एक कहानी इतिहास के पन्नो से: शुभ्रक घोड़े ने ऐबक को मार ऐसे बचाई राजा कर्ण स‍िंह की जान

अन्तर्द्वन्द

कुतुबुद्दीन ऐबक बाल्याकाल से ही प्रतिभा का धनी था। उसने शीघ्र ही सभी कलाओं में कुशलता प्राप्त कर ली। उसने अत्यन्त सुरीले स्वर में क़ुरान पढ़ना सीख लिया, इसलिए वह ‘क़ुरान ख़ाँ’ (क़ुरान का पाठ करने वाला) के नाम से प्रसिद्ध हो गया। कुछ समय बाद क़ाज़ी की भी मृत्यु हो गयी। उसके पुत्रों ने उसे एक व्यापारी के हाथों बेच दिया, जो उसे ग़ज़नी ले गया, जहाँ उसे मुहम्मद ग़ोरी ने ख़रीद लिया और यहीं से उसकी जीवनचर्चा का एक नया अध्याय आरम्भ हुआ, जिसने अन्त में उसे दिल्ली के सिंहासन पर बैठाया।

शुभ्रक और कुतुबुद्दीन ऐबक की कहानी 

कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेवाड़ पर हमला किया और कर्ण सिंह को पकड़ लिया। लूटे गए धन और राजा के साथ, कुतुबुद्दीन ऐबक कर्ण सिंह के घोड़े शुभ्रक को भी लाहौर ले गया।

संस्कृत में शुभ्रक का अर्थ है, जो शुभ (अच्छे) का प्रतीक है। जैसे महिलाएं चूड़ियां और पायल पहनती हैं, वैसे ही शुभ्रक अपने पैरों में कंगन या पायल पहने हुए था और यह एक भाग्यशाली घोड़ा था।

लाहौर पहुंचने के बाद, कर्ण सिंह ने भागने की कोशिश की लेकिन फिर से पकड़े गए। कुतुबुद्दीन ने कर्ण सिंह के सिर कलम करने और अपमान को बढ़ाने के लिए मृत राजा के सिर के साथ पोलो मैच खेलने का आदेश दिया।

अगले दिन, कुतुबुद्दीन शुभ्रक घोड़े पर सवार होकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे।

शुभ्रक ने तुरंत अपने मालिक कर्ण सिंह को पहचान लिया और रोने लगा।

जब कर्ण सिंह का सिर काटने के लिए उसे जंजीरों से मुक्त किया गया, तो शुभ्रक अचानक बेकाबू हो गया और कुतुबुद्दीन को जमीन पर फेंक दिया। शुभ्रक ने अपने शक्तिशाली खुरों के साथ कुतुबुद्दीन की छाती और सिर पर लगातार मारना शुरू कर दिया। शुभ्रक द्वारा १२-१५ शक्तिशाली वार के बाद, कुतुबुद्दीन ऐबक की मौके पर ही मृत्यु हो गई।

यह घटना इतिहासकारों द्वारा लिखित इतिहास में शामिल नहीं है। उन्होंने लिखा है कि एक घोड़े से गिरने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गई।

शुभ्रक के हाथों ऐबक की मौत को देखकर पूरी सभा हैरान रह गई। इससे पहले कि सेना ने उसे पकड़ने की कोशिश करती, शुभ्रक अपने मालिक कर्ण सिंह की ओर भागा, कर्ण सिंह घोड़े पर चढ़कर भाग निकला।

कई दिन और रात, शुभ्रक भागता रहा और एक दिन यह उदयपुर के महल में पहुंच गया। जैसे ही कर्ण सिंह नीचे उतरे उनको उसका घोड़ा एक मूर्ति की तरह दिखाई दिया जैसे उसमें कोई जीवन नहीं हैं। जब कर्ण सिंह ने शुभ्रक सिर को छुआ, तो मृत शुभ्रक जमीन पर गिर गया।

वफादारी के ऐसे उद्धरण कम ही होते हैं। शुभ्रक को शत शत नमन।

– एजेंसी