हिंदू सभ्यता का प्राचीनतम प्रमाण है सिंधु नदी, ऋग्वेद में भी है वर्णन

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ये शब्द सुनते ही बिना जूता-चप्पल पहले और सुरक्षा की चिंता किये ही आडवाणी जी नंगे पांव सिन्धु की ओर दौड़ पड़े, और जाकर उसके जल को प्रणाम किया।

जानते हैं क्यों क्योंकि आडवाणी जी मूलतः जिस क्षेत्र से आते हैं, वो सिंधु नदी के नाम पर ही हैं – सिंधु देश। आडवाणी जी को सिन्धु नदी ने अपनी जननी जन्मभूमि के करीब होने की अनुभूति कराई।

ये सिंधु नदी हिंदू सभ्यता का प्राचीनतम प्रमाण है जो आज भी विद्यमान है,

इसी के तीर पर वेदों की ऋचाओं का दर्शन ऋषियों को हुआ था। ऋग्वेद के कई मंत्र इस पवित्र नदी के लिए लिए समर्पित हैं। इस नदी का स्मरण हम प्रतिदिन हमारे स्नान मंत्र में करते हैं।

ऋग्वेद में कई नदियों का वर्णन किया गया है, जिनमें से एक का नाम “सिंधु” है। ऋग्वैदिक “सिंधु” को वर्तमान सिंधु नदी माना जाता है। यह अपने पाठ में १७६ बार, बहुवचन में ९४ बार, और सबसे अधिक बार “नदी” के सामान्य अर्थ में उपयोग किया जाता है। ऋग्वेद में, विशेष रूप से बाद के भजनों में, ईस शब्द का अर्थ विशेष रूप से सिंधु नदी को संदर्भित करने के लिए संकीर्ण है| उदाहरण के लिए : नादिस्तुति सुक्त के भजन में उल्लिखित नदियों की सूची में। ऋग्वैदिक भजन में ब्रम्हपुत्र को छोड़कर, सभी नदियों को स्त्री लिंग में वर्णित किया है।

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥

इसी के किनारे हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी प्राचीन सभ्यताएं विकसित हुईं।

भारतीय वास्तुकला के प्राचीनतम नमूने हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, रोपड़, कालीबंगा, लोथल और रंगपुर में पाए गए हैं जो कि सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत आते हैं । लगभग 5000 वर्ष पहले, ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दी में यह स्थान गहन निर्माण कार्य का केंद्र थे । नगर योजना उत्कृष्ट थी । जली हुई ईंटों का निर्माण कार्य में अत्यधिक प्रयोग होता था, सड़कें चौड़ी और एक दूसरे के समकोण पर होती थीं, शहर में पानी की निकासी के लिए नालियों को अत्यंत कुशलता और दूरदर्शिता के साथ बनाया गया था, टोडेदार मेहराब और स्नानघरों के निर्माण में समझ और कारीगरी झलकती थी

इसी के नाम पर एक सागर का नाम है, जिसे अपनी अज्ञानता में अरब सागर कह देते हैं, जबकि वह सिन्धु सागर है।

लगभग 3200 किलोमीटर तक प्रवाहमान यह नदी लगभग बारह लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को सिंचित करती है मगर दुर्भाग्य यह कि पाकिस्तान अधिकृत भारतीय कश्मीर के उनके कब्जे में जाने के बाद यह नदी भारत के केवल डेढ़ सौ किलोमीटर क्षेत्र में ही बह रही है, और इसकी अपार जीवनदायिनी जलराशि का उपयोग अब शत्रु मुल्क कर रहा है, और हमें इसके लिए कोई पीड़ा भी नहीं होती।

इसी नदी में पंजाब की पांच नदियां आकर विलीन होती हैं जो इसकी पवित्रता को बहुगुणित कर देती है।

एक बात और पाकिस्तान में प्रवाहमान यह एकमात्र नदी है जिसका नाम आज तक शत्रु बदल नहीं पाये हैं, यानि आशा की किरणें अभी धूमिल नहीं हुई है।

सिन्धु नदी एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह पाकिस्तान, भारत (जम्मू और कश्मीर) और चीन (पश्चिमी तिब्बत) के माध्यम से बहती है। सिन्धु नदी का उद्गम स्थल, तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा माना जाता है। इस नदी की लंबाई प्रायः ३६१० किलोमीटर है। यहां से यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर अरब सागर में मिलती है। इस नदी का ज्यादातर अंश पाकिस्तान में प्रवाहित होता है। यह पाकिस्तान की सबसे लंबी नदी और राष्ट्रीय नदी है।

सिंधु की पांच उपनदियां हैं। इनके नाम हैं: वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा एंव शतद्रु. इनमें शतद्रु सबसे बड़ी उपनदी है। सतलुज/शतद्रु नदी पर बना भाखड़ा-नंगल बांध के द्वारा सिंचाई एंव विद्दुत परियोजना को बहुत सहायता मिली है। इसकी वजह से पंजाब (भारत) एंव हिमाचल प्रदेश में खेती ने वहां का चेहरा ही बदल दिया है। वितस्ता (झेलम) नदी के किनारे जम्मू व कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित है।

बिन सिन्धु, हम कैसे हिन्दू?

इसी पीड़ा को हृदय में लिए हिन्दू राजनीति के लौहपुरुष भारत रत्न माननीय श्री लालकृष्ण आडवाणी जी ने सिन्धु नदी के तट पर प्रतिवर्ष सिन्धु मेला का आयोजन आरम्भ किया था।

आज जब उन्हें देश के सर्वोच्च भारत रत्न से सम्मानित किया गया है तो पवित्र सिन्धु नदी भारत भूमि में पुनः पूर्णरूप से प्रवाहित हो, ये संकल्प भी अवश्य लेना चाहिए।

– एजेंसी


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