ई-वोटिंग: लोकतंत्र की मजबूती या तकनीकी जटिलता?

ई-वोटिंग मतदान प्रक्रिया को सरल, सुलभ और व्यापक बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। बिहार के प्रयोग से स्पष्ट है कि मोबाइल ऐप के माध्यम से मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी संभव है। हालांकि, तकनीकी पहुंच, साइबर सुरक्षा, मतदाता की पहचान और गोपनीयता जैसी चुनौतियाँ इस प्रणाली के समक्ष खड़ी हैं। डिजिटल […]

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ज़ीरो डोज़ बच्चे: टीकाकरण में छूटे हुए भारत की तस्वीर

भारत में 2023 में 1.44 मिलियन बच्चे ‘ज़ीरो डोज़’ श्रेणी में थे, जिनमें अधिकांश गरीब, अशिक्षित, जनजातीय, मुस्लिम और प्रवासी समुदायों से आते हैं। भूगोलिक अवरोध, सामाजिक हिचकिचाहट, शहरी झुग्गियों में अव्यवस्थित शासन और निगरानी की कमी प्रमुख चुनौतियाँ हैं। मिशन इंद्रधनुष जैसी योजनाएँ सीमित प्रभावी रही हैं। समाधान के लिए समुदाय-आधारित सहभागिता, तकनीक आधारित […]

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भारतीय किशोर लेखक और वैज्ञानिक ने एलन मस्क पर लिखी प्रेरक जीवनी

मुंबई (अनिल बेदाग) 18 वर्षीय विवान कारुलकर, जो ‘नये भारत’ के एक प्रतिभाशाली और सफल किशोर लेखक व वैज्ञानिक हैं, ने अपनी तीसरी पुस्तक “इलोन मस्क: द मैन हू बेंड्स रियलिटी” लिखी है। यह पुस्तक विश्वविख्यात उद्यमी और टेक्नोलॉजी आइकन एलन मस्क के जीवन पर आधारित एक प्रेरणादायक जीवनी है। विवान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय […]

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साहित्य का मंच या शिकार की मंडी? : नई लेखिका आई है — और मंडी के गिद्ध जाग उठे हैं

नई लेखिकाओं के उभार के साथ-साथ जिस तरह साहित्यिक मंडियों में उनकी रचनात्मकता की बजाय उनकी देह, उम्र और मुस्कान का सौदा होता है — यह एक गहरी और शर्मनाक सच्चाई है। मंच, आलोचना, भूमिका, सम्मान – सब कुछ एक जाल बन जाता है। यह संपादकीय स्त्री लेखन के नाम पर चल रही पाखंडी व्यवस्था […]

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समीक्षा: “चूल्हे से चाँद तक” — चूल्हे की आँच से चाँद की कविता तक की यात्रा

समीक्षक: सोनल शर्मा, देहरादून प्रियंका सौरभ का यह काव्य संग्रह ‘चूल्हे से चाँद तक’ केवल कविता नहीं, स्त्री आत्मा की यात्रा है। यह वह आवाज़ है, जिसे सदियों से दबाया गया, पर वह फिर भी जलती रही – रोटियों के साथ, परातों के बीच, और आँसुओं में घुली स्याही के माध्यम से। इस संग्रह की […]

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मिलावट: शरीर ही नहीं, आत्मा को भी कर रहा है बीमार

मिलावट अब केवल खाने-पीने तक सीमित नहीं रही, यह हमारे सोच, संबंध, और व्यवस्था तक में घुल चुकी है। मूँगफली में पत्थर हो या दूध में डिटर्जेंट, यह मुनाफाखोरी की संस्कृति का विस्तार है। उपभोक्ता की चुप्पी, सरकार की ढील और समाज की “चलता है” मानसिकता ने इसे स्वीकार्य बना दिया है। मिलावट एक नैतिक […]

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भारतीय पारिवारिक मूल्यों के पतन का आईना है ये हृदय स्पर्शी दास्तान

“पिता का पस्त मन और पुत्रों की पश्चिमी व्यस्तता” “एक पिता की विदाई, और समाज की परीक्षा” लखनऊ के एक रिटायर्ड कर्नल ने अपने बेटों को एक मार्मिक पत्र लिखकर आत्महत्या कर ली। दोनों बेटे अमेरिका में बसे थे और मां की मृत्यु पर भी पूरी संवेदनशीलता नहीं दिखा सके। पिता ने पत्र में लिखा […]

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दिल्ली में साँसों पर संकट, पर हरियाली ने जगाई उम्मीद…!

इंटीरियर डेकोरेशन में वास्तविक हरियाली बनी पहली पसंद… दिल्ली की ओर रुख करते हुए मन में एक ही प्रश्न बार-बार कौंधता रहा—क्या इस बार भी वही धूल-धुआँ और दमघोंटू हवा स्वागत करेगी? बीते कुछ वर्षों से दिल्ली की हवा जहरीली होती जा रही है, और आंकड़े इसकी भयावहता की पुष्टि भी करते हैं। अक्टूबर से […]

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योगम् शरणम् गच्छामि: मनोजन्य दैहिक बीमारियों से मुक्त होने के लिए योग है जरूरी

आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमने जितनी खराबियां बटोरी हैं उस कारण मानवी मन मस्तिष्क के सम्मुख आज अनेक समस्याएं तथा चुनौतियां उपस्थित हुई हैं। खासकर पाश्चात्य जीवन शैली और रहन सहन ने मानव को मानसिक तनाव एवं अंतहीन पीड़ा के दलदल में धकेला है। इसके साथ ही तकनीकी प्रगति के भयावह जानलेवा वेग के […]

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प्रेम, प्रतिष्ठा और पीड़ा की त्रयी: ‘राज सर आईपीएस’ की मार्मिक गाथा

“प्रेम, पीड़ा और प्रश्नों की गाथा: ‘राज सर आईपीएस’” “जब व्यवस्था प्रेम को निगल गई: मंजू वर्मा की आत्मकथा पर एक दृष्टि” एक अधूरी कहानी का दस्तावेज: ‘राज सर आईपीएस’ प्रेम की सबसे सच्ची परीक्षा तब होती है जब वह समय, समाज और सत्ता की सख्त दीवारों से टकराता है। ‘राज सर आईपीएस’ केवल एक […]

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