प्रवचन: अपने को छोटा समझने वाला ही सबसे बड़ाः जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज

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आगरा। वर्षा वास के दौरान हो रहे भक्तामर स्रोत अनुष्ठान में जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज ने कहा कि भक्त अपने को कभी बड़ा नहीं कहता है। वह तो अपने सबसे छोटा मानता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण श्रीराम भक्त हनुमान जी हैं, जो अपने को हमेशा प्रभु का दास ही बताते रहे। यही नहीं, लक्ष्मण जी ने अपने हमेशा अपने को बहुत छोटा माना है।

राजामंडी के महावीर भवन, जैन स्थानक में प्रवचन देते हुए जैन मुनि ने कहा कि जो अपने का छोटा मानता है, वही सबसे बड़ा होता है। जो अपने को बड़ा समझता है, उसकी मानसिकता सबसे छोटी होती है। जो जितना सरल, हल्का होता है, वही ऊंचाई पर भी जाता है।

इसलिए अपना जीवन पानी की तरह तरल और सरल बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुख को जो हंसते-हंसते बिता दे, वही साधु है। इस जन्म या पूर्व जन्म के कर्मों को तो झेलना ही पड़ेगा। यदि व्यक्ति अपने किए कर्मों का फल नहीं भुगतेगा तो उसकी आत्मा भारी बनी रहेगी। यही वजह है कि महापुरुष अपने संकट से परेशान न हो कर आराधना में लगे रहते हैं।

मांगतुंग ऋषि की चर्चा करते हुए जैन मुनि ने कहा कि उन्हें जेल में डाल दिया गया। वे बहुत चमत्कारी थे। यदि वे चाहते तो सब कुछ कर सकते थे, लेकिन उन्होंने भक्ति नहीं छोड़ी। जेल में भी उसमें प्रभु का गुणगान करने की शक्ति नहीं थी, तब भी वह साधना करते रहे। क्योंकि भक्ति भावना में शक्ति बहुत है। उसी शक्ति के कारण ऋषि ने अपने सभी जन्मों की कर्मों की बेड़ियों को काट डाला। अपनी चमत्कारी शक्तियों का प्रयोग उन्होंने इसलिए नहीं किया कि साधना कमजोर हो जाती। साधक कभी भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं करते। साधक को अपनी साधना में विश्वास है तो कोई संकट उन्हे डिगा नहीं सकता।

जैन मुनि ने बताया कि कामदेव श्रावक के पास 18 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं थीं। वैराग्य आ गया तो यह सब बेकार हो गई। श्रावक वही है जो अपनी आत्मा की ओर देखता है। अंतर्मुखी होता है। जैन मुनि ने कहा कि पूजन, धर्म आदि में यदि स्वार्थ होगा तो कामना पूरी नहीं होगी। अपनी उपासना को इच्छाओं से सीमित मत करो। क्योंकि भगवान तो तुम्हें असीमित फल देना चाहते हैं, लेकिन तुमने अपनी इच्छा व्यक्त करके उसे सीमित कर दिया। जैन मुनि ने कहा कि साधु की नहीं, साधुत्व की, श्रावक की नहीं, उसकी श्रद्धा की पूजा होती है। तपस्या करना आसान नहीं है, लेकिन जो करता है, उसका फल अवश्य मिलता है। रविवार के अनुष्ठान में कोलकाता, मेरठ से आए धर्म प्रमियों ने भी भाग लिया।

नेपाल केसरी ,मानव मिलन संस्थापक डॉक्टर मणिभद्र मुनि,बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में रविवार को तृतीय एवम चतुर्थ गाथा का लाभ आगरा बर्तन भंडार सुराना परिवार ने लिया।

नवकार मंत्र जाप के लाभार्थी रचना नरेश बरार एवम शोभा राजीव आगरा स्टील परिवार थे।धर्म प्रभावना के अंतर्गत नीतू जी जैन, दयालबाग की 20 उपवास, बालकिशन जैन, लोहामंडी की 24 ,मधु जी बुरड़ की 12 आयंबिल की तपस्या चल रही है।

शनिवार के कार्यक्रम में श्वेतांबर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक जैन ओसवाल ,नरेश चपलावत, मुकेश जैन, अजय सचलेचा,विवेक कुमार जैन, संजय चपलावत, सुलेखा सुराना सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।

-up18news


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