भारतीय वायुसेना के इतिहास में 01 अप्रैल का है विशेष स्‍थान

Cover Story

01 अप्रैल 1954 को ही एयर मार्शल सुब्रतो मुखर्जी भारतीय वायुसेना के पहले प्रमुख बनाए गए थे। उन्होंने भारतीय वायुसेना को दुनिया की ताकतवर वायुसेना बनाने में अहम भूमिका निभाई।

आजाद भारत में भारतीय वायुसेना का पहला प्रमुख बनने का खास स्थान एयर मार्शल सुब्रतो मुखर्जी को हासिल है। पहले वह रॉयल एयर फोर्स में शामिल हुए थे और बाद में भारतीय वायुसेना के पहले अधिकारियों में शामिल थे।

दरअसल, कुछ लोग मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होते हैं जबकि कुछ अपनी मेहनत से सबकुछ हासिल करते हैं। सुब्रतो मुखर्जी बाद वाली श्रेणी में आते हैं। उनका जीवन ठोस इरादे, समर्पण और पूरी तरह से सेवा के हितों के लिए प्रतिबद्ध होने की मिसाल है। भारत के लोग काफी समय से रक्षा सर्विसेज में उच्च पदों पर भारतीय के प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे थे जिसे ब्रिटिश सरकार नजरअंदाज करती आ रही थी। लेकिन वर्ष 1930 आते-आते ब्रिटिश सरकार समझ गई थी कि ज्यादा समय तक वह भारतीयों की मांग को नहीं टाल सकती है। ऐसे में धीरे-धीरे सेनाओं का ‘भारतीयकरण’ करना शुरू किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि 08 अक्टूबर 1932 को भारतीय वायुसेना अस्तित्व में आई।

परिचय

सुब्रतो मुखर्जी का जन्म 5 मार्च 1911 को बंगाल के एक प्रमुख परिवार में हुआ। उनके पिता सतीश चंद्र मुखर्जी आईसीएस अफसर थे और मां चारुलता मुखर्जी एक प्रसिद्ध डॉक्टर की बेटी थीं। उनके दादा ब्रह्म समाज से जुड़े थे जिन्होंने समाज के शैक्षिक और सामाजिक सुधार में योगदान दिया। उनके नाना प्रेसिडेंसी कॉलेज के पहले भारतीय प्रधानाचार्य थे। 1939 में उनकी शादी शारदा पंडित से हुई। वह एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता थीं जो बाद में गुजरात और फिर तत्कालीन आंध्र प्रदेश की राज्यपाल बनीं। उनका एक बेटा है।

चाचा से मिली वायुसेना में जाने की प्रेरणा

अपने तीन भाई-बहन में वह सबसे छोटे थे। उनका शुरुआती जीवन बंगाल के कृष्णनगर और चिनसूरा में गुजरा। शुरू से ही वह वायुसेना में शामिल होने का सपना देखते थे। उनको वायुसेना में शामिल होने की प्रेरणा अपने चाचा इंद्र लाल रॉय से मिली थी जो रॉयल फ्लाइंग कोर में तैनात थे।

शिक्षा

उनकी शुरुआती शिक्षा कलकत्ता के डायोसेशन स्कूल और लॉरेटो कॉन्वेंट एवं यूके के हैम्पस्टीड में हुई। 1927 में उन्होंने बीरभूम जिले स्कूल से मैट्रिक पास किया। उसके बाद उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में दाखिला लिया और एक साल बाद यूके गए जहां कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया।

वायुसेना में करियर

वर्ष 1929 में सुब्रतो मुखर्जी ने क्रेनवेल एंट्रेंस एग्जामिनेशन और लंदन मैट्रिकुलेशन पास किया। चयन के बाद वह रॉयल एयर फोर्स कॉलेज, क्रेनवेल में प्रशिक्षण के लिए गए। 8 अक्टूबर 1932 को भारतीय वायुसेना का गठन हुआ जिसमें उनको पायलट के तौर पर कमीशन किया गया। वर्ष 1933 में वह ब्रिटिश इंडिया में कराची स्थित पहले स्क्वॉड्रन में नियुक्त किए गए। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान वह सबसे सीनियर अफसर थे और स्क्वॉड्रन लीडर बनाया गया। 1945 में युद्ध समाप्त होने पर उनको विशिष्ट सेवा के लिए ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर से सम्मानित किए गए।

भारतीय वायुसेना के प्रमुख

भारत की आजादी और बंटवारे के दौरान उन्होंने भारतीय वायुसेना के पुनर्गठन में मदद की। भारतीय वायुसेना को उन्होंने दुनिया की ताकतवर वायुसेना बनाया। यही वजह है कि उनको फादर ऑफ द इंडियन एयर फोर्स कहा जाता है। 1952 में वह अडवांस्ड ट्रेनिंग के लिए यूके स्थित इंपीरियल डिफेंस कॉलेज गए। 1954 में वह वहां से लौटे और भारतीय वायुसेना के कमांडर-इन-चीफ का प्रभार संभाला एवं उनको एयर मार्शल की रैंक प्रदान की गई। बाद में कमांडर-इन-चीफ पद भारतीय वायुसेना में चीफ ऑफ द एयर स्टाफ पद हो गया।

निधन

8 नवंबर 1960 को वह तोक्यो पहुंचे थे। रेस्ट्रॉन्ट में खाना खाते समय उनका निधन हो गया। उनकी इस तरह से मौत होने से शोक फैल गई। उनके शव को दिल्ली वापस लाया गया और पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गाय। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समेत प्रमुख भारतीयों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया था।

-एजेंसियां


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