Agra News: बच्चों की चुप्पी भी एक संदेश, कार्यशाला में दिया बाल मन को समझने का मंत्र

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आगरा। बच्चों की चुप्पी भी एक संदेश होती है। जब बच्चा आंख मिलाने से कतराता है, जब वो बार-बार वही गलती दोहराता है, जब वो अचानक अत्यधिक शांत या अत्यधिक आक्रामक हो जाता है, तो ये केवल अनुशासन की कमी नहीं, बल्कि एक आंतरिक संघर्ष का संकेत होता है।

“बाल मनोविकारों का कैसे करें निदान” विषय पर विशेष कार्यशाला को संबोधित करते हुए ये कहा मुख्य वक्ता डॉ. चीनू अग्रवाल ने।

विमल विहार, सिकंदरा स्थित फीलिंग माइंड्स कार्यालय में कार्यशाला का आयोजन किया गया। दो सत्रों में हुई कार्यशाला में आगरा पब्लिक स्कूल एसोसियेशन (अप्सा) के 38 स्कूलों के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने प्रतिभाग किया।

अल्बर्ट एलिस इंस्टीट्यूट, न्यूयार्क द्वारा प्रशिक्षित बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. चीनू अग्रवाल ने कहा कि बच्चे अक्सर अपनी तकलीफ को शब्दों में नहीं कह पाते, लेकिन उनका व्यवहार उनकी स्थिति का आईना होता है। ऐसे में माता-पिता और शिक्षक संवेदनशील संवाद और भावनात्मक समझदारी के माध्यम से बच्चों की मानसिक स्थिति को बेहतर समझ सकते हैं। बच्चों में चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी, नींद की समस्या, डर, समाज से कटाव, और पढ़ाई में रुचि की कमी जैसे लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।

कार्यशाला में बाल मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विषयों पर चर्चा के साथ-साथ निःशुल्क परामर्श सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें कई अभिभावकों और शिक्षकों ने भाग लेकर विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त किया।

आगरा में जल्द गठन होगा मेंटल हेल्थ पर नई समिति का

डॉ. चीनू ने बताया कि आज के बच्चों में मानसिक दबाव के प्रमुख कारण अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण है।मोबाइल व इंटरनेट की निर्भरता, अभिभावकों की अपेक्षाएं, भावनात्मक संवाद की कमी, परिवार में झगड़े या अस्थिरता, नींद और खानपान में असंतुलन हैं। उन्होंने बताया कि मानसिक विकार केवल विकृति नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक असंतुलन की एक अवस्था है जिसे समय रहते पहचाना जाए तो पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। वर्तमान समाज में लगातार बढ़ रही मानसिक समस्याओं को लेकर जल्द ही आगरा में इंटरनेशनल सोसायटी फॉर मेंटल हेल्थ एडवोकेसी एंड एक्शन संस्था का गठन किया जाएगा।

ऐसे पहचाने बाल मनोविकार को

डॉ. चीनू अग्रवाल के अनुसार, निम्न संकेतों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-

-लगातार उदासी या आत्म-हीनता की भावना।

-आवेश या चिड़चिड़ापन में अचानक वृद्धि।

-अचानक सामाजिक मेल-जोल से दूरी बनाना।

-हर छोटी बात पर गुस्सा आना या रो पड़ना।

-अकेले में बातें करना, चीज़ें तोड़ना या खुद को नुकसान पहुंचाना।

-भोजन या नींद में असामान्य परिवर्तन।

-बार-बार बीमार पड़ना, लेकिन बिना शारीरिक कारण के।

-पढ़ाई से पूरी तरह मन हट जाना, ध्यान न लगना।

डॉ. चीनू ने बताया कि यदि ये लक्षण लगातार दो सप्ताह से अधिक बने रहें, तो यह किसी गंभीर मानसिक स्थिति (जैसे एंग्जायटी, डिप्रेशन) का संकेत हो सकता है और तत्काल विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।

इस तरह समझें बाल मन को

-हर दिन 10 मिनट बच्चों से बिना डांट के संवाद करें

-बच्चों की बातों को बीच में न टोकें—उन्हें पूरा बोलने दें

-“तुम्हें क्या चाहिए” से पहले पूछें, “तुम कैसा महसूस कर रहे हो?”

-सजा की जगह सहमति और विकल्प दें

-भावनात्मक शब्दावली सिखाएं—”मैं परेशान हूं”, “मुझे डर लग रहा है” आदि

-रोज़ाना रूटीन तय करें जिसमें खेल, कला और सुकून का समय हो

-स्क्रीन टाइम सीमित कर “रियल टाइम अटेंशन” दें

कार्यशाला का शुभारंभ डॉ. सुशील गुप्ता और शेखर भरत सिंह ने किया। डॉ रविंद्र अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन और शैलेश अग्रवाल ने संचालन किया।