सांस्कृतिक, धार्मिक और औषधीय भांग का Holi के संग नाता जानना हो तो इससे जुड़े उन पहलुओं को कुरेदा जाए जिन्होंने भांग को ईश्वर तक से जोड़ दिया। Holi का त्योहार कई विविधताओं से भरा हुआ है, इसे केवल रंगों का त्योहार ही नहीं, बल्कि पकवान और भांग के नाम से भी जाना जाता है। होली पर कई तरह के पकवान जैसे कि गुझिया, मठरी और ठंडाई भी बनाए जाते हैं। भांग के बिना होली का मजा अधूरा रह जाता है। लेकिन भांग वाली ठंडाई के बिना होली का त्योहार अधूरा माना जाता है, तो आप भी जानिए आखिर होली का भांग की ठंडाई से रिश्ता क्या है? ताकि इस होली आपकी मस्ती में कोई कमी न बाकी रहे।
होली में भांग की ठंडाई पीना हिंदु संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। हिंदू धर्म में कई जगह भांग के बारे में पढ़ने को मिलता है, कोई इसे शिव से जोड़कर देखता है तो कोई इसे नशा और उमंग से। होली पर्व ही ऐसा है जिसमें लोग गिले-शिकवे भुलाकर खुशियों के साथ शुरुआत करते हैं।
पवित्र औषधि है भांग
अथर्ववेद में जिन पांच पेड़-पौधों को सबसे पवित्र माना गया है उनमें भांग का पौधा भी शामिल है। इसके मुताबिक भांग की पत्तियों में देवता निवास करते हैं। अथर्ववेद इसे ‘प्रसन्नता देने वाले’ और ‘मुक्तिकारी’ वनस्पति का दर्जा देता है। आयुर्वेद के मुताबिक भांग का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अलावा यूनानी दवाई पद्धति में इसे नर्वस सिस्टम से जुड़ी समस्याओं का दवा माना गया हैं।
हालांकि इसका ज्यादा इस्तेमाल करना खतरनाक साबित हो सकता है। सुश्रुत संहिता, जो छठवीं ईसा पूर्व रची गई, के मुताबिक पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने और भूख बढ़ाने में भांग मददगार होती है। आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल इतना आम है कि 1894 में गठित भारतीय भांग औषधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसे ‘आयुर्वेदिक दवाओं में पेनिसिलीन’ कहा था।
भगवान शिव से भांग का नाता
हिंदू धर्म के तीन मुख्य देवताओं में से एक शिव को लोग भांग से जोड़कर देखते हैं। किवंदती के अनुसार, शिव का एक बार किसी बात पर परिवार से बहस हो गई और वो घर से निकल गए। इसी दौरान वो एक भांग के खेत में भटक गए और वहीं सोकर रात गुजार दी। सुबह जागने पर, भूख लगने पर उन्होंने कुछ भांग का सेवन किया और खुद में पहले से ज्यादा चुस्ती और तरोताजा महसूस करने लगे। इस वजह से ये शिव के चढ़ावें में भी शामिल हो गए।
सिख योद्धा भी खाते थे भांग
सिख योद्धा भी रणभूमि में जाने से पहले भांग का सेवन करते थे ताकि वे पूरी क्षमता से लड़ सकें और चोटिल या जख्मी होने पर उन्हें दर्द का एहसास न हो। इस परंपरा की झलक हमें सिखों के निहंग पंथ में आज भी देखने को मिलती है। इस पंथ में नशीली दवाओं का सेवन उनके धार्मिक कर्मकांड का हिस्सा है।
बॉलीवुड में भी भांग
70 के दशक का मशहूर गाना भोले शिव शंकर, कांटा लगे न कंकर जो प्याला तेरा नाम का पीया… तो याद होगा। उसमें भी भांग को भगवान शिव से जोड़ दिया गया। सीधे शब्दों में कहा जाए तो भांग पीने के बाद पांव में कांटा या कंकर भी लग जाएं तो दर्द मालूम नहीं चलता है। इसी तरह रंग बरसे भीगे चुनर वाली गाने को देख लीजिए जिसमें हीरों को भांग के नशे में ये भी होश नहीं रहता है कि वो किसके साथ झूम रहा है। होली के मौके पर भांग को पॉप्युलर बनाने का थोड़ा क्रेडिट बॉलीवुड को भी जाता है।
