कोटा में छात्रों के सुसाइड की जांच की उठी मांग, आगरा के चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट ने राष्ट्रीय बाल आयोग को भेजा पत्र, दिए अहम सुझाव

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आगरा: राजस्थान में मेडिकल तथा इंजीनियरिंग के कोचिंग हब के रूप में मशहूर कोटा शहर में छात्र आए दिन आत्महत्या कर रहे हैं। 27 अगस्त को दो छात्रों की आत्महत्या ने सभी को झकझोर दिया है। वर्ष 2023 में आठ माह में 23 छात्रों ने कोटा में आत्महत्या कर लीं। हर दस दिन में एक छात्र आत्महत्या कर रहा है। मौत के कारणों जांच और रोकथाम के लिए आगरा के चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस ने राष्ट्रीय बाल आयोग को पत्र भेजा है।

उन्होंने पत्र में कहा है कि बीते आठ महीने में कोटा के कोचिंग संस्थाओं में यूपी-बिहार समेत कई राज्यों से पढ़ने आए 23 बच्चों ने पढ़ाई के बोझ में दबकर जान दे दी है। सबसे ज्यादा 7 आत्महत्या के मामले अगस्त और जून महीने में आए हैं।

डरा रहे आंकड़े

नरेश पारस ने आयोग को भेजे आत्महत्या के आंकड़ों में बताया कि जुलाई में 2 और मई में 5 आत्महत्या के मामले आए हैं। इसी तरह वर्ष 2015 में 17, वर्ष 2016 में 16, वर्ष 2017 में 7, वर्ष 2018 में 20, वर्ष 2019 में 8, वर्ष 2020 में 4, तथा वर्ष 2022 में 15 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया। यह आंकड़े अभिभावकों को बेचैन कर रहे हैं। कोटा एक डेथ फैक्ट्री के रूप में सामने आया है। छात्रों द्वारा उठाया जा रहा यह आत्मघाती कदम बहुत अनसुलझे सवाल खड़े कर रहा है। आखिर इस शहर में छात्र क्यों आत्महत्या कर रहे हैं ? छात्रों के सुसाइड के कारणों की जांच एवं मंथन करना आवश्यक है।

छिपे हो सकते हैं मौत के आंकड़े

नरेश पारस ने कहा कि यह वह मामले हैं जिनकी पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की है। कई मामले तो पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। संस्थानों ऊंची पहुंच होने के कारण मामले पुलिस तक पहुंच हीं नहीं पाते हैं। अपने बेटे की मौत से अभिभावक टूट जाता है। उसके पास विलाप करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता है। वह अपने बच्चे के शव को लेकर चुपचार घर लौट जाता है। कार्यवाई भी नहीं करता है। जिसका लाभ कोचिंग संस्थान उठा रहे हैं। यदि सही तरीके से छानबीन की जाए तो छात्रों की आत्महत्या के मामले और भी सामने आ सकते हैं। राजस्थान के अलावा यूपी बिहार से अधिक बच्चे यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं।

ये दिए सुझाव

बढ़ते आत्महत्या के मामलों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया जाए। सुसाइड के वास्तविक आंकड़ों का संकलन कर आत्महत्या रोकने हेतु कोचिंग संस्थानों के लिए नियमावली बनाई जाए।

जिला स्तर पर एक निगरानी समिति का गठन किया जाए। जो साप्ताहिक रिपोर्ट शासन प्रशासन को दे।

सभी संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य परामर्श को अनिवार्य रूप से शामिल कराया जाए। शिक्षकों को भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और कमजोर छात्रों के शुरुआती लक्षणों को पहचान सकें। इनमें आत्मघाती प्रवृत्ति वाले छात्रों, अनुपस्थित छात्रों और परीक्षाओं में खराब प्रदर्शन करने वालों को मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए पहचाना जाए।

कोचिंग संस्थानों के बैच में छात्रों की संख्या सीमित की जाए। एक बैच में 60 से अधिक बच्चों का न रखा जाए।

प्रशासन स्तर पर एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया जाए। रविवार के दिन को पढ़ाई और टेस्ट से मुक्त रखा जाए। इस दौरान बच्चे स्वंय को रीफ्रेश कर सके।

संस्थानों में छात्रों के स्वास्थ्य की नियमित जांच कराई जाए। जिससे छात्र स्वस्थ वातावरण में अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकें।

-up18News