संयुक्त परिवार: जीवन मूल्यों की एक जीवंत पाठशाला

संयुक्त परिवार केवल साथ रहने की व्यवस्था नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों की एक जीवंत पाठशाला है। यहाँ बच्चे रिश्तों के बीच रहकर अनुशासन, सहनशीलता, त्याग और सहयोग जैसे गुणों को स्वाभाविक रूप से सीखते हैं। बुज़ुर्गों का अनुभव और युवाओं की ऊर्जा मिलकर एक समृद्ध पारिवारिक वातावरण बनाते हैं। त्योहारों से लेकर संकटों तक, हर […]

Continue Reading

माँ का आँचल – प्रेम की छाँव, बलिदान का गीत

माँ केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि जीवन की पहली गुरु, मार्गदर्शिका और सबसे करीबी मित्र है। उसकी ममता जीवनभर हमें सुरक्षा, सुकून और संस्कार देती है। माँ का आशीर्वाद किसी कवच से कम नहीं, जो हर मुश्किल में हमें संबल देता है। मदर्स डे पर उसे सम्मान देना मात्र एक औपचारिकता नहीं, बल्कि उसके […]

Continue Reading

कुलपति विहीन विश्वविद्यालय: हरियाणा की उच्च शिक्षा का ठहरा भविष्य

हरियाणा के सात से अधिक विश्वविद्यालय लंबे समय से स्थायी कुलपति विहीन हैं, जिससे उच्च शिक्षा प्रणाली में नेतृत्व का अभाव उत्पन्न हुआ है। यह न केवल प्रशासनिक शिथिलता को जन्म दे रहा है बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी क्रियान्वयन में भी बाधा बन रहा है। नियुक्ति प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी, राजनीतिक […]

Continue Reading

सैनिकों का सम्मान: समर्पण और बलिदान की पहचान

हमारे सैनिक, जो सीमाओं पर अपने प्राणों की बाजी लगाते हैं, हमारे असली नायक हैं। युद्ध की आशंका में लौटते सैनिकों को ट्रेन में सीट दें, सड़क पर मिलें तो अपने वाहन से आगे छोड़ें, और होटलों में निशुल्क ठहरने की सुविधा दें। उनका सम्मान हमारा कर्तव्य है, न कि महज़ औपचारिकता। जहाँ भी मिले, […]

Continue Reading

ऑपरेशन सिंदूर: आतंकवाद के खिलाफ भारत की निर्णायक कार्रवाई

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादियों के 9 ठिकानों को नष्ट किया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे प्रमुख आतंकवादी संगठनों के हेडक्वार्टर भी शामिल थे। भारतीय सेना ने 100 किलोमीटर तक पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादी अड्डों पर सटीक एयरस्ट्राइक की। साथ ही, भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तान […]

Continue Reading

पंजाब-हरियाणा जल विवाद: सरहद के साए में भारत के भीतर की लड़ाई

“जब पानी भी हथियार बन जाए: भारत की एकता पर डाका” भारत आज बाहरी हमलों से ज़्यादा आंतरिक विघटन से जूझ रहा है। पंजाब-हरियाणा जल विवाद हो या पहलगाम आतंकी हमला—हर संकट के पीछे एक अदृश्य वैचारिक युद्ध छिपा है। जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और विचारधारा के नाम पर देश के भीतर एक तीसरा मोर्चा […]

Continue Reading

केसीसी के नाम पर चालबाज़ी: निजी बैंकों की शिकारी पूँजी और किसानों की लूट

निजी बैंक किसानों को केसीसी योजना के तहत ऋण देते समय बीमा और पॉलिसियों के नाम पर चुपचाप उनके खातों से पैसे काट लेते हैं। हाल ही में राजस्थान में एक्सिस बैंक की ऐसी ही करतूत उजागर हुई जब एक किसान ने वीडियो बनाकर सच्चाई सामने रखी। यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि पूरे बैंकिंग […]

Continue Reading

इतिहास का बोझ: कब तक हमारी पीढ़ियाँ झुकती रहेंगी?

मुझे यह सोचकर पीड़ा होती है कि आज भी हमारे बच्चों को इतिहास के नाम पर मुग़ल शासकों की गाथाएँ पढ़ाई जाती हैं, जबकि चाणक्य, चित्रगुप्त और छत्रपति शिवाजी जैसे हमारे महान विचारकों और योद्धाओं को पाठ्यक्रम में पर्याप्त स्थान नहीं मिलता। मेरा मानना है कि इतिहास केवल जानने का विषय नहीं, बल्कि आत्मगौरव और […]

Continue Reading

अंततः देश में जाति जनगणना: प्रतिनिधित्व या पुनरुत्थान?

भारत में दशकों से केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती होती रही है, जबकि अन्य जातियाँ नीति निर्माण में अदृश्य रहीं। जाति जनगणना केवल गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की नींव है। बिना सटीक आंकड़ों के आरक्षण, योजनाएं और संसाधन वितरण अधूरे रहेंगे। विरोध करने वालों को डर है कि उनके विशेषाधिकार चुनौती में […]

Continue Reading

प्रेस की चुप्पी, रीलों का शोर: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बन गया ट्रेंडिंग टैग

“प्रेस स्वतंत्रता दिवस: एक इतिहास, एक याद” प्रेस स्वतंत्रता दिवस अब औपचारिकता बनकर रह गया है। पत्रकारिता की जगह अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने ले ली है, जहां सच्चाई की जगह रीलें, और विश्लेषण की जगह व्यूज़ ने कब्जा कर लिया है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब ब्रांड डील्स और ट्रेंडिंग टैग्स में गुम हो […]

Continue Reading