सैनिकों का सम्मान: समर्पण और बलिदान की पहचान

हमारे सैनिक, जो सीमाओं पर अपने प्राणों की बाजी लगाते हैं, हमारे असली नायक हैं। युद्ध की आशंका में लौटते सैनिकों को ट्रेन में सीट दें, सड़क पर मिलें तो अपने वाहन से आगे छोड़ें, और होटलों में निशुल्क ठहरने की सुविधा दें। उनका सम्मान हमारा कर्तव्य है, न कि महज़ औपचारिकता। जहाँ भी मिले, […]

Continue Reading

ऑपरेशन सिंदूर: आतंकवाद के खिलाफ भारत की निर्णायक कार्रवाई

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादियों के 9 ठिकानों को नष्ट किया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे प्रमुख आतंकवादी संगठनों के हेडक्वार्टर भी शामिल थे। भारतीय सेना ने 100 किलोमीटर तक पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादी अड्डों पर सटीक एयरस्ट्राइक की। साथ ही, भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तान […]

Continue Reading

पंजाब-हरियाणा जल विवाद: सरहद के साए में भारत के भीतर की लड़ाई

“जब पानी भी हथियार बन जाए: भारत की एकता पर डाका” भारत आज बाहरी हमलों से ज़्यादा आंतरिक विघटन से जूझ रहा है। पंजाब-हरियाणा जल विवाद हो या पहलगाम आतंकी हमला—हर संकट के पीछे एक अदृश्य वैचारिक युद्ध छिपा है। जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और विचारधारा के नाम पर देश के भीतर एक तीसरा मोर्चा […]

Continue Reading

केसीसी के नाम पर चालबाज़ी: निजी बैंकों की शिकारी पूँजी और किसानों की लूट

निजी बैंक किसानों को केसीसी योजना के तहत ऋण देते समय बीमा और पॉलिसियों के नाम पर चुपचाप उनके खातों से पैसे काट लेते हैं। हाल ही में राजस्थान में एक्सिस बैंक की ऐसी ही करतूत उजागर हुई जब एक किसान ने वीडियो बनाकर सच्चाई सामने रखी। यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि पूरे बैंकिंग […]

Continue Reading

इतिहास का बोझ: कब तक हमारी पीढ़ियाँ झुकती रहेंगी?

मुझे यह सोचकर पीड़ा होती है कि आज भी हमारे बच्चों को इतिहास के नाम पर मुग़ल शासकों की गाथाएँ पढ़ाई जाती हैं, जबकि चाणक्य, चित्रगुप्त और छत्रपति शिवाजी जैसे हमारे महान विचारकों और योद्धाओं को पाठ्यक्रम में पर्याप्त स्थान नहीं मिलता। मेरा मानना है कि इतिहास केवल जानने का विषय नहीं, बल्कि आत्मगौरव और […]

Continue Reading

अंततः देश में जाति जनगणना: प्रतिनिधित्व या पुनरुत्थान?

भारत में दशकों से केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती होती रही है, जबकि अन्य जातियाँ नीति निर्माण में अदृश्य रहीं। जाति जनगणना केवल गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की नींव है। बिना सटीक आंकड़ों के आरक्षण, योजनाएं और संसाधन वितरण अधूरे रहेंगे। विरोध करने वालों को डर है कि उनके विशेषाधिकार चुनौती में […]

Continue Reading

प्रेस की चुप्पी, रीलों का शोर: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बन गया ट्रेंडिंग टैग

“प्रेस स्वतंत्रता दिवस: एक इतिहास, एक याद” प्रेस स्वतंत्रता दिवस अब औपचारिकता बनकर रह गया है। पत्रकारिता की जगह अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने ले ली है, जहां सच्चाई की जगह रीलें, और विश्लेषण की जगह व्यूज़ ने कब्जा कर लिया है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब ब्रांड डील्स और ट्रेंडिंग टैग्स में गुम हो […]

Continue Reading

मजदूर दिवस: एक दिन सम्मान, साल भर अपमान

मजदूर दिवस केवल एक तारीख नहीं, श्रमिकों की मेहनत, संघर्ष और हक की पहचान है। 1 मई को मनाया जाने वाला यह दिन उस आंदोलन की याद है जिसने काम के सीमित घंटे, सम्मानजनक वेतन और श्रम अधिकारों की लड़ाई लड़ी। लेकिन भारत जैसे देशों में मजदूर आज भी असंगठित, असुरक्षित और उपेक्षित हैं। महिला […]

Continue Reading

“हिंदी साहित्य की आँख में किरकिरी: स्वतंत्र स्त्रियाँ”

हिंदी साहित्य जगत को असल स्वतंत्र चेता प्रबुद्ध स्त्रियां अभी भी हजम नहीं होती। उन्हें वैसी ही स्त्री लेखिका चाहिए जैसा वह चाहते हैं। वह सॉफ्ट मुद्दों पर लिखे, परिवार, समाज, कुछ मनोविज्ञान, स्त्री-पुरुष संबंध। आधुनिकता का या आधुनिक स्त्री का पर्याय उनके लिए वह है कि बोल्ड लेखन कर सके, अश्लीलता को बोल्ड लेखन […]

Continue Reading

वन्य जीवों और पेड़ों के लिए अपनी जान पर खेलता बिश्नोई समाज

बिश्नोई समाज राजस्थान का एक अनूठा समुदाय है जो सदियों से पेड़-पौधों और वन्य जीवों की रक्षा में अपना जीवन समर्पित करता आया है। यहां की महिलाएं घायल हिरणों को अपने बच्चों की तरह पालती हैं। 1730 में खेजड़ली गांव में अमृता देवी और 363 बिश्नोईयों ने पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर […]

Continue Reading