दीक्षा जयंती पर श्रद्धा और स्वदेशी का संदेश: आगरा में चातुर्मासिक कल्प आराधना की धर्मसभा में जैन मुनियों के भावपूर्ण व्याख्यान

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बुधवार से प्रारम्भ हो रहे प्रयुषण पर्व की आराधना के दिन

आगरा — श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वावधान में जैन स्थानक महावीर भवन में चल रही चातुर्मासिक कल्प आराधना की श्रृंखला में आज एक विशेष धर्मसभा का आयोजन हुआ। यह सभा आगम रत्नाकर बहुश्रुत पूज्य श्री जय मुनि जी महाराज द्वारा व्याख्यान वाचस्पति पूज्य श्री मदन लाल जी महाराज की 111वीं दीक्षा जयंती के पावन अवसर पर व्यक्त श्रद्धा और प्रेरणा से ओतप्रोत रही।

व्याख्यान वाचस्पति मदन लाल जी महाराज का जीवन दर्शन:

श्री जय मुनि जी ने श्रद्धालुओं को पूज्य मदन लाल जी महाराज के जीवन से जुड़े अनेक प्रेरक प्रसंग सुनाए। उन्होंने बताया कि महाराज जी का जन्म श्वेताम्बर परिवार में हुआ, पर उनका पालन-पोषण दिगम्बर परंपरा में हुआ। इस अद्वितीय पृष्ठभूमि ने उन्हें सभी संप्रदायों के प्रति समभाव और समर्पण की भावना दी। उनका जीवन आदर्श था परिवार, समाज और संघ की मर्यादा का पालन।

स्वदेशी का आग्रह और आत्मबल की मिसाल:

महाराज जी देशभक्ति से ओतप्रोत थे और जीवनभर स्वदेशी खादी वस्त्र ही धारण करते रहे। पूज्य जय मुनि जी ने वर्तमान समय में पुनः स्वदेशी अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आज हम विदेशी वस्तुओं, विशेषतः अमेरिकी और चीनी उत्पादों पर अत्यधिक निर्भर हो गए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि पूज्य मदन लाल जी महाराज ने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर गले के कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं किया और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से दूर रहकर अपनी बुलंद वाणी से हजारों श्रद्धालुओं को लाभान्वित करते रहे।

पर्युषण पर्व की तैयारी और क्षमापना का संदेश:

पूज्य जय मुनि जी ने आगामी पर्युषण पर्व (20 अगस्त से प्रारंभ) की आराधना के लिए श्रद्धालुओं को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि सच्ची क्षमा पहले मन से धारण करनी चाहिए, तभी क्षमापना पर्व का वास्तविक अर्थ सिद्ध होगा।

विनय और सदाचार पर पूज्य आदित्य मुनि जी का प्रवचन:

धर्मसभा में पूज्य आदित्य मुनि जी ने उत्तराध्ययन सूत्र के प्रथम अध्याय ‘विनय’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विनयवान व्यक्ति ही मोक्ष की अभिलाषा कर सकता है। उन्होंने बताया कि विनय केवल छोटों के लिए नहीं, बड़ों के लिए भी आवश्यक है। सदाचार और शील का गहरा संबंध है—सदाचारी व्यक्ति शांत, सुशील और सहयोगी होता है। उन्होंने यह भी कहा कि जीवन में परिवर्तन लाने के लिए अंतर्मन की शुद्धता आवश्यक है।

जप, त्याग और तपस्या की प्रेरणा:

सभा के अंत में पूज्य जय मुनि जी ने आज का जाप “श्री मल्लिनाथाय नमः” की माला करने का संदेश दिया और मटर, मौसमी, मूंगफली का त्याग करने की शपथ दिलाई। तपस्या के क्रम में श्रीमती सुनीता का 23वाँ, श्रीमती नीतू का 10वाँ, मनोज का 9वाँ और पीयूष का 5वाँ उपवास जारी है।

श्रद्धालुओं की उपस्थिति:

धर्मसभा में पानीपत, दिल्ली, गोहाना, होशियारपुर सहित विभिन्न शहरों से श्रद्धालु उपस्थित रहे, जिन्होंने इस आध्यात्मिक आयोजन को गरिमा प्रदान की।
यह धर्मसभा न केवल पूज्य गुरुओं की स्मृति को श्रद्धांजलि थी, बल्कि वर्तमान जीवन में स्वदेशी, विनय और तप की भावना को पुनः जागृत करने का प्रेरक अवसर भी सिद्ध हुई।

-up18News