दिल्‍ली हाई कोर्ट ने कहा: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए होनी चाहिए लक्ष्मण रेखा, कोर्ट में चलाया गया उमर खालिद के भाषण का वीडियो

Exclusive

दिल्ली दंगों के आरोपी और जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें ‘लक्ष्मण रेखा’ की याद दिलाई है। महाराष्ट्र के अमरावती में दिए गए उमर खालिद के भाषण का क्लिप बुधवार को बाकायदे कोर्ट में चला।

स्पीच सुनने के बाद हाई कोर्ट ने आरोपी के वकील से पीएम के लिए जुमला शब्द के इस्तेमाल, क्रांतिकारी और इंकलाब शब्द के तुक समेत तमाम हिस्सों पर स्पष्टीकरण मांगा। साथ में ये नसीहत भी कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी लक्ष्मण रेखा होनी ही चाहिए। इससे पहले भी हाई कोर्ट उमर खालिद की स्पीच को पहली नजर में भड़काऊ, नफरत फैलाने वाला बता चुका है। अदालत इस मामले में भगत सिंह और महात्मा गांधी का भी जिक्र कर चुकी है।

आइए जानते हैं उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट अब तक क्या-क्या अहम टिप्पणियां की हैं।

हाई कोर्ट में जमानत याचिका

सबसे पहले समझते हैं कि उमर खालिद से जुड़ा पूरा मामला क्या है। जेएनयू के इस पूर्व छात्र पर फरवरी 2020 दिल्ली दंगों की साजिश रचने, भड़काऊ भाषण के जरिए लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप है। दिल्ली दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। खालिद के खिलाफ बेहद कड़े प्रावधानों वाले आतंकवाद निरोधक कानून ‘अनलॉफुल एक्टिविटिज (प्रिवेंशन) एक्ट’ यानी UAPA के तहत केस दर्ज किया गया है। उमर खालिद को 13 सितंबर 2020 को गिरफ्तार किया गया और तब से वह जेल में है।

करीब एक महीने पहले 24 मार्च को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने उसे जमानत देने से इंकार कर दिया था। उसके बाद उमर खालिद जमानत के लिए दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा है।

क्या प्रधानमंत्री के लिए ‘जुमला’ शब्द का इस्तेमाल सही है?

बुधवार को कोर्ट रूम में दलीलों के दौरान उमर खालिद के अमरावती में दिए गए भाषण का वीडियो क्लिप चलाया गया। इसके बाद जस्टिस भटनागर ने पूछा, ”कोई ‘चंगा’ (ठीक) शब्द इस्तेमाल किया गया था। क्यों? ‘सब चंगा सी’ (सब ठीक है) और उसके बाद उसने क्या कहा?” खालिद की ओर से वरिष्ठ वकील त्रिदीप पाइस ने कहा कि बयान ‘व्यंग्यात्मक स्वभाव’ का था और प्रधानमंत्री ने पहले एक भाषण में इस शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने कहा, ‘उसके बाद वह कहते हैं कि यह गलत है, यह एक और जुमला है और ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं वह सही है।’

इस पर जस्टिस भटनागर ने कहा, ”यह ‘जुमला’ भारत के प्रधानमंत्री के लिए कहा गया। क्या यह उचित है? आलोचना के लिए भी एक रेखा खींची जानी चाहिए। एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए।”
इस पर पाइस ने बचाव में कहा कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है।

क्रांतिकारी, इंकलाब शब्द का इस्तेमाल क्या हिंसा के लिए बिगुल फूंकने जैसा था?

हाई कोर्ट ने उमर खालिद से पूछा कि भाषण में ‘क्रांतिकारी’ और ‘इंकलाब’ शब्द का इस्तेमाल के पीछे क्या इरादा था? कहीं ये हिंसा और दंगा भड़काने का आह्वान तो नहीं था? जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने खालिद के वकील से ‘क्रांतिकारी’ और ‘इंकलाबी’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट करने को कहा। कोर्ट ने ये भी कहा कि जिस व्यक्ति ने खालिद को मंच पर बुलाया था, उसने भी ये कहते हुए उनका परिचय कराया था कि वह अपने ‘इंकलाबी खयाल’ पेश करेगा। हाई कोर्ट ने कहा कि ये देखना पड़ेगा कि इस भाषण से क्या हिंसा भड़की।

ऊंट किसे कह रहे और वह किस पहाड़ के नीचे आ गया?

