आगरा: नेपाल केसरी जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज ने कहा कि हम तर्क देकर जीवन को नर्क बना रहे हैं। यदि संयम, उदारता, समसरता, सरलता को बनाए रखेंगे तो हमें पुनः मनुष्य का जीवन मिल सकता है। वरना नर्क के भोग, भोगने होंगे।
जैन स्थानक, राजा की मंडी में प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने कहा कि आचार्य मांगतुंग भगवान आदिनाथ की स्तुति करते हुए कहते हैं कि आपका जीवन भूषण के समान है। आभूषण तो केवल मनुष्य के एक अंग को ही शोभित करते हैं, भूषण सर्वत्र शोभायमान होते हैं। इसलिए आप सभी लोगों के गौरव हैं।
जैन मुनि ने कहा कि स्वर्ग और नर्क हम अपने स्वभाव के कारण ही पाते हैं, उन पर हमें नियंत्रण करना होगा। पुनः मानव जीवन पाना है तो चार गुणों को जीवन में धारण करना होगा। प्रथम गुण जीवन में सरलता है, इसको अपनाना होगा। हमारी प्रवृति सरल होगी तो जीवन की बहुत सारी कठिनाइयों से मुक्त हो जाएंगे।
नम्रता भी वह गुण है, जो पुनः मनुष्य जीवन प्रदान करता है। नम्रता जीवन में नहीं होगी, तो मनुष्य में झुकने का भाव ही नहीं आएगा। मनुष्य को विनयवान होना बहुत जरूरी है। संसार में एसा कोई प्राणी नहीं, जिसमें कोई न कोई गुण नहीं हो। इन गुणों को आत्मसात करके झुकना ही नम्रता है। यदि नम्रता नहीं होगी तो मन में एक दूसरे के प्रति तर्क-कुतर्क आते रहेंगे, जिससे मन में क्लेश होता है। क्लेश होगा तो कड़वाहट होगी।
तीसरा स्वभाव दया का बताया गया। जैन मुनि बोले, व्यक्ति के मन में संवेदनाएं होनी चाहिए। जिस प्रकार किसी दुख से हमें पीड़ा होती है, वैसे ही दूसरों के दुख को देख कर कष्ट होना चाहिए। जब हम एक दूसरे की पीड़ा को समझ कर संवेदनशील होंगे, तभी मानवता जाग्रत होगी और हम पुनः मानव बनने योग्य होंगे।
चौथा गुण है ईर्ष्या भाव न होना है। यदि कोई आगे बढ़ता है, सफलता मिलती है तो हमें प्रसन्न होना चाहिए। उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। न कि ईर्ष्या रखते हुए टांग खींचने का काम करें।
जैन मुनि ने कहा कि आत्मा दुख भोगती हुई देव लोक जाती हैं, वहां भी क्षेत्र के हिसाब से दुख है। जो सुख मानव बनने में है , वह किसी में नहीं। नर्क, स्वर्ग के बारे में लोग तर्क देते हैं। हम इस धरती पर ही देख लें, कितना बड़ा नर्क यहां है। पालतू जानवर को भी भोजन पानी स्वामी के देने पर मिलता है, जानवर स्वयं नहीं ले पाता है। इस प्रकार के तमाम पशु, पक्षी, कीड़े-मकौड़े हमारे सामने ही कष्ट भोग रहे होते हैं। उन्होंने कहा धरती पर मनुष्य की आयु अधिकत सौ वर्ष की है, लेकिन नर्क चले गए तो वहां मनुष्य की आयु 10 हजार वर्ष होती है। इतने सालों तक कष्ट भोगना होता है। इसलिए अच्छे कर्म करके जीवन को सुकारथ बनाओ। पुण्य कार्य करें, तभी समाज का और अपना भला हो सकता है।
मानव मिलन संस्थापक डॉक्टर मणिभद्र मुनि,बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में बुधवार को छब्बीसवीं गाथा का लाभ अनीता सोना राम जैन,आशा महावीर प्रसाद जैन ,मीता अनिल जैन परिवार लोहामंडी ने लिया। नवकार मंत्र जाप की आराधना नीलम छजलानी एवम उमा जैन परिवार ने की।
बुधवार की धर्मसभा में पुणे महाराष्ट्र से पोपटलाल नाहर, उमेश भंडारी, प्रकाश बंब, लालचंद राठौड़, शीतल भंडारी पधारे थे जिनका ट्रस्ट की तरफ से नरेश जैन, राजीव चपलावत, आदेश बुरड़ ने स्वागत किया। बुधवार के अनुष्ठान में ट्रस्ट के महासचिव राजेश सकलेचा, विवेक कुमार जैन, अशोक जैन गुल्लू, संजय जैन, सुरेश सुराना, सुलेखा सुराना आदि उपस्थित थे।
-up18news/विवेक कुमार जैन
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