बच्चों की इमोशनल जरूरतों को समझना बेहद जरूरी

Life Style

यूं तो बच्चों का जिद करना सामान्य बात है लेकिन बात-बात पर नखरे करना और गुस्सा करना सही नहीं है। ऐसा करना बच्चे की गलती नहीं है इसलिए हमें यह जानने की जरूरत है कि हम उसकी कौन-सी जरूरत ठीक तरह से पूरी नहीं कर पा रहे हैं।

बच्चे को मिली परवरिश ही यह निर्धारित करती है कि वह बड़ा होकर क्या बनेगा। हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चे जीवन में बेहतर करें लेकिन इस सबको साकार करने के लिए हमें उन्हें एक अच्छी और मजबूत नींव देनी होगी। बच्चों के इमोशन अलग-अलग होते हैं। ठीक वैसे, जैसे हम सभी बड़ों के। लेकिन बच्चे अपनी बात उतने स्पष्ट तरीके से नहीं बता पाते, जैसे हम कह देते हैं। ऐसे में बच्चे को सही तरीके से समझने का प्रयास करें।

क्यों करता है बच्चा नखरे?

कुछ बातों को अगर छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर बच्चे अटैंशन पाने के लिए ऐसा करते हैं। वे खुद को स्पेशल फील करना चाहते हैं। जब वह नखरे करते हैं, उस उम्र तक वे समझ चुके होते हैं कि रोने से, गुस्सा होने से या तोड़-फोड़ करने पर आप उनकी बात सुन लेंगे। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि हम बच्चे को अपनी बात सही से समझा नहीं पाते।

बच्चे को कैसे समझाएं?

हम समझते हैं कि बच्चे को किसी काम के लिए मना कर देनेभर से हमारा काम हो गया। अब उसे हमारी बात मान लेनी चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है क्योंकि आपने बच्चे से सिर्फ उस काम को करने के लिए मना किया है, उसे यह नहीं बताया कि उसे यह काम क्यों नहीं करना चाहिए। अगर आप बच्चे को किसी काम को करने के फायदे और नुकसान दोनों बताएंगे तो बच्चे आपकी बात को जरूर समझेंगे। फॉलो भी करेंगे।

सब समझते हैं बच्चे

हमें लगता है कि बच्चों को ये बातें समझ नहीं आएंगी। इन्हें सिर्फ वैसा करना चाहिए, जैसा हम कह रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं बच्चे के अंदर चीजों को जानने और समझने की इच्छा बड़ों से कहीं अधिक होती है। उनकी क्वेरी को शांत करने का प्रयास करें।

जब बच्चा करे बात-बात पर नखरा

हालांकि यह बात बच्चे की उम्र पर निर्भर करती है लेकिन अगर आपका बच्चा 4 साल से अधिक का है तो आप उसे अच्छी और बुरी आदतों के बारे में बता सकते हैं। बच्चे को समझना और खासतौर पर उसकी इमोशनल जरूरतों को समझना बेहद जरूरी होता है।

बच्चे पर चिल्लाना नहीं चाहिए बल्कि उसे बताना चाहिए कि जिस वजह से वह नखरा कर रहा है, वो कितनी सही और कितनी गलत है। इससे बच्चे का सोचने-समझने का दायरा भी बढ़ता है।

-एजेंसियां


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