क्रियायोग से करें जीवन में नवशक्ति का जागरण

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महर्षि पतंजलि ने योग के दो मार्ग बताए हैं, पहला अष्टांग योग दूसरा क्रिया योग अष्टांग योग उन महान योग ऋषियों के लिए है जो घर गृहस्थी का त्याग कर सिर्फ योग के मार्ग पर चलना चाहते है और क्रिया योग गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के लिए है।

अष्टांग योग में महर्षि पतंजलि जी ने 8 अंग बताएं है, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि वही क्रिया योग में तीन अंग बताए हैं तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्राणीधान।

महर्षि पतंजलि ने क्रियायोग उन लोगों के लिए दिया है जो घर परिवार नहीं छोड़ सकते घर में रहकर भी योगाभ्स कर सकते हैं।

तप, शारीरिक क्रियाकलापों के द्वारा किया गया अभ्यास तप कहलाता है। जैसे व्रत रखना, यम नियम का पालन करना, गृहस्थ ब्रह्मचर्य का पालन करना…

स्वाध्याय अर्थात स्वयं को जानने के लिए महान योगियों के द्वारा लिखी हुई, बोली गई बातों का अनुसरण करना। उनका पालन करना। धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना जिससे धार्मिक भावना प्रबल होती है और स्वयं को जानने का अवसर मिलता है।

ईश्वरप्राणीधान अर्थात ईश्वर को समर्पण तप, स्वाध्याय के साथ अपना सब कुछ ईश्वर को समर्पण करना चाहिए। जैसे मीरा ने कृष्ण के लिए समर्पण किया था। हनुमान ने श्रीराम के लिए समर्पण किया था। ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण भाव ही ईश्वरप्राणीधान है।