श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह केस में हुई सुनवाई, अदालत ने दिया महत्वपूर्ण निर्देश…

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श्रीकृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह विवाद पर मुथरा जिला एवं सत्र न्यायालय में गुरुवार को (आज) भी सुनवाई हुई। अदालत ने उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच वर्ष 1968 में हुए समझौते को अदालत में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर दावा करते हुए कहा कि 1968 का समझौता गलत है और पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को वापस की जाए। इस बीच कोर्ट में एक और याचिका दायर करके ये मांग की गई है कि शाही ईदगाह को संरक्षित किया जाए ताकि वहां सबूतों से छेड़छाड़ नहीं की जा सके।

सभी पक्षों को याचिका की कॉपी देने का आदेश

मुख्य न्यायाधीश ज्योति सिंह ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष से कहा कि याचिका की कॉपी सभी पक्षों को दी जाए। हिंदू पक्ष ने भी कहा कि सभी पक्षों को कोर्ट में बुलाया जाना चाहिए। हिंदू पक्ष के एक वकील गोपाल खंडेलवाल ने गुरुवार की सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट के बाहर मीडियाकर्मियों से बात की।

उन्होंने कहा कि सिविल कोर्ट ने इस याचिका को खारिज किया था, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। वकील ने कहा कि जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने माना कि हिंदू पक्ष का दावा अदालत में सुनवाई को योग्य है। उन्होंने बताया कि कोर्ट ने सभी पक्षों को याचिका की कॉपी देने का निर्देश देते हुए सभी पक्षों को आदेश दिया कि वो जल्द से जल्द अपने-अपने जवाब कोर्ट में दाखिल करें।

जल्द कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने को लेकर नई याचिका

मामले में सिविल कोर्ट द्वारा सर्वे कमिश्नर नहीं जारी न करने को लेकर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई। सिविल जज सीनियर डिविजन ने सर्वे कमिश्नर जारी करने के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की तारीख 1 जुलाई तय की थी। मामले में वादी राजेंद्र माहेश्वरी और सौरभ गौड़ ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करके कहा कि जून में कोर्ट की छुट्टी होने के चलते सबूतों से छेड़छाड़ और खुर्द-बुर्द करने की आशंका है। उनका दावा है कि शाही ईदगाह ही असल गर्भगृह है इसलिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति जल्द से जल्द हो ताकि गर्मी की छुट्टी में कोर्ट बंद होने से पहले सर्वे रिपोर्ट आ जाए। याची का दावा है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो मुस्लिम पक्ष परिसर में सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है।

हिंदू याचिकाकर्ता ने बताया जान का खतरा

एक अन्य याचिकाकर्ता दिनेश शर्मा ने अपनी जान को खतरा बताया। अखिल भारत हिन्दू महासभा के कोषाध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कोर्ट में दावा किया कि रास्ते में बाइक सवारों ने उनका पीछा किया। उन्होंने कहा कि उनके घर से गाड़ी चोरी हो गई है। शर्मा ने शाही ईदगाह को गंगाजल से शुद्ध करने और ईदगाह में श्रीकृष्ण के अभिषेक की मांग की है। उन्होंने शाही ईदगाह में अब भी लाउडस्पीकर से अजान दिए जाने का दावा किया है और इस पर रोक लगाने की मांग की।

मुस्लिम पक्ष की मांग खारिज

बहरहाल, हिंदू पक्ष के वकील गोपाल खंडेलवाल ने बताया कि मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट से सुन्नी वक्फ बोर्ड को नोटिस भेजने का आग्रह किया था। जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि आप इस मामले में पहले भी पक्ष रख चुके हैं और अब भी कोर्ट में मौजूद हैं। कोर्ट ने कहा कि वकीलों को ही नोटिस दिया जाएगा और वकीलों का काम है कि वो जवाब पेश करें।

