लियाकत-नेहरू समझौता की वर्षगांठ आज, बंटवारे के बाद अल्पसंख्यकों की सुरक्षा थी मुद्दा

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भारत की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और पाकिस्तान की ओर से प्रधानमंत्री लियाकत अली खा़न ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. केंद्रीय मंत्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इसका विरोध किया था।

यह बात और है कि भारत अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए कई कदम आगे बढ़ चुका है पर पाकिस्तान में इनकी हालत बदतर होती जा रही है. लियाकत-नेहरू समझौता की वर्षगांठ पर आइए इसके बारे में जान लेते हैं.

अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के बाद भारत और पाकिस्तान में लगातार तनाव बढ़ते जा रहे थे. दोनों देशों के भीतर भी दंगे हो रहे थे और अल्पसंख्यकों को खासतौर पर निशाना बनाया जा रहा था. भीषण तनाव के उस दौर में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच युद्ध से बचने के लिए एक समझौता प्रस्तावित किया गया था. इसको लेकर दोनों के बीच दो सौ से अधिक चिट्ठियों और टेलीग्राम का आदान-प्रदान हुआ था. साथ ही दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर भी समझौता प्रस्तावित था.

दिल्ली में हुआ था समझौता

इन दोनों ही नेताओं ने अपनी-अपनी संसद में इस पूरे आदान-प्रदान की जानकारी दी. पंडित नेहरू युद्ध विरोधी एक व्यापक मौखिक समझौते का समर्थन कर रहे थे पर लियाकत अली खान ने उसमें कश्मीर विवाद शामिल कर दिया. इसको हल करने के लिए समय तय करने और तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की मांग कर दी. इससे युद्ध विरोधी समझौता नहीं हो सका. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए जरूर लियाकत अली खान और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 8 अप्रैल 1950 को दिल्ली में समझौते पर हस्ताक्षर किया.

धर्म की परवाह किए बिना सुरक्षा की गारंटी

भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच हुए इस समझौते में कहा गया था कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को धर्म की परवाह किए बिना नागरिकता के समान अधिकार मिलेंगे. सभी अल्पसंख्यकों की जान-माल, संपत्ति-संस्कृति और व्यक्तिगत गरिमा की सुरक्षा की जाएगी. इन्हें पूरे देश में आने-जाने की आजादी दूसरे लोगों की तरह ही होगी. इसमें रोजगार की स्वतंत्रता, बोलने- लिखने की स्वाधीनता और पूजा की स्वतंत्रता की गारंटी देने की बात भी कही गई थी.

नागरिक के सभी अधिकार दिए गए

इसी समझौते के तहत यह भी तय किया गया था कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को सरकारी मामलों में हिस्सा लेने के लिए समान अवसर दिए जाएंगे. यानी वे भी राजनीतिक पद के योग्य होंगे. साथ ही नागरिक और सशस्त्र बलों में नियुक्ति पाने के अधिकारी होंगे. इस मौके पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के ये प्रावधान तो पहले से ही शामिल हैं. वहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने कहा था कि पाकिस्तान की संविधान सभा के संकल्प में भी इसी तरह के प्रस्ताव स्वीकार किए गए हैं.

इसमें यह भी कहा गया था कि दोनों देशों की सरकारें अपने-अपने अल्पसंख्यक नागरिकों के साथ बर्ताव के लिए एक-दूसरे को जवाबदेह ठहरा सकेंगी. साथ ही इसी समझौते के तहत शरणार्थियों को अपनी संपत्ति के निपटारे के लिए बिना रोक-टोक दोनों देशों में वापस जाने की अनुमति दी गई थी. अपहृत महिलाओं और लूटी गई संपत्ति वापस की जानी थी. समझौते की इन सभी शर्तों को लागू करने के लिए दोनों देशों में अल्पसंख्यक आयोगों का गठन भी किया गया था.

सरदार पटेल और मुखर्जी ने किया था विरोध

पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में शामिल देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने शुरुआत में दोनों देशों के बीच इस समझौते का विरोध किया था. मंत्रिमंडल में शामिल श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी इसका विरोध किया था और आखिर में उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. मंत्रिमंडल छोड़ने के बाद श्याम प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी. साल 1980 में जनसंघ ही भारतीय जनता पार्टी के रूप में सामने आया.

कई कदम आगे बढ़ चुका है भारत

अपनों के विरोध के बावजूद भारत ने तो अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की चिंता की और समझौते को लागू किया पर पाकिस्तान में आज भी अल्पसंख्यकों की जो दुर्दशा है वह किसी से छिपी नहीं है. वहां बंटवारे के वक्त भारत से गए लोगों तक के साथ भेदभाव होता है. दूसरी ओर भारत ने अपने देश के अल्पसंख्यकों को कभी भी अलग समझा ही नहीं. यहां तक कि तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम तक दिसंबर 2019 में संसद के दोनों सदनों में पारित कर दिया. इसकी विस्तृत नियमावली भी इसी साल 11 मार्च को भारत के गजट में अधिसूचित कर दी गई है.

इससे बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत में 31 दिसम्बर 2014 से पहले आए वहां के अल्पसंख्यकों यानी हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाइयों को भारत की नागरिकता प्रदान करने में आसानी होगी.

– एजेंसी