दिल्ली विश्वविद्यालय में बोले अमित शाह, हर परिवर्तन का वाहक विश्वविद्यालय और विद्यार्थी होते हैं

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दिल्ली विश्वविद्यालय ने तीन दिवसीय ‘स्वराज से नव भारत तक भारत के विचारों का पुनरावलोकन’ संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसका उद्घाटन गृहमंत्री अमित शाह ने किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि मेरे लिए गौरव का विषय है कि आज DU ने निमंत्रित कर विचार व्यक्त करने के लिए मंच दिया। प्रोफेसर साहब जब निमंत्रण देने आए थे, तब मैं दुविधा में था कि जाऊं या ना जाऊं। बाद में निर्णय लिया कि जाऊंगा भी और सबके साथ बातचीत करुंगा क्योंकि परिवर्तन के लिए जो कल्पना होती है, उसका वाहक विश्वविद्यालय और विद्यार्थी होता है। जब भी युग परिवर्तित होता है तो वाहक विश्वविद्यालय ही बने हैं। हमारे देश के अंदर ऐसे कई उदाहरण है।

सामाजिक, वैचारिक, स्वतंत्रता आंदोलन के और अब विचार परिवर्तन के आंदोलन के वाहक विश्वविद्यालय ही बन सकते हैं। मित्रो, किसी भी संस्था का सौ साल होना उपलब्धि है। सौ साल के बाद भी अपनी रिलेवेंसी को बनाए रखना उपलब्धि होती है। डीयू की स्थापना हुई तब देश में सौ विश्वविद्यालय भी नहीं थे। आज डीयू ने सौ साल का सफर भी पूरा किया और अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी। प्रथम कुलपति हरिसिंह गौर से लेकर वर्तमान कुलपति प्रो. योगेश सिंह तक की टीम को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। इस देश के अंदर 2014 से एक परिवर्तन की शुरुआत हुई है, नजरिया बदलने की शुरुआत हुई है उसका वाहक डीयू बने। इसके लिए भी शुभकामनाएं देता हूं।

1911 में राजधानी बदलकर डीयू की स्थापना हुई। डीयू ऐतिहासिक प्रसंगों का साक्षी रहा है। यहां पर लाला हरदयाल भी पढ़े, जिन्होंने गदर पार्टी की स्थापना की। बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को यहां कुछ दिन के लिए अस्थाई तौर पर यहां रखा गया। गांधी इरविन पैक्ट भी यहीं परिसर में हुआ। चंद्रशेखर आजाद भी यहीं रहे।

1975 में देश को बचाने का जो आंदोलन हुआ, उसमें भी डीयू का योगदान रहा। देश के आंदोलनों को परिणाम तक पहुंचाने का माध्यम डीयू रहा है। मैं मानता हूं कि डीयू अपनी परंपरा को और गौरव के साथ आने वाले वर्षों तक बनाए रखेगी। तीन दिवसीय संगोष्टी की थीम-स्वराज से न्यू इंडिया तक- कई लोगों को समझ नहीं आएगी। डीयू के सौ साल पूरा हुए है, देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। यह सुखद योग है।

कहा है कि आजादी के अमृत काल की शुरुआत होगी। हमने विश्व के अंदर अपना स्थान जमाया है। लोकतंत्र की जड़ें और गहरी हुई हैं। कई उपलब्धियां हासिल की हैं लेकिन अब अमृत काल की यह यात्रा हमारे लिए महत्वपूर्ण होगी। अमृत काल में हम भारत को प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोच्च बनाने का प्रण लेते हैं। संगोष्ठी में विभिन्न विषयों पर विशद चर्चा होगी लेकिन मैं सबसे पहले इसके टाइटल पर जाना चाहता हूं-स्वराज से न्यू इंडिया तक। मित्रो, स्वराज शब्द को आजाद होने के बाद अलग तरह से व्याख्या की गई।