हिंदू पक्ष के वकील ने कहा कि उन्होंने इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड, ईदगाह ट्रस्ट, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मभूमि सोसायटी को पार्टी बनाया है। वकील गोपाल खंडेलवाल ने कहा कि उनकी मुख्य मांग है कि 1968 के समझौते को रद्द किया जाए और उस समझौते के आधार पर जो भी अवैध निर्माण हुए हैं, उन्हें हटाया जाए।

मथुरा केस में ये हैं याचिकाकर्ता

मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकील हरिशंकर जैन, विष्णुशंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री आदि ने खुद को भगवान श्रीकृष्ण का भक्त बताया और भगवान की तरफ से ही कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। दावे में यह कहते हुए 1968 में शाही ईदगाह मस्जिद और श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान के बीच हुए समझौते को चुनौती दी गई है कि सेवा संस्थान को इस समझौते का अधिकार नहीं था क्योंकि जमीन का असली मालिक श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट है।

ईदगाह के पास 2.5 एकड़ जमीन पर हिंदू पक्ष का दावा

13.37 एकड़ की कुल जमीन में करीब 11 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि है जबकि बाकी करीब ढाई एकड़ जमीन ईदगाह के अधीन है। शाही ईदगाह के पास पड़ी जमीन को ही अवैध कब्जा बताते हुए कोर्ट से मांग की गई है कि वो यह करीब 2.5 एकड़ जमीन को श्रीकृष्ण जन्मभूमि में शामिल करने की अनुमति दी जाए। इस विवाद में कई पक्षों के अलग-अलग दावे हैं। आज भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से सितंबर 2020 में दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। यह याचिका खारिज हो गई थी, लेकिन पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया गया और कोर्ट ने इस पर सुनवाई शुरू कर दी।

सदियों पुराना है श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस

रंजना अग्निहोत्री मुख्य याचिकाकर्ता हैं और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की तरफ से याचिका दाखिल की है। उन्होंने याचिका में दावा किया है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने मुथरा के मंदिर को कई बार तोड़ा और हिंदू राजाओं ने हर बार इसका जीर्णोद्धार करवाया। हालांकि, औरंगजेब ने 1669 में श्री कृष्ण जन्मभूमि को तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद बना दिया था। उधर, श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान ने इस मामले में अब तक अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है।

ध्यान रहे कि मुथरा स्‍थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि का केस सदियों पुराना है। वर्ष 1803 से इस पर अदालती कार्यवाहियां चलती रही हैं और हर बार मुस्लिम पक्ष मुकद्दमे हारता रहा। उसके बाद 1968 में मुस्लि पक्ष ने एक नए संस्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान के साथ समझौता कर लिया। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह संस्था श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर किसी तरह के समझौता करने को अधिकृत ही नहीं है इसलिए 1968 के समझौते को रद्द किया जाए और पूरी जमीन श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के हाथों सौंपी जाए।

खारिज हो गई थी याचिका, अब पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई

ध्यान रहे कि मथुरा की दीवानी अदालत (सिविल कोर्ट ) ने सितंबर 2020 में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया था। उसके बाद 19 मई को जिला जज की अदालत ने इस पर यह कहते हुए फिर से सुनने का आदेश दिया कि भगवान की संपत्ति के लिए भक्त को दावा दायर करने का अधिकार है। उसने कहा कि मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में 1991 का उपासना स्थल कानून लागू नहीं होता है। निचली अदालत के ऑर्डर को जिला जज ने गलत बताते हुए पुनर्विचार की याचिका को स्वीकार कर लिया।

उधर, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी 12 मई को मथुरा सिविल कोर्ट को आदेश दिया कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह केस का चार महीने में निपटारा किया जाए। उच्च न्यायालय ने इस मामले में कड़ा रुख दिखाते हुए कहा कि अगर मामले को लटकाने की मंशा से कोई पक्ष जवाब देने में देरी करे तो भी समयसीमा के अंदर ही फैसला दिया जाए, चाहे एकतरफा फैसला ही क्यों ना देना पड़े।

-एजेंसियां


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