21 मई 1991 को रात 10 बजकर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हुए धमाके में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। 7 लोगों पर हत्या का जुर्म साबित हुआ और ये सभी जेल भेज दिए गए। इनमें से एक है एजी पेरारिवलन। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। इसके बाद उसे रिहा करने की मांग उठने लगी।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने सभी हत्यारों को 30 साल की सजा काटने के बाद रिहाई की मांग की। उन्होंने राष्ट्रपति को चिट्ठी भी लिखी। राजीव गांधी के हत्यारों को गांधी परिवार ने माफ भी कर दिया है। फिर भी वे जेल से बाहर आने का इंतजार कर रहे हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और बुधवार को देश की सबसे बड़ी अदालत ने केंद्र सरकार से पूछ लिया कि वह राजीव गांधी हत्याकांड में 30 साल की सजा काट चुके एजी पेरारिवलन को रिहा क्यों नहीं कर सकती?
आइए समझते हैं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट को खीझकर यह क्यों बोलना पड़ा।
कम सजा वालों को रिहा कर रहे तो इसे क्यों नहीं?
अदालत ने सरकार के रुख को ‘विचित्र’ माना। दरअसल, केंद्र ने जवाब दिया कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने दोषी को रिहा करने के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को राष्ट्रपति को भेज दिया है जो दया याचिका पर निर्णय लेने के लिए सक्षम अथॉरिटी हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब जेल में कम समय की सजा काटने वाले लोगों को रिहा किया जा रहा है, तो केंद्र उसे रिहा करने पर सहमत क्यों नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया उसे लगता है कि राज्यपाल का फैसला गलत और संविधान के खिलाफ है क्योंकि वह राज्य मंत्रिमंडल के परामर्श से बंधे हैं और उनका फैसला संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार करता है। न्यायमूर्ति एलएन राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि वह एक सप्ताह में उचित निर्देश प्राप्त करें वरना वह पेरारिवलन की दलील को स्वीकार कर इस अदालत के पहले के फैसले के अनुरूप उसे रिहा कर देगी।
उम्रकैद की सजा कितनी
यहां समझने की जरूरत है कि नियम यह कहता है कि कैदी राज्य सरकार की निगरानी में होता है इसलिए उसकी जिम्मेदारी बनती है। अगर राज्य सरकार उसकी सजा कम करने की अपील करे तो उसे सुन लिया जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि उम्रकैद 16 साल या 30 साल या हमेशा के लिए हो सकती है लेकिन 14 साल से कम नहीं हो सकती है। यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार सुनिश्चित करे कि उम्रकैद की सजा वाला अपराधी 14 साल से पहले रिहा न हो। वैसे, उम्रकैद का अर्थ स्पष्टरूप से यह होता है कि जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए उसे जेल में ही सजा काटनी होगी।
राष्ट्रपति या राज्यपाल
नटराज ने कहा कि कुछ स्थितियों में राष्ट्रपति सक्षम प्राधिकारी होते हैं न कि राज्यपाल, खासकर जब मौत की सजा को उम्रकैद में बदलना पड़ता है। पीठ ने विधि अधिकारी से कहा कि दोषी 30 साल से ज्यादा जेल की सजा काट चुका है और जब कम अवधि की सजा काटने वाले लोगों को रिहा किया जा रहा है तो केंद्र उसे रिहा करने पर राजी क्यों नहीं है?
पीठ ने कहा, ‘हम आपको बचने का रास्ता दे रहे हैं। यह एक विचित्र तर्क है। आपका तर्क कि राज्यपाल के पास संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दया याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, वास्तव में संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार करता है। राज्यपाल किस स्रोत या प्रावधान के तहत राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।’
न्यायमूर्ति राव ने कहा कि अगर राज्यपाल दोषी को रिहा करने के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले से सहमत नहीं हैं, तो वह इसे वापस मंत्रिमंडल में भेज सकते हैं लेकिन राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते।
राज्यपाल ने किस रूल के तहत राष्ट्रपति के पास भेजा?
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘अगर केंद्र की बात माननी है तो यह संविधान के संघीय ढांचे पर हमला होगा। संविधान को फिर से लिखना होगा कि कुछ स्थितियों में अनुच्छेद 161 के तहत मामलों को राष्ट्रपति को भेजा जा सकता है।’
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि पिछले साढ़े तीन साल से राज्यपाल ने यह स्टैंड लिया है जो विचित्र है। पीठ ने कहा, ‘संविधान में किस प्रावधान के तहत राज्यपाल ने मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा है? ऐसी शक्ति का स्रोत क्या है जो उन्हें मामले को राष्ट्रपति के पास भेजने की अनुमति देता है? राज्यपाल को राज्य मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह पर कार्य करना होता है, यदि आप अनुच्छेद 161 को ध्यान से पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि राज्यपाल को अपनी शक्तियों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करना है।’
पीठ ने नटराज से कहा, ‘क्या राज्यपाल मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं? क्या राज्यपाल के पास कार्यपालिका के निर्णय को राष्ट्रपति के पास भेजने की शक्ति है? यह सवाल है। आप जो तर्क दे रहे हैं उसके व्यापक प्रभाव हैं। इसलिए आप उचित निर्देश लें और हम आदेश पारित करेंगे।’ तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस संबंध में इस अदालत के कई फैसले हैं और केंद्र केवल कानून में स्थापित स्थिति को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘राज्यपाल को राज्य मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह से कार्य करना होता है। अनुच्छेद 161 के तहत दया याचिकाओं पर फैसला करते समय राज्यपाल की व्यक्तिगत संतुष्टि का कोई फायदा नहीं है, वह राज्य सरकार के फैसले से बंधे हैं।’ शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार और नटराज को निर्देश दिया कि वह सुनवाई की अगली तारीख पर सभी मूल दस्तावेज और आदेश पेश करें क्योंकि वह दलीलें सुनेगी और फैसला सुनाएगी।
-एजेंसियां
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