं बहरूपिया श्रेयस तलपड़े जो उसे ठगने के बाद उसकी मदद भी करता हैं, और फिर यहां से शुरू होता हैं जीनत का मीरा से दोस्ती करना और अपने प्रयोजन को पूरा करने का सफर।

ग्रामीण परिवेश में एक ब्याहता का विधवा होने पर जीवन कितना कठिन हो जाता हैं , लक कब बेडलक बन जाता हैं इसका चित्रण बखूबी किया हैं। मीरा की दादी सास का उसपर ताने मारने का कारण पूछने पर दादी का कहना की “जलती थीं तेरे सुहागन होने पर” और अपनी बहु गौरी के मीरा के घर छोड़ कर जाने पर रोकने पर कहना की “घमंड मत कर अपने सिंदूर का एक न एक दिन तुझे भी इस तरफ आना हैं”

दादी और मीरा का वार्तालाप इस फिल्म के अच्छे सीन्स में से एक हैं।

डायरेक्टर नागेश कुकुनूर का ऐसे विषय पर फिल्म बनाना काबिले तारीफ हैं और वो खुद भी एक लंपट कांट्रेक्टर के रोल में फिल्म में उपस्थित हैं,

आयशा टकिया मीरा के रोल प्यारी और प्रभावशाली लगी, राजस्थानी वेश भूषा उस पर खूब जंचती हैं,
गुल पनाग अपनी औसत प्रतिभा के बाद भी जीनत के रोल में अच्छा करती हैं।

गिरिश कर्नाड अपनी झूठी शान और स्वार्थी पिता के रोल में बिल्कुल फिट बैठता हैं, चोपड़ा के साथ शराब पीते हुए अपनी भरी आंखों से हवेली निहारते हुए जब ये कहता हैं की” बस इतना सा दूर था में अपनी हवेली से, शंकर (पुत्र) को भी अभी जाके मरना था” में उसके एक्टिंग की रेंज दिखती हैं

श्रेयस तलपड़े के लिए जितना कहे उतना ही कम होगा, वो एक गजब का प्रतिभाशाली एक्टर हैं, शराब पीकर जीनत को अपने निस्वार्थ प्रेम का इजहार वाला दृश्य कमाल का हैं।

फिल्म का संगीत शानदार हैं, “ये हौंसला कैसे झुके, ये गाना शायद ही किसी ने ना सुना हो।

“डोर” जैसी फिल्म उन लोगों के लिए हैं जो विभिन्न विषयों पर समान रुचि रखते हैं, ये मासेस के लिए नही क्लासेस के लिए होती हैं,
थ्रिलर, सस्पेंस, सेंसुअस विषयों से नसें ऐंठने लगे तो ऐसी फिल्में देखी जा सकती हैं…..

-up18news