आगरा: तिरंगा प्रेम के चलते सुर्खियों में रहने वाले गुल चमन शेरवानी आज फिर सुर्खियों में आए। पूरे देश में मुस्लिम समाज के लोग ईद उल अजहा पर बकरों की कुर्बानियां दे रहे थे तो वहीं गुल चमन शेरवानी ने ईद उल अजहा मनाते हुए पशुओं को बचाने का संदेश भी दिया। उन्होंने इस ईद के त्यौहार पर जीव हत्या को रोकने के लिए का एक उदाहरण पेश किया है। गुल चमन शेरवानी ने अपने परिवार के साथ बकरे की आकृति का केक बनवाकर उसे काटा और अपना ईद का त्योहार मनाया।
गुल चमन शेरवानी ने बताया कि उन्होंने छोटा सा बकरी का बच्चा पाला था। परिवार को काफी लगाव हो गया और बकरीद आते-आते शेरवानी परिवार का उसकी कुर्बानी करने का इरादा बदल गया। शेरवानी ने कुर्बानी करने का इरादा बनाया था, इसलिए मुस्लिम होने के नाते कुर्बानी करना भी बेहद जरूरी था और बकरी की जान बचाना भी। इसलिए उन्होंने बीच का रास्ता निकालते हुए बकरे के चित्र वाला केक बनवाकर उसे काटकर ईद मनाई।
परिवार के मुखिया नवाब गुल चमन शेरवानी ने बताया कि बकरीद का त्यौहार गरीब लोगों की मदद करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। वह गरीब लोग अच्छा खाना खा सकें जिनकी पहुंच से बकरे का खाना काफी दूर है। इस्लाम मजहब में भी कुर्बानी से पहले नमाज खैरात और जकात पूरी करनी होती है लेकिन लोग नमाज खैरात और जकात पर ध्यान न देते हुए कुर्बानी करते हैं जो कि कुर्बानी नहीं बल्कि अपनी दौलत की नुमाइश करना जैसा है।
शेरवानी ने बताया कि हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की राह में अपने बेटे की कुर्बानी दी थी जो कि उन्हें बहुत ही अजीज थे। जिस बकरे को 2 दिन पहले खरीद कर लाया जाता है क्या उससे लगाव हो सकता है। कुर्बानी एक एहसास है जब तक अपने से जुदा होने का दर्द दिल में न हो उसे कुर्बानी का नाम नहीं दिया जा सकता।
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