भांग और 1875 की क्रांति
भांग का एक संबंध 1857 की क्रांति से भी जुड़ा है। माना जाता है कि मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में विद्रोह का जो बिगुल फूंका था, उसके पीछे भी भांग की भूमिका थी। जब उनके ऊपर विद्रोह का मुकदमा चल रहा था तब उन्होंने ‘भांग का सेवन और उसके बाद अफीम खाने’ की बात स्वीकार की थी।
ब्रिटिश राज मेें भी था भांग का सेवन
अंग्रेज जब भारत आए तो यह देखकर हैरान रह गए कि यहां किस तरह भांग का सेवन आमबात है। दरअसल, तब पश्चिम में यह धारणा थी कि भांग या उसके उत्पाद जैसे गांजा आदि के सेवन से इंसान पागल हो सकता है। इस धारणा की पुष्टि और भारत में भांग के उपयोग के दस्तावेजीकरण के लिए अंग्रेज सरकार ने भारतीय भांग औषधि आयोग का गठन किया था। आयोग को भांग की खेती, इससे नशीली दवाएं तैयार करने की प्रक्रियाएं, इनका कारोबार, इनके इस्तेमाल से पैदा हुए सामाजिक-आर्थिक प्रभाव और इसकी रोकथाम के तौर-तरीकों पर एक रिपोर्ट तैयार करनी थी। इस काम के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों में पूरे भारत में एक हजार से ज्यादा साक्षात्कार किए थे। आयोग ने पूरे वैज्ञानिक तरीके से एक बड़े सैंपल साइज को आधार बनाकर अपनी रिपोर्ट तैयार की थी।
जब यह रिपोर्ट तैयार हुई तो आश्चर्यजनकरूप से इसके निष्कर्ष भांग के इस्तेमाल को लेकर बड़े सकारात्मक थे। पागलपन तो बहुत दूर की बात, इसका संयमित सेवन तो हानिरहित है। शराब भांग से ज्यादा हानिकारक है और इसलिए भांग पर प्रतिबंध लगाने की कोई वजह नहीं हैं। इस रिपोर्ट का आखिरी निष्कर्ष यह था कि भांग पर किसी भी तरह की पाबंदी पूरे देश में एक परेशानी और व्यापक असंतोष की वजह बन सकती है।
भांग का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
आयोग की रिपोर्ट में भांग के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व की भी चर्चा की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंदू धर्म के तीन मुख्य देवताओं में से एक शिव का संबंध भांग या इससे बनने वाले गांजे से जुड़ता है। कहा जाता है कि शिव को यह अतिप्रिय है। आयोग ने यह भी माना था कि उसके सामने इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि शिव की पूजा-पद्धति में भांग और उसके दूसरे उत्पादों का प्रयोग व्यापक रूप से होता है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक भांग का सबसे ज्यादा सेवन होली के समय होता है, इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि होली के दौरान तकरीबन सभी लोग भांग का सेवन करते हैं।
आजकल शहरों में भांग की जगह शराब और दूसरे किस्म के नशे ने ले ली है। फिर भी होली आने पर ‘भंग का रंग’ ही सबसे ज्यादा जमता है। इस बात की पुष्टि भारतीय भांग औषधि आयोग की रिपोर्ट की इन पंक्तियों से भी होती है… ‘वसंत ऋतु का यह त्योहार आज भी भांग से जोड़ा जाता है और ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता कि निकट भविष्य में यह संबंध खत्म होने जा रहा है।’
-एजेंसी
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