भारतीय जनता पार्टी ने यूपी विधान परिषद चुनाव को लेकर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है। इस लिस्ट में केशव प्रसाद मौर्य का भी नाम है। पार्टी लगातार दूसरी बार केशव को विधान परिषद भेजने जा रही है।
दरअसल, केशव प्रसाद मौर्य इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में सिराथू सीट से हार गए थे। केशव की ये हार काफी चर्चा में रही थी। वैसे तो विधान परिषद में केशव का जाना तो पहले से तय था क्योंकि चुनाव में हार के बाद भी उन्हें योगी कैबिनेट में जगह दी गई थी और दोबारा डिप्टी सीएम भी बनाया गया था। लेकिन 5 साल में उत्तर प्रदेश की सियासी ‘गोमती’ में पानी काफी बह चुका है। लखनऊ के सत्ता के गलियारे में सवाल चर्चाओं में तैर रहे हैं कि 2017 में जो केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम बनने के बाद भी सीएम योगी आदित्यनाथ के कद के बराबर माने जाते थे, क्या 5 साल बाद अब भी उनका वो कद कायम है?
बात 2017 की करें तो उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक प्रचंड जीत में केशव प्रसाद मौर्य का विशेष योगदान माना जाता है। वह उस समय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे और पार्टी का प्रमुख ओबीसी चेहरा भी। भाजपा के पास नंबर आए तो मुख्यमंत्री बनने की रेस में केशव का भी नाम चल रहा था लेकिन पार्टी हाईकमान ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया, जो उस समय गोरखपुर से सांसद हुआ करते थे। योगी आदित्यनाथ की छवि भले ही फायर ब्रांड हिंदू नेता की थी लेकिन भाजपा संगठन से उनका ज्यादा वास्ता नहीं था। वहीं केशव प्रसाद मौर्य न सिर्फ प्रदेश में भाजपा संगठन के प्रमुख थे, बल्कि फायर ब्रांड लीडर की छवि उनके साथ भी जुड़ी थी।
बहरहाल, केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम बने और पीडब्ल्यूडी जैसा बड़ा विभाग उनके पास आया। पांच साल की योगी सरकार के दौरान कई बार ऐसे मौके आए जब सरकार और संगठन में केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ दो अलग-अलग धड़े नजर आए। इस दौरान लगातार चर्चाओं को भी किसी न किसी बयान/घटना आदि से हवा मिलती रही कि योगी और केशव में सब कुछ ठीक नहीं है। इस बात को विपक्ष के नेता भी हवा देने में पीछे नहीं रहे। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव तो कई बार केशव प्रसाद मौर्य को लेकर तंज कसते रहे।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और योगी आदित्यनाथ लगातार अपने फैसलों से अपनी छवि को और बेहतर करते चले गए। तीन तलाक से लेकर दंगाईयों के खिलाफ कुर्की जब्ती की कार्रवाई हो, माफिया के खिलाफ बुलडोजर आदि यूपी सरकार की पहचान बन गया। यही नहीं इसका देश में दूसरी भाजपा सरकारों ने भी अनुसरण करना शुरू कर दिया वहीं केशव प्रसाद मौर्य का कोई ऐसा काम सामने नहीं आया, जिससे उनकी छवि और मजबूत हो। अलबत्ता वो अपने तीखे बयानों से चर्चा में जरूर बने रहे।
इसके बाद यूपी विधानसभा चुनाव 2022 आ गया। चुनाव में योगी और केशव के लड़ने को लेकर लगातार अटकलों का बाजार गर्म रहा क्योंकि दोनों ही पहले से विधान परिषद सदस्य थे लेकिन ऐन वक्त पार्टी हाईकमान ने ऐलान कर दिया कि योगी आदित्यनाथ गोरखपुर सदर से और केशव प्रसाद मौर्य सिराथू सीट से चुनाव लड़ेंगे। चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा इन दोनों सीटों की रही। बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने इन सीटों पर जमकर प्रचार किया और गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ की बड़ी जीत भी हुई। लेकिन सिराथू से केशव को बड़ा झटका लग गया। जिस सीट पर 2012 में पहली बार केशव प्रसाद मौर्य ने ही कमल खिलाया था और 2017 में कौशांबी की तीनों सीटें जिताने में जिनका योगदान माना गया, वहीं केशव 2022 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं पल्लवी पटेल से हार गए। इस हार ने कहीं न कहीं केशव की छवि को भी धक्का लगाया।
हालांकि भाजपा संगठन ने केशव का साथ नहीं छोड़ा। हार के बाद भी योगी सरकार 2.0 में केशव प्रसाद मौर्य को दोबारा डिप्टी सीएम जरूर बनाया गया। लेकिन छवि को धक्का लग चुका था और इसका असर उनके पोर्टफोलियो में दिखा। इस बार उनके पर कतर दिए गए। उन्हें लोक निर्माण विभाग नहीं दिया गया, ये विभाग जितिन प्रसाद को दे दिया गया। वहीं केशव को ग्राम्य विकास एवं समग्र ग्राम्य विकास तथा ग्रामीण अभियंत्रण, खाद्य प्रसंस्करण, मनोरंजन कर एवं सार्वजनिक उद्यम तथा राष्ट्रीय एकीकरण का पदभार से संतोष करना पड़ा है।
-एजेंसियां
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