लद्दाख में चीन के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद भारत ने की बड़ी तैयारी, 20 हजार फीट की ऊंचाई पर वायुसेना के विमानों ने किया युद्धाभ्यास

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जब रूस पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला कर चुका है और दोनों के बीच युद्ध हफ्ते भर बाद भी जारी है तब भारत अपने पड़ोसी चीन को लेकर काफी सतर्कता बरत रहा है। इसी सतर्कता की बदौलत चीन के अतिक्रमणकारी मंसूबे पूरे नहीं हो रहे और वह भी फूंक-फूंक पर कदम बढ़ाने पर मजबूर है। चीन को इसी हाल में रखने के लिए भारत ने फिर से ‘चीन स्पेशल’ सैन्य टुकड़ी का युद्धाभ्यास किया जिसमें हवाई हमलों की सूरत में दुश्मन के दांत खट्टे करने की हर चाल का परीक्षण किया गया।

21 महीने में बड़ी तैयारी

भारत ने ताजा युद्धाभ्यास सिलिगुड़ी गलियारे में किया। फिर सेना की हमलावर टुकड़ी ने देश की उत्तरी सीमाओं पर अपना करतब दिखाया जिसका स्वयं थल सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने अलग से निरीक्षण किया। भारतीय थल सेना 21 महीने पहले पूर्वी लद्दाख में हुए हिंसक झड़प के बाद से ही 3,488 किमी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC पर मुंह बाए खड़ी चुनौतियों को लेकर बेहद चौकन्ना है। हालांकि, यूक्रेन संकट के बाद से अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों समेत दुनियाभर का ध्यान इस तरफ से हट गया लगता है।

एक सीनियर आर्मी ऑफिसर के अनुसार, ‘यूक्रेन पर हमले को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए जिसमें चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) भी हमारी सीमाओं पर खुराफात करने की मंसूबा पाल सकती है। हम किसी भी सूरत में उत्तरी सीमाओं पर से अपना ध्यान नहीं हटा सकते।’

70 हजार ‘चीन स्पेशल’ सैनिकों की टुकड़ी

आर्मी चीफ जनरल नरवणे ने मथुरा की 1 स्ट्राइक कॉर्प्स के रोल और ऑपरेशनल प्लांस का आंकलन किया। इस कॉर्प्स में भारी मात्रा में हथियारों से लैस करीब 70 हजार सैनिक हैं। कॉर्प्स पहले पाकिस्तान से लगी पश्चिमी सीमा पर तैनात था, जिसे काफी ऊंची पहाड़ियों पर युद्ध में पारंगत बनाकर एलएसी पर तैनाती के लिए तैयार कर दिया गया है।

आर्मी ऑफिसर ने बताया, ‘यह खतरों के नियमित आंकलन और आंतरिक सोच-विचार का नतीजा है। इलाकाई अखंडता के साथ-साथ पीएलए सैनिकों और उसके सैन्य ढांचों के अनुकूल तैयारियां सुनिश्चित करने के लिए भारतीय सेना अपने बलों को नए माहौल में ढाल रही है। वहीं, पाकिस्तान से लगी सीमा पर भी प्रभावी युद्ध क्षमता बरकरार रखी गई है।’

बढ़ रही है सिलिगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा

भारतीय सेना रणनीतिक रूप से संवेदनशील सिलिगुड़ी कॉरिडोर को भी खतरों से मुक्त बनाने की दिशा में तेजी से काम कर रही है। यह संकरा सा गलियारा उत्तर पूर्व के राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है। यह 2017 में सिक्किम-भूटान-तिब्बत तिराहे पर डोकलाम में चले 72 दिनों के सैन्य संघर्ष के वक्त भी सुर्खियों में आया था। भारतीय बलों ने तब पीएलए को सिलिगुड़ी कॉरिडोर से इतर जाम्फेरी रिज की तरफ अपना मोटरेबल ट्रैक का विस्तार करने के प्रयासों पर पानी फेरा था।

इन करतबों पर किस भारतीय को ना हो नाज

इस सैन्य अभ्यास में 20 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भर रहे वायुसेना के विमानों से साजो-सामान से लैस सैनिकों को नीचे उतारा गया। इन सैनिकों ने जमीन पर कदम रखते ही निगरानी प्रणाली स्थापित कर ली ताकि दुश्मनों के चयनित ठिकानों पर बिल्कुल सटीक निशाना साधा जा सके। उसके बाद विशेष बल के 400 सैनिकों को उतारा गया जिनका दायित्व चयनित लक्ष्यों को नेस्तनाबूद करना था।

बहरहाल, मथुरा बेस्ड 1 कॉर्प्स एलएसी के उत्तरी सेक्टर की तरफ बढ़ा तो पश्चिम बंगाल के पानागढ़ बेस्ड 17 कॉर्प्स सिक्किम के सामने चुम्बी घाटी समेत पूरे पूर्वी सेक्टर में दुश्मन पर काल बनकर बरपने को तैयार है।

-एजेंसियां