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यह जरूर है कि हमें अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखना चाहिए, लेकिन कई बार स्थितियां ऐसी होती हैं कि चाहते हुए भी खुद का नियंत्रण ही छूट जाता है। दिल्ली में एक ऐसी ही स्थिति है प्रदूषण की। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने माना है कि प्रदूषण के कारण लोग चिड़चिड़े और मानसिक अवसाद के शिकार हो रहे हैं।

प्रदूषण का इतना गंभीर परिणाम!

स्वास्थ्य विभाग ने कहा है कि वायु प्रदूषण मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है जिससे तनाव और अन्य समस्याएं होती हैं, लेकिन भारत में प्रदूषण के असर पर विशेष स्टडी होनी चाहिए। सरकार ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) को सौंपे गए एक उत्तर में यह बात कही है। दरअसल, टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) ने अक्टूबर 2023 में Feeling anxious? Toxic air could be to blame हेडिंग से एक रिपोर्ट प्रकाशित थी।

एनजीटी ने इसी रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लेकर सरकार से जवाब मांगा। दिल्ली सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में कई स्टडी रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि प्रदूषण मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, इस पर भारत विशेष अनुसंधान की आवश्यकता है।

दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य और परिवार विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी ने कहा, ‘भारत में जब तेजी से औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण प्रदूषण बढ़ा है, मानसिक स्वास्थ्य के निहितार्थों को समझना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है… वायु प्रदूषकों, भारी धातुओं और ध्वनि प्रदूषण सहित विभिन्न (प्रकार के) पर्यावरण प्रदूषण के संपर्क में आने से मानसिक स्वास्थ्य विकार में वृद्धि होती है, जैसे कि तनाव, मनोदशा और मानसिक विकार आदि।’

तरह-तरह की मानसिक समस्याओं की जड़ है प्रदूषण

रिपोर्ट में विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित कई अध्ययनों का हवाला दिया गया है जहां निष्कर्ष बताते हैं कि गंभीर वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में अवसाद महसूस होने की आशंका दोगुनी है। अध्ययन बताते हैं कि ऐसे इलाके को लोगों में चिंता, चिड़चिड़ापन और बेचैनी के लक्षणों का अनुभव होने की बहुत ज्यादा आशंका होती है।

रिपोर्ट कहती है, ‘… वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से तनाव पैदा करने वाले हार्मोन का स्तर बढ़ सकता है… सोचने, याद रखने और सीखने में समस्याएं हो सकती हैं… पर्यावरण से संबंधित एक पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी कहती है कि गंभीर वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में मनोविकृति (साइकोसिस) का लक्षण पाया जाना आम है।

साइकोसिस एक मानसिक विकार है जिसके शिकार लोग वास्तविकता से संपर्क खोने लगते हैं।’ इसमें कहा गया है कि ऊंची इमारतों में रहना, खराब गुणवत्ता वाले आवास और तेज बाहरी शोर जैसे कारक मनोवैज्ञानिक संकट को बढ़ा सकते हैं और मानसिक स्वास्थ्य को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

इसमें कहा गया है कि वायु प्रदूषण से लोगों में घबराहट, अवसाद और बेचैनी की आशंका बढ़ जाती है। गंदी हवा के संपर्क में आने से कई न्यूरोबायोलॉजिकल परिवर्तन होते हैं जैसे कि सूजन की समस्या, न्यूरो डीजेनरेशन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस।

भारत आधारित विशेष शोध की जरूरत

सरकार ने एनजीटी दिए जवाब में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (WEF) की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि ‘प्रदूषण के संपर्क में आने वाले मनुष्यों… को मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में परिवर्तन का अनुभव होता है जो भावनाओं को नियंत्रित करते हैं…’ एक अन्य शोध के अनुसार प्रदूषित हवा में सांस लेने वाले बच्चों और किशोरों में अवसाद के लक्षण दिखते हैं और कई बार उनमें ‘आत्महत्या करने की चाहत’ पैदा होती है।

सरकार ने कहा कि अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में पर्यावरण खराब करने वाले, विशेष रूप से हवा को गंदा करने वाले कारक ‘मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण बनते हैं’। इसमें कहा गया है कि ‘ग्रामीण क्षेत्रों में गर्मी का मौसम आर्थिक तनाव के कारण मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते है। सरकार ने कहा कि भारत आधारित अध्ययन की आवश्यकता है क्योंकि अभी उपलब्ध ज्यादातर स्टडी रिपोर्ट्स पश्चिमी देशों के हैं।

-एजेंसी