दिल्ली विश्वविद्यालय ने की आजादी और बंटवारे से संबंधित अध्ययन के लिए एक नया सेंटर शुरू करने की तैयारी

अन्तर्द्वन्द

‘क्या केंद्रीय नेतृत्व अलगाववादी तत्वों को काबू में रखने में नाकाम रहा’, ‘फ्रंटियर प्रॉविंस को भारत में रखने पर केंद्रीय नेतृत्व ने जोर क्यों नहीं दिया, क्या वजह थी?’

ऐसे कई सवालों के जवाब अब 75 साल बाद ढूंढे जाएंगे।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने आजादी और बंटवारे से संबंधित अध्ययन के लिए एक नया सेंटर शुरू करने की तैयारी की है। सेंटर का कामकाज देखने के लिए 8 सदस्यीय पैनल गठित किया गया है। इस पैनल के ड्राफ्ट नोट में कहा गया है कि वास्तव में 8वीं सदी में ही भारत के बंटवारे के बीज बोए जा चुके थे। दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक, भारत ने सभी विचारों और मतभेदों को समाहित कर लिया था लेकिन बार-बार विदेशी आक्रांताओं के हमले के चलते हालात बदल गए। एक तरह की सुस्ती और आत्म-संतुष्टि की भावना घर करती गई।

किताब में भी बड़ा खुलासा

पाकिस्तान के मौजूदा खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के इतिहास पर कुछ समय पहले एक किताब आई थी। राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक रह चुके नौकरशाह राघवेंद्र सिंह ने अपनी किताब में खुलासा किया कि 1947 में कांग्रेस नेतृत्व ने महात्मा गांधी और कुछ प्रभावशाली नेताओं के विरोध के बावजूद सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र पर दावा छोड़ दिया था। इस प्रांत को पहले पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत (NWFP) के नाम से जाना जाता था। किताब का नाम ‘इंडिया लॉस्ट फ्रंटियर-द स्टोरी ऑफ नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस ऑफ पाकिस्तान’ है।

8वीं सदी में अरब आक्रमण

‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक ड्राफ्ट नोट में कहा गया है कि विदेशी हमलों के कारण भारत धीरे-धीरे अपनी सांस्कृतिक और बौद्धिक ताकत खोने लगा और जाति, धर्म, भाषा और नस्ल को लेकर कई दरारें पैदा होती गईं। विदेशी हमले 8वीं सदी की शुरुआत में ही सिंध में अरब आक्रमण से शुरू हो गए थे। इसमें धर्म एक बड़ा मसला बनता गया और आगे चलकर धर्म के आधार पर ही देश का बंटवारा हो गया।

इसमें कहा गया है कि ‘बंटवारे की भयावहता 1000 साल से अधिक के कालखंड में हुए आक्रमणों और बर्बरता की याद दिलाती है जिसने सहिष्णुता, सह-अस्तित्व की भावना वाली इस समृद्ध भूमि को संघर्ष और धर्म-संप्रदाय के आधार पर विभाजन में तब्दील कर दिया।’ तबाही की शुरुआत तो मध्यकाल के आक्रमणकारियों के समय हो गई थी, जिसे अंग्रेजों ने पूरा किया।

रेडक्लिफ की क्या भूमिका थी?

ड्राफ्ट नोट में कहा गया है कि यह सेंटर बंटवारे से संबंधित कई सवालों के जवाब जानने की कोशिश करेगा, जैसे रेडक्लिफ की भूमिका क्या-क्या रही, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान का बंटवारा किया। बंटवारे से संबंधित हाई वोल्टेज पॉलिटिक्स क्या थी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने की बात कही है। उन्होंने आजादी और बंटवारे पर एक समर्पित रिसोर्स सेंटर बनाने की बात कही थी। इसी पर अब आगे बढ़ा जा रहा है।

Compiled: up18 News