दक्षिण अफ्रीका इस महीने के आखिर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई ग्लोबल लीडर्स हिस्सा लेंगे। 22 से 24 अगस्त तक होने वाले इस शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स के विस्तार पर व्यापक विचार-विमर्श किया जाएगा। ब्रिक्स दुनिया के पांच सबसे बड़े विकासशील देशों का समूह है- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका। यह वैश्विक आबादी का 41 प्रतिशत, ग्लोबल जीडीपी का 24 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार का 16 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही शिखर सम्मेलन के लिए जोहान्सबर्ग नहीं जाने का फैसला ले चुके हैं।
अर्जेंटीना, मिस्र, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब सहित कई अन्य देश ब्रिक्स का हिस्सा बनना चाहते हैं। ब्रिक्स भी अपनी सदस्यता का विस्तार करने पर विचार कर रहा है। बड़ी संख्या में देशों, जिनमें से ज्यादातर ग्लोबल साउथ से हैं, ने इसमें शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है। चीन ने पिछले साल इसके विस्तार का प्रस्ताव रखा था। चीन का असली मकसद पश्चिम के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए एक राजनयिक ताकत खड़ी करना और कोविड के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाना है।
विस्तार पर क्या सोचता है भारत?
संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अर्जेंटीना, ईरान, मिस्र, बहरीन, इंडोनेशिया और कजाकिस्तान सहित कई देश ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, 40 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है। कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो 22 देशों ने औपचारिक रूप से आवेदन किया है। भारत समूह के इतने तेजी से विस्तार को संदेह की नजर से देख रहा है लेकिन उसके खुले तौर पर इसका विरोध नहीं किया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘ब्रिक्स का विस्तार सदस्य देशों के बीच ‘पूर्ण परामर्श और सर्वसम्मति’ से किया जाना चाहिए।’
ब्रिक्स के विस्तार से पश्चिम चिंता में
ब्रिक्स के विस्तार को पश्चिम के लिए एक सीधी चुनौती के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि चीन और रूस इसका समर्थन कर रहे हैं। ब्रिक्स के विस्तार से अमेरिकी डॉलर को बड़ा झटका लग सकता है। आउटलुक मैग्जीन की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर ब्रिक्स अपनी मुद्रा लॉन्च करता है, तो यह डॉलर का विकल्प बन सकती है और इसके प्रभुत्व को कम कर सकती है। यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते भारत सहित कई देश व्यापार के लिए वैकल्पिक मुद्राओं का इस्तेमाल कर रहे हैं।
बहुध्रुवीय विश्व अर्थव्यवस्था की दिशा में बड़ा कदम
भारत ने हाल ही में रूसी तेल के आयात के भुगतान के लिए चीनी मुद्रा युआन का इस्तेमाल किया है। ऐसे में ब्रिक्स मुद्रा का लॉन्च बहुध्रुवीय विश्व अर्थव्यवस्था की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी), जिसकी स्थापना ब्रिक्स देशों ने की थी, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, डेवलेपमेंट इनिशिएटिव और अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए पैसा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
Compiled: up18 News
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