भगवान श्रीकृष्ण ने एक घटना के बाद अपनी बांसुरी को तोड़ दिया था व उसके पश्चात् उन्होंने जीवनपर्यंत किसी वाद्य यंत्र को हाथ तक नहीं लगाया था और ना ही बांसुरी बजाई थी। इसके पीछे की घटना बहुत ही मार्मिक है जिसका जानना आपके लिए आवश्यक है।
भगवान श्रीकृष्ण को विश्व में दो ही चीज़े सबसे अधिक प्रिय थी जिसमे एक थी बांसुरी व दूसरी राधा। जब भी भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी की मधुर धुन बजाते थे तो राधा दौड़ी-दौड़ी चली आती थी। इसलिये इन दोनों का आपस में संबंध था। भगवान श्रीकृष्ण इतनी मधुर धुन बजाते थे कि ना केवल राधा अपितु आसपास की सभी गोपियाँ भी उस धुन में मंत्रमुग्ध हो जाती थी। तो फिर ऐसा क्या कारण रहा कि श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी ही तोड़ डाली।
आइए जानते हैं … जब अलग हुए भगवान श्रीकृष्ण व राधा
कृष्ण और राधा की प्रेमकथा सर्वाधिक लोकप्रिय है। यहाँ तक कि आज भी कृष्ण का नाम राधा के साथ लिया जाता है। किसी भी मंदिर में आपको भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति अपनी पत्नियों के साथ नहीं अपितु अपनी प्रियतमा राधा के साथ दिखाई देगी।
एक समय ऐसा आया था जब भगवान श्रीकृष्ण राधा से हमेशा के लिए अलग हो गए थे। यह वह समय था जब उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए वृंदावन को छोड़ना था और मथुरा जाकर कंस का वध करना था। इसके पश्चात उन्हें अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करना था।
जब भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन छोड़कर जाने वाले थे तब उनका मन बहुत व्याकुल था। उस समय राधा भी उनसे मिलने आई थी और उनसे ना जाने की विनती की थी किन्तु कृष्ण के समझाने पर वे मान गयी थी। किंतु राधा ने श्रीकृष्ण के जाने से पहले उनसे वचन मांग लिया था कि राधा के देह त्याग से पहले श्रीकृष्ण उन्हें एक बार दर्शन अवश्य देंगे। श्रीकृष्ण ने सहजता से यह शर्त मान ली और वहां से चले गए।
दोनों ने किया अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन
उसके पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा जाकर दुष्ट राक्षस कंस का वध किया और रुकमनी से विवाह किया। इसके बाद उन्होंने अपनी नगरी द्वारका में बसा ली और वहां राज करने लगे। इसी के साथ महाभारत के युद्ध में भी उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई व धर्म की रक्षा की।
इसी के साथ-साथ माता राधा ने भी विवाह कर लिया और अपने सभी कर्तव्यों का पालन किया किन्तु उनका प्रेम श्रीकृष्ण के लिए कभी कम नही हुआ। माता राधा हमेशा श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा करती रही और इसी तरह समय के साथ-साथ दोनों का जीवन व्यतीत हो रहा था।
अंतिम समय में जब श्रीकृष्ण राधा से मिले
जब माता राधा ने अपने सभी कर्तव्य निभा लिए और बूढ़ी हो गयी तब उन्होंने अपने अंतिम समय में भगवान श्रीकृष्ण का आह्वान किया। श्रीकृष्ण भी अपने दिए वचन के अनुसार उनसे मिलने आये।
माता राधा का ऐसा रूप देखकर श्रीकृष्ण अत्यधिक व्याकुल हो गए और उनसे कुछ मांगने को कहा किन्तु माता राधा ने कुछ भी मांगने से मना कर दिया व अपनी अंतिम इच्छा प्रकट की। उन्होने श्रीकृष्ण को पहले की तरह मधुर ध्वनि में बांसुरी बजाने को कहा।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी निकाली और उसे बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने लगातार दिन-रात बांसुरी की मधुर धुन बजाई और यह सुनते-सुनते ही माता राधा ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया । माता राधा के देह त्याग से श्रीकृष्ण इतने ज्यादा आहत हुए थे कि उन्होंने उसी समय अपनी बांसुरी को दो हिस्सों में तोड़ दिया और पास की झाड़ी में फेंक दिया।
श्रीकृष्ण को अपनी बांसुरी बहुत प्यारी थी किन्तु इस घटना के बाद उन्होंने कभी बांसुरी तो क्या, किसी अन्य वाद्य यंत्र को भी हाथ तक नहीं लगाया था और जीवनभर इनका त्याग कर दिया था। भगवान श्रीकृष्ण के राधा के प्रति इस प्रेम के कारण ही आज तक उनका नाम माता राधा के साथ लिया जाता हैं।
-एजेंसी
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