आगरा । राष्ट्र संत नेपाल केसरी डा.मणिभद्र महाराज ने कहा है कि मृत्यु ही जीवन का अंतिम सत्य है। यदि हमने जीवन को जान लिया तो मृत्यु को भी समझ लेंगे। लेकिन हम जागरूक नहीं है और मृत्यु के बजाय जीवन को अंतिम सत्य मान चुके, जिससे जीवन जटिल हो गया है।
महावीर भवन, न्यू राजामंडी में इन दिनों चातुर्मास कल्प के दौरान उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया जा रहा है। जिस पर प्रवचन करते हुए जैन संत डा.मणिभद्र महाराज ने उत्तराध्ययन सूत्र के पंचम अध्याय पर विस्तृत चर्चा की, जिसमें श्रमण भगवान महावीर ने मृत्यु के बारे में विस्तार से बताया है। जैन मुनि ने कहा कि इस पंचम अध्याय में भगवान महावीर बताते हैंं कि मृत्यु दो प्रकार की होती है, अकम्य और दूसरी सकम्य। अज्ञानी जीव का अकम मरण होता है। इस मरण में व्यक्ति बार-बार जीता है और बार-बार मरता है। सकम मरण को पंडित मरण व समाधि मरण भी कहा जाता है।
जैन मुनि ने कहा कि जैन साहित्य में अनेक तरह की चर्चा, जिज्ञासा व समाधान किया गया है। जिसके अनुसार मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है। मृत्यु जीवन की सत्य घटना है , फिर भी लोग मृत्यु के सत्य को स्वीकार नहीं करते। अकम्य मृत्यु वह है, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जाती है। संसार का कोई प्राणी ऐसा नहीं जो मरना चाहता हो। चींटी से लेकर हाथी तक मरने से बचते हैं। सभी की तमन्ना है कि वे हमेशा जीएं। फिर भी उन्हें मरना ही पड़ता है। संसार में जो प्राणी आया है, वह अपनी निर्धारित आयु पूरी करके मरेगा जरूर। जन्म-मरण के इस सत्य को सभी को स्वीकार करना ही होगा। जन्म और मरण एक दूसरे के पूरक हैं या फिर यूं समझिये कि धागे का एक छोर जन्म तो दूसरा छोर मृत्यु। ऐसे भी मान सकते है कि श्वांस लेना हमारा जन्म है और सांस छोड़ना मृत्यु। श्वांस ले रहे हैं तो समझिये कि जन्म हो गया, सांस छोड़ दी तो मानो मृत्यु हो गई।
जैन मुनि कहते हैं कि सब कुछ जानते हुए भी प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र को समझ नहीं पाया है। कितने ही लोगों को मरता देखा है, फिर भी सोचते हैं कि क्या हमें भी मरना होगा क्या। मरणासन्न व्यक्ति के लिए डाक्टर कहता है कि अब कुछ बचा नहीं है, घर ले जाकर इनकी सेवा करो। फिर भी परिवारीजन सोचते हैं कि कुछ और जी जाएं। मरीज भी सोचता है कि कोई चमत्कार हो जाए, जिससे मुझे जीवन मिल जाए। जैन मुनि ने कहा कि अब जन्म तो मुहुर्त के हिसाब से होने लगा है। प्रसव से पूर्व अभिभावक पंडित जी के पास जाते हैं और शिशु के जन्म के लिए मुहुर्त निकलवाते हैं। मुहुर्त के हिसाब भाग्य को बदलने की कोशिश की जाती है, लेकिन होता वही है जो पूर्व जन्म में कर आए हैं। लेकिन मृत्यु के लिए किसी पंडित पर कोई मुहुुर्त नहीं है। उसका कोई समय आज तक कोई तय नहीं कर पाया है। मृत्यु को मारने का एक ही तरीका है साधना। मृत्यु को दो तरीके से मना सकते हैं मातम के साथ या महोत्सव के रूप में। मृत्यु का महोत्सव उसी का मनाया जाता है, जिसने जीवन में कुछ किया हो। साधना, त्याग,तप किया हो। जिसने प्रमाद नहीं किया हो, हमेशा जागरूक रहा हो। भगवान महावीर अपनी पूरी साधना में केवल 48 मिनट ही सोए थे। जैन मुनि ने कहा कि होश पूर्वक जीवन केवल साधु ही नहीं जी सकते,आप भी ऐसा कर सकते हैं। आप भी इतना होश पूर्वक जीवन जीएं कि अन्य किसी बात का ध्यान ही नहीं रहे। केवल साधना, सत्कर्म और पुण्य ही हमारा लक्ष्य हो।
जैन मुनि ने कहा कि जितनी-जितनी सुविधाएं मिलती गईं, उतने ही पाप बढ़ते गए। हम भोजन बनाते समय भी अनेक जीवाणुओं की हिंसा करते हैं। एसी है जो मशीनी युग आ गया और अन्य प्रकार के उद्यम किये जा रहे हैं,उनसे जीवाणुओं की हिंसा बढ़ गई। अग्नि में जैसे-जैसे ईधन डालना बंद करोगे, वैसे-वैसे उसका प्रभाव कम होगा। हम भी अपनी दुर्भावनाओं को कम करते जाएंगे तो पापों में कमी आएगी। उन्होंने कहा कि यदि आप साधु नहीं बन सकते तो साधु जैसा आचरण तो कर सकते हैं। उनके विचारों पर अमल तो किया जा सकता है। यदि ऐसा करें तो इस युग का चमत्कार ही माना जाएगा।
रविवार की धर्म सभा में नरेश चप्लावत, आदेश बुरड़, विवेक कुमार जैन, रोहित जैन, सचिन जैन, संजय सुराना, अतिंन जैन, राजकुमार बरडिया, नीलम जैन, सुनीता जैन, सुलेखा सुराना, संगीता जैन, अंजली जैन, सुरेंद्र सोनी, नरेंद्र सिंह जैन सहित अनेक धर्मप्रेमी उपस्थित थे।
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