22 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत, इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यरूप में लिया था अपना पहला अवतार

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पर्वों से जुड़ी मान्यताएं

चैत्र नवरात्रि यानी देवी पूजा के नौ दिन – ये देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करने का महापर्व है। इस नवरात्रि के संबंध में मान्यता है कि पुराने समय में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर देवी दुर्गा ने महिषासुर को मारने के लिए खुद को 9 स्वरूपों में प्रकट किया था। सभी देवताओं ने देवी को अलग-अलग शक्तियां और अस्त्र-शस्त्र भेंट किए थे। इस प्रक्रिया में पूरे नौ दिन लगे थे। इस मान्यता की वजह से चैत्र शुक्ल पक्ष में नौ दिनों तक देवी पूजा की जाती है। इसके बाद देवी ने आश्विन मास में महिषासुर का वध किया था। देवी ने महिषासुर से नौ दिनों तक युद्ध किया था और दसवें दिन उसका वध किया था। इस कारण आश्विन मास में भी नौ दिनों तक नवरात्रि मनाई जाती है।

ब्रह्मा जी ने इस तिथि पर रची थी सृष्टि – मान्यता है कि शिव जी इच्छा से ब्रह्मा जी ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर ही सृष्टि की रचना की थी। भगवान विष्णु ने सृष्टि में प्राण डाले थे। शिव जी, विष्णु जी और ब्रह्मा जी, तीनों देवता अलग-अलग भूमिका निभाते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं।

भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार – भगवान विष्णु ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर ही अपना पहला अवतार मस्त्य यानी मछली के रूप में लिया था। उस समय विष्णु जी ने राजा मनु का घमंड तोड़ा था और प्रलय के समय सभी प्राणियों की, वेदों की रक्षा की थी।

नव संवत 2080 की होगी शुरुआत – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दी पंचांग का नया वर्ष शुरू होता है। इसे विक्रम संवत कहते हैं। राजा विक्रमादित्य ने इसकी शुरुआत की थी, इसलिए इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है।

भगवान झूलेलाल ने की थी धर्म और लोगों की रक्षा

मान्यता है कि पुराने समय सिंध प्रांत में मिरखशाह नाम के मुगल सम्राट राज था। वह लोगों को इस्लाम धर्म कबूलने के लिए प्रताड़ित करता था। उस समय झूलेलाल जी का जन्म हुआ था और उन्होंने मिरखशाह से लोगों की और धर्म की रक्षा की थी। झूलेलाल जी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर हुआ था।