आगरा। कोरोना काल में आगरा जिला जेल से मिली पैरोल की अवधि समाप्त होने के बाद भी वापस नहीं आने वाले चार बंदियों को थाना न्यू आगरा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। वह घरों में ही रह रहे थे। पुलिस की पूछताछ में एक बंदी ने बताया कि उसके भाई को लकवा मार गया था। वह उसकी देखभाल में लगा था। इस कारण जेल में नहीं जा सका। दूसरे बंदी ने बताया कि उसके पैर की हड्डी टूट गई थी। इस कारण चल फिर नहीं पा रहा था। दो अन्य ने भी अलग-अलग कहानी बताई। चारों को रविवार को जेल में दाखिल कर दिया गया।
जिला जेल के अधीक्षक पीडी सलौनिया ने बताया कि वर्ष 2020 के 20 और वर्ष 2021 के 47 बंदियों के जेल में नहीं आने पर सूची एसएसपी को भेजी गई थी। सभी बंदी पैरोल अवधि समाप्त होने पर भी जेल में नहीं लौटे थे। इस पर चार से पांच बार पत्र लिखा गया। मामले में एसएसपी ने सभी थानों की पुलिस को निर्देशित किया था। बंदियों को गिरफ्तार कर जेल में दाखिल करने के आदेश दिए।
थाना न्यू आगरा पुलिस ने गांव जगनपुर, न्यू आगरा निवासी बंदी कल्लू उर्फ कुबेर सिंह, हरवीर, नौबत और नगला बूढ़ी निवासी जीतू को गिरफ्तार कर लिया। उनसे थाने लाकर पूछताछ की गई। रविवार को चारों को जिला जेल में दाखिल कर दिया गया।
थानाध्यक्ष न्यू आगरा अरविंद कुमार निर्वाल ने बताया कि थाने लाकर बंदियों से पूछताछ की गई। इनमें से नगला बूढ़ी निवासी जीतू को दहेज हत्या के मामले में सात साल की सजा हुई थी। वह डेढ़ साल से बंद था। उसे 15 मई 2021 को पैराल मिली थी। उसे 13 सितंबर 2021 को जेल में दाखिल होना था। पुलिस की पूछताछ में जीतू ने बताया कि उसका भाई बंगलूरू में रहता है। वह जूते की फैक्टरी में काम करता था। उसे लकवा मार गया। इस कारण वो भाई के पास चला गया। उसे अपने साथ लेकर आया। इसके बाद से वह भाई की सेवा में लगा हुआ था। इस कारण से जेल में नहीं जा सका।
पुलिस के मुताबिक, इसी तरह गांव जगनपुर निवासी बंदी नौबत सिंह का कहना था कि वो कारपेंटर का काम करता है। पैरोल अवधि खत्म होने के बाद वो जेल पर पहुंचा था। उसने कर्मचारियों से पूछताछ की कि जेल में कब आना है मगर, जेल के बाहर तैनात बंदीरक्षकों ने कोई जानकारी नहीं दी। इस पर वापस आ गया। उसे लगा कि पैरोल अवधि बढ़ा दी गई है।
उसके गांव के ही कल्लू उर्फ कुंवर सिंह ने बताया कि उसके पैर की हड्डी टूट गई थी। इस कारण चल फिर नहीं पा रहा था। वहीं गांव के हरवीर का कहना था कि उसे पैरोल अवधि समाप्त होने की जानकारी नहीं मिली थी। तीनों को गांव में 25 साल पहले एक खोखे में आगजनी के मामले में 3.5 साल की सजा हुई थी। पैरोल से पहले एक-एक साल की सजा काट चुके थे।
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