कोर्ट ने यह भी पूछा कि खालिद अपने भाषण में ‘ऊंट’ किसे कह रहे हैं, जब वो यह कहते हैं कि ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया। जवाब में पायस ने कहा कि उन्होंने इस शब्द का इस्तेमाल सरकार के लिए किया, जो सीएए का विरोध करने वाले लोगों से बातचीत के लिए तैयार नहीं थी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इसमें हिंसा के लिए उकसावा नहीं है। हम गिरफ्तारी देने के लिए तैयार थे, लेकिन हिंसा के लिए नहीं।

हिंसा वाली जगह पर नहीं होने का क्या मतलब, ये 5 जी का जमाना है

जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान उमर खालिद के वकील ने जोर देकर ये दलील दी कि दिल्ली दंगों के दौरान उनका मुवक्किल हिंसा वाली जगह पर मौजूद ही नहीं था। इस पर कोर्ट ने कहा, ‘आज 5G का जमाना है जहां आप जो कुछ भी कहते हैं, अगर वह सोशल मीडिया या यू-ट्यूब पर अपलोड कर दिया गया तो वह भौगोलिक सीमाओं को पार कर जाता है लिहाजा सवाल ये है कि क्या उनके भाषण की वजह से नॉर्थईस्ट दिल्ली में दंगे भड़के?’

22 अप्रैल को भी हाई कोर्ट ने की थीं तीखी टिप्पणियां, पहली नजर में स्वीकार्य नहीं है आपत्तिजनक भाषण

इससे पहले भी दिल्ली हाई कोर्ट उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणियां कर चुका है। 22 फरवरी को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र के अमरावती में दिया गया खालिद का भाषण आपत्तिजनक था और प्रथमदृष्टया ये स्वीकार्य नहीं है।

महात्मा गांधी और भगत सिंह का जिक्र, ‘दलाली’ पर फटकार

हाई कोर्ट ने फटकार लगाते हुए पूछा कि क्या आपको नहीं लगता कि आपका भाषण भड़काऊ है। खालिद ने अपने भाषण में एक जगह कहा था कि ‘आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली’ कर रहे थे। हाई कोर्ट ने पूछा कि क्या यह कहना कि आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे, गलत नहीं है। क्या ये भाव लोगों के लिए अपमानजनक नहीं है? क्या आपको नहीं लगता कि जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया वे लोगों को उकसाते हैं?

हाई कोर्ट ने कहा कि उमर खालिद ने ‘आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे’ इसको कम से कम 5 बार कहा। आपकी बात से ऐसा लगता है कि सिर्फ एक समुदाय अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। क्या भगत सिंह और गांधी जी कभी ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया? क्या गांधी जी ने हमें सिखाया कि हम लोगों और उनके पूर्वजों के खिलाफ ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं? हाई कोर्ट ने कहा कि भगत सिंह का आह्वान करना बहुत आसान है लेकिन उनके रास्तों पर चलना बहुत मुश्किल है।

निचली अदालत में सुनवाई के दौरान हुआ था 9/11 का भी जिक्र

कड़कड़डूमा कोर्ट में जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान तो अमेरिका पर हुए 9/11 के भीषण आतंकी हमले का भी जिक्र आया था। दरअसल, बचाव पक्ष ने दलील दी थी कि खालिद हिंसा के समय वहां मौजूद नहीं था। इसी पर अभियोजन पक्ष ने 9/11 का जिक्र किया। सुनवाई के दौरान स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने अमित प्रसाद ने कहा था कि धर्मनिरपेक्ष विरोध को एक ‘मुखौटा’ बनाकर प्रदर्शन की योजना बनाई गई थी।

अभियोजन पक्ष ने कहा था कि 9/11 होने से ठीक पहले, इसमें जुड़े सभी लोग एक विशेष स्थान पर पहुंचे और ट्रेनिंग ली थी। उससे एक महीने पहले वे अपने-अपने स्थानों पर चले गए। इस मामले में भी यही चीज हुई। उन्होंने आगे कहा कि 9/11 प्रकरण का संदर्भ बहुत प्रासंगिक है। 9/11 के पीछे जो व्यक्ति था, वह कभी अमेरिका नहीं गया। मलेशिया में बैठक कर साजिश की गई थी। उस समय वाट्सऐप चैट उपलब्ध नहीं थे। आज हमारे पास दस्तावेज उपलब्ध हैं कि वह समूह का हिस्सा था। यह दिखाने के लिए आधार है कि हिंसा होने वाली थी।

-एजेंसियां