नागरिकता संशोधन अधिनियम CAA के खिलाफ दायर 200 से अधिक याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई की। सुनवाई के बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 8 अप्रैल तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई 9 अप्रैल को तय की। बता दें कि इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ कर रही है। सीएए को भारत की संसद ने 11 दिसंबर 2019 को पारित किया था। यह कानून व्यापक बहस और विरोध का विषय रहा है।
सीएए, 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करता है। यह कानून अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई समुदायों से आने वाले उन प्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है, जो अपने संबंधित देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हैं और 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं।
पिछले हफ्ते, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आईयूएमएल की याचिका का उल्लेख करते हुए कहा था कि चुनाव नजदीक हैं. सीएए संसद से पारित होने के चार साल बाद इसके नियमों को ऐसे समय अधिसूचित करना सरकार की मंशा को संदिग्ध बनाता है।
क्या है याचिकाकर्ताओं की दलील
उच्चतम न्यायलय में कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि सीएए धर्म के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है। उन्होंने यह तर्क दिया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ‘समानता के अधिकार’ का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ताओं में ये प्रमुख नाम हैं शामिल
याचिकाकर्ताओं में केरल की इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML), तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, एनजीओ रिहाई मंच और सिटीजन्स अगेंस्ट हेट, असम एडवोकेट्स एसोसिएशन और कुछ कानून के छात्र शामिल हैं।
मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए लागू किया गया CAA
शुरु से ही सीएए का विरोध कर रहे एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कई मौकों पर कहा कि सीएए लागू करने के पीछे सरकार का असली मकसद एनआरसी के जरिए मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाना है, जिसे 2019 में अपडेट किया गया था।
CAA से नहीं जाएगी किसी की नागरिकता: गृहमंत्री
वहीं, सीएए के लागू होने के बाद देश के गृहमंत्री अमित शाह कई बार कह चुके हैं कि सीएए से नागरिकों के कानूनी, लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से नागरिकता संशोधन कानून और उसके नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने का अनुरोध किया है।
-एजेंसी