दिल्ली हाई कोर्ट के एक जज करेंगे PFI पर बैन की समीक्षा

National

दरअसल, पीएफआई के अलावा उसके सहयोगियों रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन, नेशनल विमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन (केरल) पर भी बैन लगाया गया है।

नोटिफिकेशन के मुताबिक जस्टिस शर्मा ट्राइब्यूनल की अध्यक्षता करेंगे और इन संगठनों को गैरकानूनी घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं, ये तय करेंगे। गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत पीएफआई और उसके 8 सहयोगियों को 5 साल के लिए बैन कर दिया था।

दिल्ली हाई कोर्ट के कुछ जज इससे पहले भी यूएपीए ट्राइब्यूनल्स की अध्यक्षता कर चुके हैं। वे स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI), LTTE और पूर्वोत्तर भारत में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल कट्टरपंथी संगठनों पर बैन की समीक्षा कर चुके हैं।

दरअसल, यूएपीए की धारा 4 के मुताबिक सरकार अगर किसी संगठन को प्रतिबंधित करती है तो उस फैसले की समीक्षा के लिए 30 दिनों के भीतर इस तरह के ट्राइब्यूनल की अधिसूचना जारी करनी होती है।

इन ट्राइब्यूनल्स में प्रतिबंधित किए गए संगठन अपने वकील के लिए पक्ष रखते हैं। इस साल मार्च में एक यूएपीए ट्राइब्यूनल ने अपने आदेश में 15 नवंबर 2021 को जारी अधिसूचना को सही ठहराया था जिसमें जाकिर नाईक के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को बैन किया गया था।

ट्राइब्यूनल बैन हटा भी सकता है। 2008 में ऐसे ही एक ट्राइब्यूनल ने सिमी पर बैन से जुड़ी अधिसूचना को रद्द कर दिया था। उसके अगले ही दिन आनन-फानन में तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी जिसने ट्राइब्यूनल के आदेश पर रोक लगा दिया।

-एजेंसी