प्रवचन: पीड़ित मानवता की सेवा से बड़ा कोई सुख नहीं- जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज

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आगरा। नेपाल केसरी व मानव मिलन संस्थापक जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज ने प्रसिद्ध उद्योगपति रतन  टाटा का एक उदाहरण देते हुए कहा कि पीड़ित मानवता की सेवा से बड़ा कोई सुख नहीं है। इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि दुखी  मनुष्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

राजामंडी के जैन स्थानक में प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने कहा कि किसी ने एक बार देश के सबसे बड़े उद्योगपति रतन टाटा से पूछा, आपके जीवन में सबसे बड़ा सुख कौन सा रहा। टाटा ने जबाव दिया, मैंने अपने जीवन में सबसे अधिक धन संचय किया। महत्वपूर्ण वस्तुओं को खरीदा। इस्पात का एशिया का सबसे बड़ा व्यापारी बन गया। मुझे कोई विशेष सुख नहीं मिला। सबसे बड़ा सुख तब मिला, जब मैंने अपने हाथों से 200 दिव्यांगों को व्हील चेयर दी। व्हील चेयर पाकर इन दिव्यांगों की आंखों में जो खुशी देखी, वो मेरी अंतरआत्मा में उतर गई। मुझे इससे ज्यादा खुशी जीवन में कभी नहीं मिली थी।

भक्तामर स्रोत के 37 वे श्लोक की व्याख्या करते हुए जैन मुनि ने बताया कि आचार्य मांगतुंग ने भगवान की स्तुति करते हुए कहते हैं कि भोले-भाले भक्तों द्वारा पूजित देवताओं की संख्या बहुत सीमित होती है। एसे देवताओं में सर्वोपरि हैं वीतारागी प्रभु महावीर स्वामी। जिस तरह सूर्य की ज्योति अंधकार को चीर कर प्रकाश करती है, वैसे ही भगवान महावीर की आभा है, जो सर्वत्र ज्ञान, धर्म, प्रेम, अहिंसा की ज्योति को जलाती है। सभी को प्रकाशमान करती है। जिस तरह सूर्य की किरणों से पूरी धरती आलोकित है, वैसी महिमा भगवान महावीर की है।

जैन मुनि ने कहा कि जब तक हम अच्छा बनने की कोशिश नहीं करते। तब तक सफलता नहीं मिलती। व्यक्ति की इच्छा शक्ति पर ही सब निर्भर है। श्रावक महाशतक की चर्चा करते हुए कहा कि उस श्रावक पर अपार संपदा थी, लेकिन उसकी पत्नी रेवती मद्यपान करती, मांसाहारी थी। जिससे वह बहुत दुखी रहता था। महाशतक के मन में विरक्ति आ गई। वह ध्यान साधना करने लगा। मौन साधना में लीन हो गया, लेकिन उसकी पत्नी उसमें बाधक बन रही थी। महाशतक को तो अवधि ज्ञान हो गया था। उसे भविष्य का ज्ञान होने लगा था। क्रोध में आकर उसने पत्नी को  बता दिया कि उसको क्षय रोग होने वाला है, जिससे उसका सात दिन में निधन हो जाएगा। पत्नी अपने जीवन के अंतिम समय को समझ कर बहुत आहत हो गई और विलाप करने लगी।
क्रोध में की गई यह घोषणा साधना के विपरीत थी।

भगवान महावीर ने अपने परम शिष्य इंद्रबोधि गौतम को महाशतक के पास भेजा और जाकर समझाने को कहा कि इस प्रकार के कठोर शब्द किसी साधक को नहीं बोलने चाहिए। कोई बात भले ही कितनी ही सच क्यों न हो, लेकिन नहीं कहनी चाहिए। श्रावक महाशतक ने फिर क्षमा याचना की और वह साधना में लीन हो गया था।

मानव मिलन संस्थापक नेपाल केसरी डॉक्टर मणिभद्र मुनि,बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में शुक्रवार को 37 वीं गाथा का जाप मधु, रोहित, श्रुति दुग्गर, नेहा, अमित लोहरे, हिना, राजा जैन परिवार ने लिया। नवकार मंत्र जाप की रजनी जैन परिवार ने की।

शुक्रवार की धर्मसभा में श्री ऑल इंडिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष पुणे से अविनाश चोरड़िया, मुंबई से पारस मोदी एवम पूर्व राष्ट्रीय मंत्री अंबाला से विमल जैन सहित पुणे के संघपति विलास राठौर भी उपस्थित थे। जिनका स्वागत ट्रस्ट के उपाध्यक्ष नरेश जैन चप्लावत एवम वीरेंद्र जैन ने किया।कार्यक्रम का संचालन ट्रस्ट के महामंत्री राजेश सकलेचा ने किया। धर्मसभा में विवेक कुमार जैन, राजीव जैन, संजय जैन, अनिल जैन, जितेंद्र सुराना, प्रीति सुराना, सुलेखा सुराना सहित अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।

-up18news