प्रवचन: जीवन में हमेशा दुख देते हैं मिथ्या ज्ञान- जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र महाराज

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आगरा: जैन मुनि एवं नेपाल केसरी डा.मणिभद्र महाराज ने कहा है कि तीर्थंकर आत्मा को ही ज्ञान मानते हैं। इसमें मिथ्या ज्ञान को कष्टकर माना गया है। वह हमेशा दुख देता है, जबकि सम्यक ज्ञान सुखदायक होता है।

राजामंडी के जैन स्थानक में हो रहे भक्तामर स्रोत पाठ के बाद शनिवार को प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने कहा कि मिथ्या ज्ञान और मिथ्या विचार हमेशा दुख देते हैं। जिस प्रकार सूर्य का स्वभाव उष्णता और चंद्रमा का स्वभाव शीतलता है, उसी प्रकार आत्मा का स्वभाव ज्ञान है। ज्ञान भी दो प्रकार का होता है, मिथ्या ज्ञान और सम्यक ज्ञान। मिथ्या ज्ञान और मिथ्या विचार जीवन में हमेशा दुख देते हैं। बल्कि यह समझ लेना चाहिए कि यदि किसी को दुख मिल रहा है, मिथ्या ज्ञान का फल ही भोग रहा होगा।

जैन मुनि ने कहा कि सम्यक ज्ञान जिस व्यक्ति में होता है उसे सत्य और असत्य का बोध हो जाता है। लेकिन ज्ञानी व्यक्ति कभी दुखी नहीं होता। दुख और कष्ट दोनों अलग-अलग भाव रखते हैं। अगर हममें समस्याओं और कष्टों को झेलने की क्षमता है तो जीवन आराम से गुजारा जा सकता है।

आचार्य मांगतुंग ने भगवान आदिनाथ का गुणगान करते हुए कहा कि परमात्मा नकली और असली में भेद करने की शक्ति भी देते हैं। क्योंकि सभी के कल्याण की सोचने वाला व्यक्ति स्वयं अपने प्रकाश से आलोकित होता है। वह हीरे के समान होता है। क्योंकि हीरे को उजाले में रख दो या अंधेरे में वह तो चमकेगा ही। कांच का टुकड़ा तो सूर्य और चंद्रमा के प्रकाश से चमकता है। जब ये हट जाते है तो कांच की चमक खत्म हो जाती है। यानि हीरे और मणि को किसी और के प्रकाश की जरूरत नहीं पड़ती। इसी प्रकाऱ भगवान आदिनाथ अपने कैवल्य ज्ञान से स्वयं प्रकाशमान है। वे तो अपने ज्ञान को पूरे संसार में बांट रहे हैं।

जैन मुनि ने प्रमादी, ज्ञानी व्यक्ति पर प्रसंग सुनाते हुए कहा कि प्रमादी और आलसी व्यक्ति में अंतर होता है। आलसी व्यक्ति तो कुछ भी नहीं करना चाहता। प्रमादी व्यक्ति अच्छे काम को करने में आलस्य करता है, बेकार के काम में लगा रहता है। यही वजह है कि प्रमादी व्यक्ति जीवन में कुछ अच्छा नहीं कर पाता। अंत में वह रोता हुआ जीवन में आता है और होता हुआ ही जीवन से विदा हो जाता है। इसलिए जागरूक बनें। प्रमाद त्याग कर ज्ञान प्राप्त करें।

नेपाल केसरी ,मानव मिलन संस्थापक डॉक्टर मणिभद्र मुनि,बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में शनिवार को बीसवीं गाथा का लाभ सुभाष सुनीता जैन,रत्नेश मनीषा जैन,अनिल सुषमा जैन परिवार लोहामंडी ने लिया।

नवकार मंत्र जाप की आराधना रचना अतुल पारिख परिवार ने की। धर्म प्रभावना के अंतर्गत मधु बुरड़ की 25 आयंबिल एवम बालकिशन जैन, 6 एकासने ,उषा रानी लोढ़ा की एक वर्ष से निरंतर एकासाने की तपस्या निरंतर जारी है। एस.एस.जैन युवा संगठन के तत्वाधान में रविवार 18 सितंबर को महावीर भवन राजा की मंडी में दोपहर 2 बजे से एक “अहिंसा एवम पर्यावरण” विषय पर एक चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है ,जिसमे किसी भी उम्र के बच्चे भाग ले सकते है।

-up18news