इसकी व्याख्या सिर्फ शासन व्यवस्था तक सीमित कर दी गई। पहले अंग्रेज राज करते थे, फिर लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुने हुए प्रतिनिधि अब राज करते हैं। अब ऐसा नहीं कहा जा सकता कि स्वराज मिल गया। स्वराज की कभी यह कल्पना नहीं थी।

इसमें स्व का महत्व है, राज का मतलब शासन नहीं। स्वराज की व्यवस्था करने वालों ने आजादी के बाद स्व को बहुत डायल्यूट कर दिया और शासन को बड़ा कर दिया इसलिए आज 75 साल बाद पीछे मुड़कर देखते हैं तो हमें लगता है कि इसकी व्याख्या की जरुरत है।

स्वराज की भाषा में स्वदेशी, स्वधर्म, हमारी संस्कृति अपने आप आती है। इन सभी व्यवस्था को सीमित करके स्वराज को शासन व्यवस्था तक सीमित करने का काम कुछ लोगों ने किया और हम भी उस रास्ते पर चल पड़े। स्वराज की संपूर्ण कल्पना ही नवभारत का विचार है।

स्वराज का संपूर्ण अर्थ चरित्रार्थकरना या स्वराजके जरिए देश की उन्नति करना। मैं मानता हूं कि संस्कृति, समर्थ, शिक्षित भारत का तभी निर्माण हो सकता है जब स्वराज की परिकल्पना साकार हो। कुछ लोग आइडिया आफ इंडिया की बात करते हैं। मुझे कई बार लगता है कि उन्हें भारत के विचार की चर्चा करने से पहले भारत का अर्थ भी मालूम है क्या? आइडिया आफ इंडिया की बात करने वाले ऐसी फिलॉसफी लेकर आते है, जैसे लगता है कि नया विचार है, प्रासंगिक है हम विश्व को कुछ बड़ा दे देंगे।

यदि भारत को हम जियोपोलिटिकल कंट्री के रुप में देखेंगे तो कभी भारत को समझ नहीं पाएंगे क्यों कि भारत संधि, रेजोल्यूशन, युद्ध के परिणाम से निर्मित राष्ट्र नहीं है। भारत एक भू सांस्कृतिक देश है। जब तक इस बात को हम नहीं समझेंगे, तब तक भारत की कल्पना को नहीं समझ सकते। हजारों सालों से हमारी चिर पुरातन एक सांस्कृतिक नदी का प्रवाह बह रहा है। नदी ने जिन-जिन को आगोश में लिया, वो है भारत। और भारत को इसी नजरिए से समझने से जरुरत है। मैंने पूरा देश भ्रमण किया है, हर कोने में गंगा मिलती है। यह बातें भारत को एक रखती हैं, जोड़ती हैं। विश्व मे जो कुछ भी अच्छा है, हम स्वीकारने के आदी रहे हैं।

दुनिया आगे बढ़ी, हम पीछे रहे हम स्वीकारते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जो प्राचीन चीजें थी वो अप्रासंगिक हो चुकी हैं। मैं स्पष्ट रुप से कह सकता हूं कि भारत ने कभी छोटा नहीं सोचा। विश्व बंधुत्व की बात आज जो हमें समझाते हैं? हम तो सदियों पहले वसुधैव कुटुम्बकम कहा। आइडिया आफ इंडिया-सत्यमेव जयते, अहिंसा परमोधर्म, वसुधैव कुटुबंकम, दरिद्र नारायण की सेवा, नारी तू नारायणी, वैष्णव भजन में है। यदि आप इन चीजों को समझते हैं तो भारत को समझते हैं।

2014 से 2022 तक की यात्रा जो नरेन्द्र मोदी के काल में हुई। इसमें सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक रुप से गौरवांवित करने के लिए कार्य हुए हैं। पहले 80 करोड़ लोग देश की व्यवस्था में खुद को हिस्सा नहीं मानते थे लेकिन एकात्म मानववाद, अंत्योदय की विचारधारा के आधार पर जब भारत चलने लगा तो देश के 80 करोड़ लोग अपने आप को भारत की व्यवस्था का हिस्सा मानने लगे। कोरोना काल मेंकई उपलब्धियां हासिल की गईं।

-एजेंसियां


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