दलितों-पिछड़ो के लिए मौत का कुंआ है भाजपा और संघ

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आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदाय पर सबसे ज्यादा हुए हमले

भागीदारी के सवाल से अब भाग रही है भाजपा

भाजपा में केशव प्रसाद मौर्य , स्वतंत्र देव सिंह यो जो भी पिछड़ी जातियों के नेता गठबंधन में है जैसे अनुप्रिया पटेल संजय निषाद ये सब पिछड़े समाज के दुश्मन है पिछडो के हक हकूक पर खुलेआम भाजपा सरकार द्वारा डाका डाला जा रहा है पर ये निकम्मे अपना होंठ सील के बैठे हुए है ये हरे घास में हरे रंग के सर्प के समान है जो अपनो को ही डसने पर आमादा है

अमित मौर्या

वाराणसी/लखनऊ : यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा की डगमगाती सत्ता की नाव से अब यह साबित हो चुका है कि सबका -साथ, सबका -विकास का वादा केवल एक खोखला छलावा था । दिल्ली से लेकर लखनऊ तक सियासी उबाल के बीच यह तो तय हो गया कि डर के जिस चादर से जनता के उत्पीड़न का मामला ढाक दिया गया था, आचार सहिंता लगते ही वह चादर अब उठने लगा है , जिस तरह से भाजपा के कैबिनेट मंत्रियों और विधायकों के इस्तीफे हो रहे है ,यह बात पूरी तरह से अब प्रमाणित कर दिया है कि भाजपा सरकार में दलित, पिछडो, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों के हितों का ख्याल नही रखा गया । जिस कारण से वे इस्तीफा देकर नई पार्टी ज्वाइन कर रहे है।

यदि पांच साल के आंकड़ो को देखा जाय तो ब्राह्मण सहित अन्य वंचित जातियों के सर्वाधिक एनकाउंटर किये गए, अपराधियों के घरों पर बुलडोजर चलाये गए, हत्या, बलात्कार के मामले में यदि अपराधी सत्ता से जुड़ा हुआ है तो सरकार ऐसे मामले में शिथिल रही है ।

अब विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही यह मौका कई नेताओं को मिल गया है, जो कि यह चाहते थे कि 5 साल के दमन का जवाब दल परिवर्तन के साथ सत्ता परिवर्तन करके दिया जाय।

राजनीति जानकारों की यदि माना जाय तो 2014 में बनी भाजपा सरकार ने अपने वादे के अनुरूप काम नही किया है, नौकरी, सेवाओं में आरक्षण नियमावली की जमकर धज्जियां उड़ाई गई, निजीकरण की आड़ में सार्वजनिक क्षेत्रों की नौकरियों पर डाका डालकर उन्हें आउटसोर्सिंग के जरिये भरा जाने लगा, जिनके ठेके सत्ता के करीबी ठेकेदारों को दिए जाते रहे है ।

पूरे शासन तंत्र में एक विशेष प्रकार की जाति के बर्चस्व से बाकी जातियां सहमी रहती थी । लेकिन लोकतंत्र के इस पर्व के द्वारा अब जनता जवाब देने का मिजाज बना चुकी है ,जिसका परिणाम भी देखने को मिलेगा।

2014 के बाद इस देश में एक नए शब्द ने काफी कोहराम मचाया था, जिसे देश में मॉब लिंचिंग से जोड़ कर दिखाया गया, अर्थात कुछ अराजक भीड़ द्वारा अल्पसंख्यक, आदिवासी, दलित पर साम्प्रदायिक हिंसा करना, जिसमे कई लोगों को अपनी जान भी गवानी पड़ी थी ,सरकार ने भी जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति करके मामले से पल्ला झाड़ लिया, इस मामले में सबसे ज्यादा चर्चा में मामला पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भीड़ द्वारा इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या किया जाना भी था । क्राइम रिपोर्ट के आंकड़ो को भी आकलित किया जाय तो इस देश मे दलित, पिछड़ो, अल्पसंख्यक, आदिवासियों पर सबसे ज्यादा साम्प्रदायिक हिंसा किया गया, स्थिति तब और भयावह हो गया कि कई मामले ऐसे भी आये जिसमें पुलिस थानों या पुलिस अभिरक्षा में भी कई मौते हुई।

69,000 शिक्षकों की भर्ती में ओबीसी को 27% की जगह 4% ही आरक्षण दिया गया था। अब मुख्यमंत्री आंदोलनकारियों से मिले हैं और उन्हें आश्वासन दे दिया। बस इतने से ही राहत हो गई।

ओबीसी आरक्षण में धांधली, जनरल सीटों को सवर्ण कोटा बना देने का खेल अनवरत 2014 से केंद्रीय भर्तियों और 2017 से यूपी की भर्तियों में चल रहा है। इसके बारे में लिखते लिखते मेरे हाथ और दिमाग दोनों थक गए। इस पर एक किताब तक लिख डाली कि किस तरह लूट मचाई गई है, जो न कोई छापने वाला है, न कोई पढ़ेगा। इतनी भयानक लूट मची कि शिक्षा विभाग के मंत्री ने अपने भाई को ईडब्ल्यूएस बताकर प्रोफेसर बनवा दिया।

क्या सवर्ण, क्या अवर्ण… यूपी में सरकारी पदों के लिए मची लूट में हर ईमानदार प्रतिभाशाली बच्चे का गला रेता गया। यह सब लिखकर मैंने अपना ब्रांड जरूर खराब कर लिया, जिसका मुझे व्यक्तिगत नुकसान हर तरह से उठाना पड़ा।

ओबीसी कोई अदर बैकवर्ड क्लास नहीं है। यह क्लास है ही नहीं, जातीय गटर में बजबजाता कीड़ा है। इनकी जाति के नेताओं ने इन्हें यही बना दिया है।

-अचूक संघर्ष-


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